भारत की स्वतंत्रता में अहम रोल निभाने वाले तथा क्रांतिकारी विचारों के जनक बिपिन चंद्र पाल का जन्म नवंबर में एक धनी हिंदू वैष्णव परिवार में हबीबगंज जिले के पोइल नामक गांव में हुआ था, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। बिपिन चंद्र पाल एक महान राष्ट्रवादी थे जिन्होंने देश को आजाद कराने में बहुत ही सहसी पूर्वक संघर्ष किया था। उनके बारे में यह विख्यात है कि वह एक प्रखर वक्ता तो थे ही साथ ही साथ वह एक मंझे हुए पत्रकार और सच्चे देशभक्त भी थे, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए आखिरी समय तक संघर्ष किया था। आपको यह भी बता दें कि बिपिन चंद्र पाल उन महान विभूतियों में शामिल हैं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद तैयार करने में बहुत ही प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह मशहूर लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं बिपिन चंद्र पाल) तिकड़ी का हिस्सा थे। इस तिकड़ी ने अपने तीखे प्रहार से अंग्रेजी हुकुमत की जड़ें हिला कर रख दी थी।
जब देश में अंग्रेजी हुकूमत का अत्याचार काफी ज्यादा बढ़ने लगा था, तब उस दौरान लाल-बाल-पाल की इस तिकड़ी ने महसूस किया कि विदेशी उत्पादों से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है और साथ ही साथ भारतीय लोगों का पारंपरिक काम भी छिनते जा रहा है। तब उस दौरान अपने ‘गरम’ विचारों के लिए मशहूर बिपिन चंद्र पाल ने स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया और ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज तथा औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि करके ब्रिटिश सरकार की नींद हराम कर दी थी। उनके एक-एक प्रयास देश की आजादी की नींव रखते जा रहे थे।
अपने प्रारंभिक जीवन में बिपिन चंद्र पाल कोलकाता में एक लाइब्रेरियन के तौर पर काम कर रहे थे। उस दौरान इनकी मुलाक़ात कुछ राष्ट्रवादी नेताओं से हुई जिसमें केशव चंद्र सेनंद, शिवनाथ शास्त्री, बीके गोस्वामी और एसएन बनर्जी शामिल थे। बताया जाता है कि ये सभी बिपिन चंद्रपाल की विचारधारा से काफी ज्यादा प्रभावित थे और बिपिन चंद्र इन नेताओं की तरफ भी आकर्षित थे। इस वजह से इन नेताओं ने बिपिन को सक्रिय राजनीति में आने का न्योता दिया। ‘वंदे मातरम्’ पत्रिका के संस्थापक रहे बिपिन चंद्र पाल एक बड़े समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने अपने परिवार के कड़े विरोध के बाद भी एक विधवा से शादी की थी।
1907 में ब्रितानिया हुकूमत द्वारा चलाए गए दमन के समय बिपिन चंद्र पाल इंग्लैंड चले गए जहां पर वह क्रांतिकारी विचार धारा वाले ‘इंडिया हाउस’ से जुड़ गए और ‘स्वराज पत्रिका’ की शुरुआत की। मदन लाल ढींगरा के द्वारा 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दिये जाने के कारण उनकी इस पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया था और इसके साथ ही साथ लंदन में उन्हें काफ़ी मानसिक तनाव से भी गुज़रना पड़ा। बताया जाता है कि इस घटना के बाद वह उग्र विचारधारा से अलग हो गए थे। आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि पाल ने अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की तार्किक की बजाय जादुई विचारों की आलोचना भी की थी।
आपको यह भी बता दें कि वंदे मातरम् राजद्रोह मामले में उन्होंने अरबिंदो घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने से इंकार कर दिया था जिसके कारण उन्हें 6 महीने की सजा भी हुई थी। बिपिन चंद्र पाल द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘स्वराज’ एवं वर्तमान की स्थिति में ‘द सोल ऑफ इंडिया’ उनकी दो प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। बिपिन चंद्र पाल के बारे में कहा जाता है कि वह कभी न हारने वाले व्यक्ति थे। वह हमेशा ही अपने सिद्धांतों का पूर्णताः से पालन करते थे। उन्होंने हिंदुत्व की बुराइयों और बुरे व्यवहारों के खिलाफ हमेशा से ही अपना विरोध प्रदर्शित किया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महर्षि अरविंद के खिलाफ गवाही देने से इनकार करने पर बिपिन चंद्र पाल को छह महीने की सजा हुई। आजीवन राष्ट्र-हित के लिए काम करने वाले और बचपन से ही जातिगत भेदभाव का विरोध करने वाले बिपिन चंद्र पाल ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान खुद को कांग्रेस से अलग कर दिया था और एक अकेले जीवन का नेतृत्व किया। बाद में 20 मई, 1932 को भारत मां के चरणों में अपना सर्वस्व त्यागकर बिपिन चंद्र पाल परलोक सिधार गए।
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