जीवन परिचय

जिस कंपनी का जूता खरीद भी नहीं सकती थीं, आज उसी कंपनी की ब्रैंड एम्बेसेडर है हिमा दास

Hima Das Biography in Hindi:हिमा दास वह लड़की है जिसने अपनी प्रतिभा से दुनिया को हैरान कर के रख दिया है। पिछले दिनों यूरोप के अलग-अलग शहरों में हुए अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में 19 साल की एक लड़की ने महीने भर में 5 गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया है। इसी के साथ हिमा किसी भी ग्लोबल ट्रैक इवेंट में गोल्ड का तमगा अपने नाम करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई है। इतना ही नहीं हिमा के हुनर को देखते हुए दुनिया की नामी गिरामी मैगजींस में शामिल एली इंडिया, फेमिना और वोग जैसी मैगजींस ने अपने कवर पेज पर उन्हें जगह दिया है।

17 लोगों के परिवार में पली बढ़ी हैं हिमा

हिमा दास का जन्म 9 जनवरी 2000 को असम के नागौर जिला स्थित धींग गांव में हुआ है। हिमा के परिवार में कुल 17 सदस्य हैं और उनका पूरा परिवार खेती-बाड़ी का काम करता है। हिमा का भी लंबा समय खेती करते हुए बीता है। हिमा दास के पिता का नाम रंजीत दास है और माता का नाम जोनाली दास है हिमा के कुल पांच भाई बहन हैं। जिनमें से वह सबसे छोटी हैं।

कैसे हुई करियर की शुरुआत

हिमा दास का मन शुरू से ही खेलकूद में लगता था। हिमा आगे चलकर फुटबॉलर बनना चाहती थी। जब उनके साथ फुटबॉल खेलने वाली लड़कियां नहीं थीं तो वह लड़कों के साथ ही स्कूल में फुटबॉल खेला करती थी। खेलने के दौरान एक बार उनकी फुर्ति को मैदान में देखकर उनके एक टीचर काफी हैरान हुए और उन्होंने हिमा को एथलेटिक में अपना करियर बनाने का सलाह दे डाला। हिमा दास ने भी अपनी टीचर की सलाह को मान लिया। इसके बाद रेसिंग कर के अपने मन में खुद को सबसे तेज बनाने की चाहत को बैठा लिया। हिमा का सबसे पहला कॉम्टीशन लोकल लेवल पर हुआ। जिसमें हिमा ने उम्दा प्रदर्शन दिखाया। आगे चलकर उनकी कला और प्रतिभा को उनके कोच निपुण दास ने निखारा, हिमा ने गुवाहाटी में स्टेट चैंपियनशिप में हिस्सा लिया इस दौरान वह ब्रोंज मेडल जीत पाई। इस दौरान हिमा के बेहतर परफॉर्मेंस को देखने के बाद उन्हें जूनियर नेशनल चैंपियनशिप के लिए रवाना कर दिया गया। इस दौरान उन्हें खेल का अनुभव कम था और ट्रेनिंग भी पूरी तरह से नहीं कर पाई थी। बावजूद इसके वह 100 मीटर रेस के फाइनल में पहुंची। लेकिन इस बार उनके हाथ में कोई भी मेडल नहीं आ सका।

इस खेल के बाद हिमा काफी उदास हो गई। लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा और हिमा के इस मनोबल के पीछे का श्रेय भी उनके उनके कोच को ही जाता है। हिमा के कोच निपुण दास ने उनके घर वालों को मनाया कि वह अपनी बेटी को ट्रेनिंग के लिए गुवाहाटी जाने दें। हालांकि घर वालों को इसके लिए मना पाना थोड़ा मुश्किल तो था लेकिन वे मान गए। हिमा के घर पर खाने-पीने की काफी दिक्कत होती थी। जिस कारण से दूसरी तरफ उनके पिता महज इस बात से ही खुश थें कि कम से कम उनकी बेटी को तीन वक्त का खाना तो मिलेगा। हिमा दास की ट्रेनिंग शुरू हो गई लेकिन परेशानी खत्म नहीं हुई उन्हें हर रोज ट्रेनिंग के लिए गांव से बस पकड़ कर गुवाहाटी जाना पड़ता था। जिसकी दूरी करीब 140 किलोमीटर थी, ट्रेनिंग खत्म करके हिमा वापस फिर से घर आती थीं। यानी कि रोजाना उन्हें 280 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी। इस दौरान एक बार फिर उनके कोच ने उनकी मदद की और गुवाहाटी में रहने वाले अपने एक दोस्त जो कि पेशे से डॉक्टर थें उनकी मदद से हिमा का रहने का इंतजाम गुवाहाटी में ही करवा दिया। हिमा जहां रहती थी वह घर स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के ठीक बगल में ही था।

जो जूता खरीद नहीं सकती थी, आज उसकी ब्रैंड एम्बेसेडर हैं हिमा [Hima Das Brand Ambassador]

शुरुआती दौर में हिमा के परिवार की स्थिति बेहद खराब थी। इस बात को हर कोई भली-भांति समझता है कि एक किसान का परिवार किस तरह से अपना का पालन पोषण करता है। हिमा के परिवार में करीब 17 सदस्य थें और हिमा के अलावा उनके पांच भाई बहन भी थें। हिमा के जीवन में एक ऐसा दौर आया जब उन्हें जूतों की जरूरत पड़ी। लेकिन अपने परिवार की स्थिति वह भली-भांति समझती थी। इसलिए जो जूते उनके पास थें उन्होंने उसी से काम चलाना बेहतर समझा। लेकिन हिमा के पिता उनकी हर जरूरत को समझते थें। उनके पिता उनसे बिना कुछ कहे, बिना कुछ पूछे 1 दिन गुवाहाटी चले गए और वहां से 1200 का जूता खरीदा और अपनी बेटी की ट्रेनिंग के लिए उन जूतों को उसके हाथ में सौंप दिया। हिमा के पिता ने जो जूता उनके लिए खरीदा वह एडिडास का जूता था। एक वह दिन था और एक आज का दिन है कि एडिडास ने हिमा को अपनी कंपनी का ब्रांड एंबेसडर बना दिया है।

खेल के लिए परिक्षा भी छोड़ा

ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए 2018 के कॉमनवेल्थ गेम के लिए हिमा को अपनी परीक्षा भी छोड़नी पड़ी थी। यह खेल 4 से 15अप्रैल के बीच में हुआ था। इसी दौरान हिमा की बोर्ड की परीक्षाएं भी होने वाली थी। लेकिन इस दौरान उनके घर वालों ने उनका साथ दिया। उनके माता पिता का कहना था कि यह खेल खेलने का मौका दोबारा नहीं आएगा। लेकिन परीक्षा अगले साल भी दी जा सकती है। हिमा ने कॉमनवेल्थ गेम में हिस्सा लिया और 400 मीटर की रेस में छठे स्थान पर रही। साल 2019 में हिमा ने अपनी बोर्ड की परीक्षा भी दी और फर्स्ट डिवीजन से 12वीं पास किया।

आज हिमा की कामयाबी को हर कोई जानता है। सच कहते हैं अगर सच्ची मेहनत और लगन हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। इस बात का जीता-जागता नमूना हिमा दास है।

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Mritunjay Tiwary

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