Sadhguru Biography in Hindi: सद्गुरु, वैसे तो नाम से ही प्रतीत होता है कि यह निश्चय ही कोई ज्ञानी बाबा या पंडित होंगे, जो अपने भक्तों को तरह-तरह की ज्ञान की बातें बताते होंगे। हमारे भारत देश में बाबा और पंडित लोगों की बहुत मान्यता है। मगर इसी की आड़ में कुछ लोग भक्तों के भोलेपन का गलत फायदा उठाना शुरू कर देते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं। लेकिन आगे चल कर उन्हें इसका भी परिणाम भुगतना पड़ता है, जैसा कि पिछले कुछ समय से कुछ जाने-माने लोग भुगत रहे हैं। पर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सद्गुरु कोई ऐसे-वैसे व्यक्ति नहीं हैं। सद्गुरु का अर्थ ही होता है ‘आत्मज्ञानी’ जिसे अपनी आत्मा का अनुभव हो चुका हो। आमतौर पर ज़्यादातर गुरुओं या बाबाओं को इसका ज्ञान नही होता और यही लोग अपने अनुयाइयों का फायदा उठाते हैं।
सिर पर एक अलग तरह से खास अंदाज में पगड़ी बांधे हुए, डिजाइनर धोती-कुर्ते में लिपटे आध्यामतिक गुरु जग्गी वासुदेव ही वो शख्स हैं जो सद्गुरु के नाम से जाने जाते हैं। संत और बाबा की तरह इनका बस नाम ही है मगर ये कई और तरह से भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। कभी-कभी सद्गुरु जींस-टी शर्ट और स्पोर्ट्स शूज के साथ हैट और गॉगल्स लगाए हुए भी नजर आ जाते हैं, जो उन्हें और भी कूल बना देता है।
बता दें, सद्गुरु यूं ही इस राह पर नहीं चल पड़े हैं। एक समय था जब जग्गी वासुदेव ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद व्यापार के क्षेत्र में कदम बढ़ाया था और अपने तेज दिमाग और मेहनत की वजह से बहुत ही जल्दी उनकी गिनती एक सफल इंसान के रूप में होने लगी। मगर तभी एक ऐसा समय आया जब उन्हें लगा कि वो इस काम के लिए नहीं बने हैं, बल्कि उन्हें तो कुछ और ही करना है और तब से वह निकल पड़े विश्व शांति और खुशहाली की दिशा की ओर। आज सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिल रही है। आपको यह भी बता दें कि सद्गुरु ने आज के समय में आम आदमी के लिए योग के गूढ़ आयामों को इतना ज्यादा सहज बना दिया है कि हर व्यक्ति उस पर अमल कर सकता है और यदि थोड़ा सा प्रयास करे तो स्वयं अपने भाग्य का स्वामी बन सकता है।
3 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में जन्मे जगदीश वासुदेव के बारे में शायद ही किसी ने अनुमान भी लगाया होगा कि आगे चलकर वह इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे। लेकिन वो एक कहवात तो आपने सुनी ही होगी की “पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं”। इस बात को उन्होने चरितार्थ करते हुए बचपन से ही अपने लक्षण दिखाने लगे। बचपन से ही वो काफी जिज्ञासु और तीक्ष्ण बुद्धि के थे। प्रकृति ने भी इन्हे अपनी तरफ खासा आकर्षित किया और वो अपना ज़्यादातर समय जंगलों में ही व्यतीत किया करते थे तथा वन्यजीवों को देखरेख करते थे।
बचपन में ही जब उनकी उम्र करीब 11 वर्ष थी उसी दौरान उनकी मुलाक़ात एक योग शिक्षक से हुई जिन्होंने जग्गी वासुदेव को योग के कुछ सरल आसन सिखाये। फिर क्या था एक-एक दिन के अंतराल पर वो उन आसनों को खुद से करने लगे और यही से उनकी ‘सद्गुरु’ बनने की शुरुवात भी हो गयी। आगे चलकर आधुनिक आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु ने वर्ष 1983 में मैसूर में ही अपनी पहली योग कक्षा चलायी जिसमें सिर्फ 7 लोग आए थे।
हालांकि, वो इससे निराश नहीं हुए और आगे चलकर कर्नाटक तथा हैदराबाद में भी अपने स्वयं के व्यवसाय से होने वाली आय को लगाकर योग कक्षाओं का आयोजन किया। “ईशा फ़ाउंडेशन” नाम की एक संस्था जो आज विश्वभर में ख़ासी लोकप्रिय है, उसकी स्थापना सद्गुरु ने ही वर्ष 1992 में की थी। इस संस्था का एकमात्र उद्देश्य था योग कार्यक्रमों के साथ-साथ सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्ट को प्रोत्साहन देना। दुनिया भर में इनके करीब 200 सेंटर हैं। चूंकि आज योग एक अंतर्राष्ट्रीय पर्व के रूप में भी मनाया जाने लगा है, इसी को देखते हुए सद्गुरु भी अपने उदेश्य को काफी तेजी से दुनिया भर में प्रसारित कर रहे हैं। इनकी बातों से आज सभी वर्ग के लोगों को प्रेरणा मिलती है।
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