Maharishi Valmiki Biography : भारत महान पुरुषो और संतो का देश है। आज हम आपको इस लेख में एक महान महर्षि वाल्मीकि के जीवन के बारे में बताने जा रहे है। वैसे तो महर्षि वाल्मीकि एक डाकू थे। वो वैदिक काल के महान ऋषि बताये जाते है। उनका नाम रत्नाकर था। उनके पालन पोषण भील जाति में हुआ था जिसके कारण उन्होंने भीलो की परंपरा को अपनाया था। अपने परिवार के पालन पोषण के लिए वो डाकू बन गए थे। जरूरत पड़ने पर वो लोगो को मार भी देते थे।
एक दिन नारद मुनि जंगल से निकल रहे थे। रत्नाकर ने उन्हें बंधी बना लिया। ऐसे होने पर नारद ने उनसे पूछा कि तुम ये सब क्यों करते हो तो उन्होंने बताया अपने परिवार का लालन पालन करने के लिए। तब नारद मुनि ने उनसे पूछा जिस परिवार के लिए तुम ये सब कर रहे हो क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे साथ खड़ा होगा। ये सुन कर रत्नाकर ने जोश के साथ कहा हां बिलकुल मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहेगा। नारद मुनि ने कहा अगर तुम्हारा परिवार साथ देगा तो मैं अपना सारा धन तुम्हे दे दूंगा। इसके बाद रत्नाकर ने अपने परिवार के सभी सदस्य से पूछा तो किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। इस बात से रत्नाकर को बहुत गहरा दुःख पंहुचा। इसके बाद उन्होंने सारे बुरे काम छोड़ कर तप करने के लिए निकल गए।
कई सालो तक तप करने के बाद उन्हें महर्षि का पद प्राप्त हुआ। तप करते वक्त दीमको ने रत्नाकर पर अपनी बांबी बना ली थी। तपस्या ख़त्म होने के बाद जब ये बांबी को तोड़ कर निकले तो लोग उन्हें वाल्मीकि कहने लग गए। क्युकी बांबी को वाल्मीकि भी कहा जाता है। उनकी तपस्या से ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर वाल्मीकि को रामायण महाकाव्य लिखने की प्रेरणा दी।
एक बार वाल्मीकि जी तपस्या के लिए गंगा नदी के किनारे गए। वहां पास में ही एक पक्षी का नर नारी का जोड़ा प्रेम में मगन था। उसी समय एक शिकारी ने नर पक्षी की तीर मार कर हत्या कर दी। ये सब देख कर उनके मुख से एक श्लोक निकला जो ये था।
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥’
इस श्लोक का अर्थ है – जिस पापी ने ये बुरा काम किया है उसे जीवन में कभी सुख नहीं मिलेगा। उस पापी ने प्रेम में मगन पक्षी का वध किया है इसके बाद ही वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की थी।
उनका जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था। इसी दिन को वाल्मीकि जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। वाल्मीकि जी को ही श्लोक का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने ही संस्कृत के पहले श्लोक को लिखा था। वाल्मीकि जयंती के दिन जगह-जगह शोभयात्रा निकाली जाती है। उनका जीवन हमे बुरे कामो को छोड़ कर अच्छे कर्म और भक्तिभाव की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। हमे उनके जीवन से सिख लेनी चाहिए। जब वो डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन सकते है तो एक आम इंसान बुरे कर्म त्याग कर अच्छा इंसान बन सकता है।
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प्रशांत यादव
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