Guru Angad Dev Ji History in Hindi: गुरु अंगद देव जी के बारे में इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं। सिक्ख धर्म के अनुयायियों के जीवन में अंगद देव जी की अहम भूमिका है। गुरु नानक देव जी के बाद इन्हें सिक्ख धर्म का दूसरा गुरु माना जाता है। इनके संपूर्ण जीवन के बारे में बहुत से लोगों को मालूम नहीं है। आज हम आपको विशेष रूप से गुरु अंगद देव जी के संपूर्ण जीवन से रूबरू करवाने जा रहे हैं। आइये विस्तार से जानते हैं गुरु अंगद देव जी कौन हैं और उन्होनें सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए क्या काम किए हैं।
गुरु अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। उनका जन्म 31 मार्च 1504 इसवीं में हुआ था, 7 सितंबर 1539 से लेकर 28 मार्च 1552 तक वे सिक्ख धर्म के गुरु रहे थे। अपने आध्यात्मिक क्रियाशीलता की वजह से उन्हें एक सच्चा सिक्ख माना जाता है और इसलिए आगे चलकर वो सिक्ख धर्म के महान गुरु भी बनें। आपकी जानकारी के बता दें कि, गुरु अंगद देव जी को लहिणा जी के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही साथ उन्होनें गुरुमुखी जिसे पंजाबी लिपि माना जाता है उसका भी इज़ाद किया। सिक्ख धर्म का सबसे पवित्र पुस्तक आदिग्रंथ को इसी लिपि में लिखा गया है। गुरु श्री अंगद देव जी को सभी ईश्वरीय गुणों से भरपूर और एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि, जिस किसी पर भी उनकी कृपा दृष्टि होती है उनका जीवन सभी पापों और विकारों से मुक्त हो जाता है। इसलिए सिक्ख धर्म में विशेष रूप से इन्हें एक महान गुरु का दर्जा प्राप्त है। इस धर्म के बारे में सभी उपयुक्त जानकारी हासिल करने के बाद उन्होनें इस धर्म का प्रचार प्रसार किया। आम लोगों के जीवन को भी उन्होनें काफी हद तक प्रभावित किया है।
आपको बता दें कि, सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च 1905 को पंजाब के फ़िरोज़पुर नामक गांव में हुआ था। अंगद देव जी के परिवार की बात करें तो उनके पिता एक व्यापारी थे जिनका नाम फेरु जी था। उनकी माता का नाम देवी रामो जी था। गुरु अंगद देव जी के दादाजी नारायण दास त्रेहन जी थे। उन्होनें अपना व्यापार पंजाब में मुख्तसर नाम के जगह पर शुरू किया था। उनके बाद अंगद जी के पिता भी वही व्यापार करने लगे। गुरु अंगद देव जी का जन्म उनके माता-पिता के काफी मन्नतों के बाद हुआ था। बचपन से ही उनका मन धर्म कर्म के कार्यों में सबसे ज्यादा लगता था। गुरु नानक देव जी के वो सबसे बड़े प्रशंसक थे। उनकी बातें और उनके द्वारा किया जाने वाला धर्म प्रचार से वो काफी ज्यादा प्रभावित होते थे। बहुत से लोगों का ऐसा मानना है कि, गुरु अंगद देव जी ने कभी शादी नहीं की, लेकिन तथ्यों की बात करें तो उन्होनें सन 1576 में खीवी जी के साथ सात फेरे लिए थे। शुरुआत में वो विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन परिवार के काफी दवाब के बाद उन्होनें शादी के लिए हामी भर दी। बता दें कि, खीवी जी के साथ उनके दो बेटे और दो बेटियां भी हुई।
आपको जानकर हैरानी होगी की गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव के उत्तराधिकारी थे। गुरु नानक देव ने अपने बेटों को छोड़कर अंगद देव जी को उनका उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। कहते हैं कि, गुरुनानक देव जी अंगद देव से इतने ज्यादा प्रभावित थे की उन्होनें अपने बेटों को वो स्थान देना उचित नहीं समझा। अंगद देव जी पर गुरु नानक साहब काफी भरोसा करते थे उन्हें यकीन था की धर्म के प्रचार के लिए उनसे ज्यादा सही और कोई नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होनें अंगद देव जो को अपना उत्ताधिकारी घोषित किया। आपकी जानकारी के लिए बता दें अंगद देव जी अपने जवानी के दिनों से ही गुरु नानक के साथ थे और उन्होनें अपना सारा जीवन उनके बताए रास्ते पर ही चलना स्वीकार किया। सिक्खों के दूसरे गुरु बनने के बाद भी उन्होनें गुरु नानक देव का ही अनुसरण किया और सिक्ख धर्म के प्रचार प्रसार में अपना संपूर्ण जीवन बिता दिया।
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