जीवन परिचय

न ही दिया कभी प्रवचन न ही बताया कभी श्लोक, फिर भी करोड़ों की संख्या में हैं ‘गुरु जी’ के भक्त

Guru Ji History in Hindi: हमारे देश में संत-महात्माओं की कोई कमी नहीं है। यहां जितने ज्यादा संत-महात्मा हैं उससे भी कई गुना ज्यादा उनके भक्त मौजूद हैं। हमारा देश सदियों से साधु-संतों का सम्मान करता आया है और इन्हें एक अलग ही खास नजर से देखा जाता है। चूंकि आज हम आधुनिक जमाने में जी रहे हैं और आज विज्ञान ने बहुत ही ज्यादा तरक्की कर ली है। लेकिन इसके बाद भी लोगों में संत-महात्माओं के प्रति सम्मान और निष्ठा बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि इन लोगों की महानता प्राचीन समय से ही बनी हुई है बल्कि इनको अपनी महानता बनानी पड़ती है। तब जाकर लोग इनकी तरफ आकर्षित होते हैं और इनके प्रति समर्पित होते हैं। कुछ इसी तरह की अलौकिक और दिव्य क्षमता वाले हैं “गुरुजी”(Jai Guru Ji) जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने इस धरती पर मानवता को आशीर्वाद देने और उन्हें जागरूक करने के लिए ही जन्म लिया है।

जय गुरु जी की जीवनी(Guru Ji Biography in Hindi)

7 जुलाई, 1954 को पंजाब के मलेरकोटला जिले(Malerkotla) के डूगरी गांव(Dugri village) में गुरुजी का जन्म हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा डूगरी गांव और आस-पास ही हुई थी। इन्होंने यहीं से स्कूल, कॉलेज सब किया। गुरुजी ने राजनीति शास्त्र में स्नातक की डिग्री ले रखी है। आपको बता दें कि इन्हें बालावस्था से ही आध्यात्म से जुड़ाव हो गया था और जैसे-जैसे वक़्त गुजरता गया इनके अंदर का ये लगाव उभरकर बाहर आने लगा। लोग उनसे काफी आकर्षित होते और उनकी शरण में आने लगे। गुरुजी की प्रतिष्ठा चरम पर पहुंचने लगी थी। खास बात तो यह थी कि गुरुजी ने अन्य बड़े-बड़े साधु-महात्माओं की तरह कोई प्रवचन नही दिया और न ही कोई श्लोक बताया। मगर इसके बाद भी इनकी लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ती चली गयी।

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ये केवल उनके भक्त ही थे जो उनकी ख्याति को बढ़ाते थे और उनकी प्रतिष्ठा को भी। भक्त बताते हैं कि जब भी कभी वह गुरुजी के समीप जाते, उन्हें हमेशा एक अलग ही तरह की ‘सुगंध’ का एहसास होता था मानो जैसे आसपास कहीं कोई गुलाब का बगीचा हो। उनके नजदीक जाने मात्र से उनके भक्तों की आधी समस्या का समाधान तो अपने आप ही हो जाया करता था।

गुरुजी की अगर कोई खास बात थी तो वह थी उनका अडिग विश्वास और पूर्ण रूप से आत्म समर्पण। भक्तों से मिलने और उनकी समस्या का समाधान निकालने के लिए गुरुजी ने अपने पूरे जीवनकाल में कभी किसी से किसी तरह की वस्तु या धन आदि की न ही इच्छा जताई और न ही उम्मीद की। शायद यही वजह है कि उन्हें लोग ‘कल्याणकर्ता’ गुरुजी के नाम से भी बुलाते थे।

गुरुजी ने हमेशा से यही बात कही कि उनका आशीर्वाद हमेशा उनके भक्तों के साथ है और न सिर्फ इस जन्म के लिए बल्कि जन्म-जन्मांतर तक। बेहद ही साधारण से लेकर ऊंचे-ऊंचे घराने के लोग तथा किसी भी धर्म-जाति के लोगों को गुरुजी के दरबार में बराबर की निगाह से देखा जाता रहा है। हर किसी को गुरुजी का बराबर आशीर्वाद मिला है। आमतौर पर जैसा सभी करते हैं उससे अलग गुरुजी ने कभी किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया। उनका कहना था कि “दिव्यता” का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता और वो अपने भक्तों से सदैव जुड़े रहते हैं। बाद में 31 मई 2007 को गुरुजी ने महासमाधि ले ली और दिव्य रूप में सभी भक्तों के साथ नश्वर रूप में जुड़ गए।

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बता दें, दिल्ली के छतरपुर से कुछ किलोमीटर अंदर की दूरी पर गुरूजी का आश्रम है, जहां हर रोज़ हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं।  गरीब से लेकर वीआईपी लोग गुरूजी के अनुयायी हैं। यदि आप गुरूजी के आश्रम जाने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले मेट्रो, ऑटो या बस से छतरपुर पहुंच जाएं। उसके बाद वहां से आप रिज़र्व या शेयरिंग ऑटो करके उनके आश्रम तक पहुंच सकते हैं। वहां गुरूजी के आश्रम से हर कोई वाकिफ है और वहां जाने के लिए ऑटो की लाइन लगी रहती है।

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