Youtube
Shanta Sinha Inspirational Story: बचपन फूल-सा कोमल होता है। इसे प्यार से संवारने की जरूरत होती है, लेकिन बहुत से बच्चे ऐसे भी हैं, जिनके बचपन में इतनी कड़वी यादें घुल जाती हैं कि पूरी जिंदगी ही उनकी इससे प्रभावित होने लगती है। इसी बचपन को उत्पीड़न एवं बंधन से बचाने के लिए पद्मश्री पुरस्कार विजेता शांता सिन्हा पिछले 30 वर्षों से भी अधिक समय से काम करती आ रही हैं।
सामाजिक न्याय के लिए शांता सिन्हा लड़ रही हैं। मममीदिपुड़ी वेंकटारागैया फाउंडेशन की वे संस्थापक भी हैं। ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में मास्टर की डिग्री लेने के बाद पीएचडी उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से की। अपने सहपाठी से उन्होंने शादी कर ली थी और उन्हें दो बेटियां भी हुईं। जिंदगी अच्छी चल रही थी, लेकिन मस्तिष्क रक्तस्राव के कारण अचानक जब उन्होंने अपने पति को खो दिया तो वहीं से उनकी जिंदगी में मोड़ आ गया।
शांता सिन्हा हैदराबाद लौट गईं और हैदराबाद यूनिवर्सिटी के आस-पास के गांव में उन्होंने जाना शुरू कर दिया। दलित परिवारों और बंधुआ मजदूरों के परिवारों से मिलना शुरू कर दिया। यहां तक कि रात में भी वहां रह जाती थीं। उन्होंने ऐसे लोगों की मदद करनी शुरू कर दी। लोगों को उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। संगठन तैयार करने में लग गईं। किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए उन्होंने लड़ना शुरू किया। महिलाओं के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने की कोशिशों में लग गईं। श्रम अदालत में वे उन्हें ले जाने लगी थीं।
बंधुआ लोगों में शांता ने पाया कि 40 फ़ीसदी तो बच्चे ही थे। कोई आवाज उनकी बनाने वाला भी नहीं था। शांता ने ठान लिया कि उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार को वे समाप्त करेंगी। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बच्चों को उपलब्ध कराएंगी। गुलाम श्रम से बच्चों को मुक्त कराकर उनका भविष्य बनाएंगी। मममीदिपुड़ी वेंकटारागैया फाउंडेशन शुरू करके शांता सिन्हा ने गरीब बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया। गांव में सभी लोगों को उन्होंने बच्चों की मदद के लिए मनाना शुरू किया। लोगों को उन्होंने समझाया कि स्कूल से बाहर यदि कोई बच्चा है, तो वह एक बाल मजदूर ही है।।
शांता ने देखा कि पहली कक्षा में जिन बच्चों को उन्होंने पढ़ने के लिए भर्ती करवाया, उस कक्षा के हिसाब से वे अधिक बड़े थे। ऐसे में आवासीय कार्यक्रमों की उन्होंने शुरुआत की, जिसमें कि अपनी उम्र के लिए उपयुक्त कक्षा के लिए बच्चों को तैयार किया जाने लगा। इसे ब्रिद कोर्स क्लास के नाम से जानते हैं। 20 वर्षों से यह शिविर चल रहा है और अब तक 60 हजार से भी अधिक स्टूडेंट्स इसके जरिए मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं।
शांता सिन्हा के फाउंडेशन के माध्यम से अब तक 10 लाख से भी अधिक बच्चों को बंधन से मुक्त कराया जा चुका है। स्कूलों में उनका एडमिशन कराया गया है। उनके फाउंडेशन के प्रयासों से अब तक 168 गांव बालश्रम से भी मुक्त हो चुके हैं। उनके फाउंडेशन से 2017 तक लगभग 86 हजार स्वयंसेवक भी जुड़ चुके थे।
शांता के मुताबिक स्कूल तक हर बच्चे को ले जाना बड़ा ही संघर्ष भरा था। इसके लिए गांव वालों से संघर्ष करने की बजाय उन्होंने गांधीवादी रास्ता निकाला। बातचीत करके, चर्चा करके उन्हें इस बात के लिए सहमत किया कि बच्चे स्कूल जाएंगे। शांता ने जो इतने वर्षों तक समर्पण दिखाया, जो कड़ी मेहनत उन्होंने की, उसके लिए पद्मश्री पुरस्कार से उन्हें 1998 में सम्मानित किया गया। अल्बर्ट शंकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और मैग्सेसे पुरस्कार से भी उन्हें 2003 में सम्मानित किया गया। गांधीवादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए प्रोफेसर शांता सिन्हा ने न जाने अब तक कितनों की जिंदगी बचा ली है।
हिसार, हरियाणा – हरियाणा के हिसार जिले के भाटोल जाटान गांव की कीर्ति बामल, जो…
मध्य प्रदेश, जिसे हम गर्व से Heart of Incredible India कहते हैं, अब सिर्फ घूमने…
अगर आप भारतीय रेलवे की ऑनलाइन टिकट बुकिंग सेवा IRCTC का इस्तेमाल करते हैं, तो…
Facts About Chandratal Lake In Hindi: भारत में हज़ारों की संख्या में घूमने की जगहें…
Blood Sugar Control Kaise Kare: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कई बीमारियों को समाज…
Gond Katira Khane Ke Fayde: आयुर्वेद विज्ञान से भी हज़ारों साल पुराना है। प्राचीन ग्रंथों…