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Sangyanatmak Vikas Kya Hai: ज्ञानेंद्रियों और अनुभव के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने और उन्हें समझने की प्रक्रिया को संज्ञानात्मक विचार कहा जाता है। इसके कारण हमारे मन में विचार आते हैं। मनोविज्ञान में संज्ञानात्मक विकास बहुत महत्वपूर्ण है।
संज्ञानात्मक विकास का मतलब है कि बच्चे कैसे सोचते हैं, खोज करते हैं और चीजों का पता लगाते हैं। यह ज्ञान, कौशल, समस्या समाधान और स्वभाव का विकास है, जो बच्चों को उनके आस-पास की दुनिया के बारे में सोचने और समझने में मदद करता है।
इस प्रक्रिया के अनुसार, इंसान अपने वातावरण के साथ मानसिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए सीखता है। इसके संस्थापक मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे माने जाते हैं। जीन पियाजे स्विट्जरलैंड के रहने वाले थे।
मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे का मानना है कि संज्ञानात्मक विकास(Sangyanatmak Vikas) खोज पर आधारित है। इसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों के अनुभव के आधार पर अपनी सोच का निर्माण करता है। एक उदाहरण लेते है अगर कोई छोटा बच्चा किसी गर्म चीज़ को छूता है। तो उसे जलने का अहसास होता है और वह उसे डरावनी चीज़ समझता है। बच्चे के पास अपने अनुभव को कहने के लिए शब्द नहीं होते। लेकिन वो समझ जाता है कि उस चीज़ से दूर रहना चाहिए। और बाकि लोगो को भी इशारे करके दूर रहने को कहता है।
इस तरह से सिखने को सक्रिय रूप से सीखना कहते है। जो व्यक्ति ये कार्य को कर रहा है। वो अपने विचारो में नए विचार को शामिल करता है। इस प्रक्रिया को सात्मीकरण कहते है।
इसके अलावा एक दूसरी भी प्रक्रिया होती है। जिसे संतुलन कहते है। यह प्रक्रिया हमे इंसानो के व्यवहार को समझने में मदद करती है।
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