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फिल्म ‘आनंद’ ने पूरे किए 50 साल, शानदार डायलॉग्स से अमर हो गई मूवी

Anand Movie Completes 50 Years: आनंद भारतीय सिनेमा की सबसे सदाबहार फिल्मों में से एक है। फिल्म आनंद ने आज अपने 50 साल पूरे कर लिए हैं। यह फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी ने बनाई थी। ऋषिकेश दा की यह खासियत थी कि वे बड़े ही चुटीले अंदाज में अपनी फिल्मों के जरिए न केवल हंसाते थे, बल्कि कई तरह के सामाजिक और भावनात्मक संदेश भी दे जाते थे। आनंद भी उनकी ऐसी ही फिल्मों में से एक थी।

खूब बिके थे डायलॉग्स के ऑडियो कैसेट्स

Anand Movie Completes 50 Years: आनंद 12 मार्च, 1971 को रिलीज हुई थी। उस वक्त लोग गाने वाले ऑडियो कैसेट्स खूब खरीदा करते थे, लेकिन आनंद भारतीय सिनेमा की उन कुछ फिल्मों में से है, जिसके डायलॉग्स वाले ऑडियो कैसेट्स भी जमकर बिके थे। फिल्म में एक से बढ़कर एक डायलॉग्स सुनने के लिए मिले थे। फ़िल्म सुपरहिट थी और 2 करोड़ रुपये से भी अधिक का कारोबार करने में कामयाब रही थी।

ये थे ‘आनंद’ के लिए पहली पसंद

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राजेश खन्ना(Rajesh Khanna) एक महान अभिनेता रहे और फिल्म आनंद में उन्हें लीड रोल मिला था, लेकिन ऋषिकेश मुखर्जी की पहली पसंद इस फिल्म के लिए किशोर कुमार थे। हालांकि, किशोर कुमार की गेटकीपर वाली गलती ने उन्हें बड़ा आहत किया था, जिसकी वजह से राजेश खन्ना को फिल्म में जगह मिल गई थी।

लीड रोल के लिए महमूद से संपर्क किया गया, तो उन्होंने भी मना कर दिया। फिर राज कपूर और शशि कपूर से ऋषिकेश दा ने संपर्क किया तो वे भी राजी नहीं हुए। अंत में राजेश खन्ना को लीड भूमिका मिली, तो उन्होंने तो अपने लाजवाब अभिनय से इस फिल्म के साथ किरदार को भी अमर ही बना दिया।

बाबू मोशाय राजकपूर ने कहा था

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राजेश खन्ना आनंद सहगल के रूप में फिल्म में अपने दोस्त भास्कर बनर्जी यानी कि अमिताभ बच्चन(Amitabh Bachchan) को बाबू मोशाय कहकर पुकारते हैं। ऋषिकेश दा को राज कपूर(Raj Kapoor) बाबू मोशाय कहते थे और राज कपूर को ही ध्यान में रखकर ऋषिकेश दा ने यह कहानी लिखी थी। राज कपूर तब बहुत बीमार भी पड़ गए थे। उनके बचने के आसार भी बहुत कम थे। फिल्म आखिरकार राजेश खन्ना के हाथों में चली गई।

अमर बन गई मूवी

‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं’ इस डायलॉग ने तो फिल्म को अमर ही कर दिया। एक खुशमिजाज कैंसर मरीज का किरदार जिस तरीके से राजेश खन्ना(Rajesh Khanna) ने इस फिल्म में निभाया, उसके लिए आज तक लोग इस फिल्म को देखना चाहते हैं।  फिल्म के संवाद शोले और मुग़ल-ए-आज़म जैसी फिल्मों के डायलॉग्स की तरह लोकप्रिय हो गए। आनंद के डायलॉग्स में जिंदगी के सच का प्रतिबिंब भी दिख जाता है।

फिल्म के कई संवाद आज भी लोगों की आंखों से आंसू निकाल देते हैं। गीतकार गुलजार ने फिल्म के लिए दो गाने ‘मैंने तेरे लिए’ और ‘ना जिया लागे ना’ लिखे थे, जो आज भी खूब सुने जाते हैं।

लोकप्रिय हो गए डायलॉग्स

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‘बाबू मोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं’, यह फिल्म का सबसे लोकप्रिय डॉयलॉग है। इसके अलावा ‘यह भी तो नहीं कह सकता कि मेरी उम्र तुझे लग जाए !’ और ‘आज तक तुम बोलते आए और मैं सुनता आया, आज मैं बोलूंगा और तुम सुनोगे’ जैसे डायलॉग्स भी खूब प्रसिद्ध हुए थे। इस फिल्म के बाद से अमिताभ बच्चन(Amitabh Bachchan) ज्यादा पहचाने जाने लगे थे।

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झोली में खूब गिरे अवार्ड्स

फिल्म आनंद को 1971 में बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। इसके अगले ही साल 1972 में इसने बेस्ट फीचर फिल्म के साथ 6 फिल्मफेयर अवार्ड भी अपने नाम किए थे।

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