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अमेरिका के फ्लोरिडा, प्यूर्टोरिको और बरमूडा तीनों को जोड़ने वाला एक ट्रायंगल यानि त्रिकोण को बरमूडा ट्रायएंगल कहा जाता है। कहते हैं इस ट्राएंगल में अगर कोई जहाज दाखिल होता है तो वो समुद्री हो या हवाई गायब हो जाता है। आलम ये है कि ना तो जहाज का कुछ पता चलता है और ना ही उसमें सवार लोगों का।
बरमूडा ट्रायएंगल में कई जहाज लापता हो चुके हैं। मैरी सेलेस्टी नाम का व्यापारिक जहाज इसी क्षेत्र में लापता हुआ था। लेकिन 4 दिसम्बर 1872 को अटलांटिक महासागर में इसे ढूंढ निकाला गया हालांकि इस जहाज पर सवार यात्रियों और जहाज के कर्मचारियों का कोई पता नहीं चला था। इसके अलावा 1881 में एलिन ऑस्टिन नाम का जहाज भी यहीं आकर लापता हुआ। ये जहाज कुशल चालकों के साथ न्यूयार्क के लिए रवाना हुआ। लेकिन बरमूडा ट्राएंगल के पास पहुंचकर गायब हो गया। इस जहाज पर सवार लोगों का कुछ पता नहीं चला था।
अमेरिका के इतिहास में यूएसएस साइक्लोप्स नाम के जहाज का खो जाना भी आज तक रहस्य ही बना है। लेफ्टिनेंट कमांडर जी डब्ल्यू वर्ली के साथ 309 क्रू सदस्यों वाला ये जहाज बरमूडा ट्राएंगल को पार करते समय कहा गया आज तक पता ही नहीं चल पाया है। यह जहाज कहां खो गया कुछ पता नहीं चला। बताया जाता है कि जिस दिन ये घटना हुई थी उस दिन मौसम भी काफी अच्छा था और क्रू के सदस्य लगातार संदेश भी भेज रहे थे…यानि सब कुछ ठीक था। फिर अचानक क्या हुआ ये पहेली आज तक बनी है। इसके साथ ही फ्लाईट 19, स्टार टाईगर, डगलस डीसी-3 …ये वो जहाज हैं जो बरमूडा ट्राएंगल में गुम हो चुके हैं।
हालांकि अभी भी ये अधिकारिक तौर पर साफ नहीं है कि आखिर बरमूडा ट्राएंगल में वो कौन सी शक्ति है जिससे यहां आने वाले लोग अपनी जान गवां रहे हैं लेकिन साइंटिस्ट्स ने काफी रिसर्च के बाद इस रहस्य से पर्दा उठाने का वादा भी किया है।वैज्ञानिकों की मानें तो इस ट्राएंगल के ऊपर खतरनाक हवाएं बहती हैं जिनकी गति 170 मील प्रति घंटे है। ऐसा माना जाता है कि जब भी कोई जहाज इस हवा की चपेट में आता है, तो अपना संतुलन खोने की वजह से हादसे का शिकार हो जाता है। वैज्ञानिकों ने इन हवाओं के बहने का कारण इस क्षेत्र में बनने वाले बादलों को बताया है। इन बादलों को ‘killer clouds’ का नाम दिया गया है। ये बादल बेहद घने बताए गए हैं जिनके अंदर ही अंदर कई तूफान उठते रहते हैं। और जैसे ही कोई प्लेन इन बादलों में दाखिल होता है वो बैलेंस खोने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। चूंकि इस क्षेत्र में हवा भी तेज़ चलती है लिहाज़ा ये बादल भी अपनी दिशा बदलते रहते हैं लिहाज़ा सेटेलाइट से भी इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल होता है।
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