Hinglaj Devi Ka Mandir: हमारे भारतवर्ष में देवी देवताओं के प्रति भक्तों में काफी ज्यादा श्रद्धा और भक्ति रहती है और आमतौर पर लगभग हर पर्व या त्योहार को किसी न किसी भगवान से जोड़कर मनाया जाता है। ऐसा ही एक पर्व है नवरात्रि का जिस दौरान देश भर में मां दुर्गा के भक्त माता रानी के सभी नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा अर्चना करते हैं। सभी देवियों में श्रेस्ठ मां दुर्गा हैं और इसे आप इस तरह भी कह सकते हैं कि मां दुर्गा ही अलग-अलग रूपों में हर देवी में समाहित हैं। इस दौरान सभी भक्त देश के कोने कोने में मौजूद देवी मां के मंदिरों में तथा विशेष रूप से शक्तिपीठ में माता रानी की आराधना करते हैं। ऐसे में आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानकर आपको काफी ज्यादा हैरानी हो सकती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं देवी मां के ही एक ऐसे मंदिर के बारे में, जो हमारे देश भारत में न होकर एक मुस्लिम देश में है।
आप बिलकुल सही सुन रहे हैं, मां दुर्गा अपने 51 शक्तिपीठों के रूप में देश के विभिन्न स्थानों पर विराजकर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। मां का ऐसा ही एक शक्तिपीठ सरहद पार पाकिस्तान में है, जो हिंगलाज भवानी के रूप में विख्यात है। बता दें कि ये शक्तिपीठ बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के किनारे बसे हिंगलाज क्षेत्र में स्थित है। मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि मां सती का मस्तिष्क दो जगहों पर गिरा था, एक बलूचिस्तान में और दूसरा राजस्थान में। चूंकि बलूचिस्तान का वह हिस्सा अब पाकिस्तान में है और राजस्थान में जिस जगह पर दूसरा हिस्सा गिरा वहां से मां हिंगलाज की प्रतिमा को कुछ भक्त सौ साल से भी पहले छिंदवाड़ा जिले में ले आए थे। ऐसा बताया जाता है कि कई सौ वर्षों पहले राजस्थान के राजा के वंशजों को जीविकोपार्जन के लिए मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में आना पड़ा। वे सभी वहां से पलायन तो हो गए और अपने साथ-साथ हिंगलाज माता की प्रतिमा भी लेते आए। यहां पर उन्होंने छिंदवाड़ा में एक कोल माइन के पास इसे स्थापित कर दिया और फिर उसके बाद से ही यहां हिंगलाज माता को बहुत ही आस्था के साथ पूजा जाने लगा। आपको यह जानकर काफी आश्चर्य होगा कि नवरात्र के दौरान सिंध तथा कराची प्रांत के लाखों सिंधी हिंदू श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि भारत से भी प्रतिवर्ष एक दल यहां दर्शन के लिए जाता है। आप ये समझ लीजिये कि यह एक ऐसा मंदिर है, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों की ही आस्था का केंद्र है।
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