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आखिर किससे शादी करना चाहती थीं लता मंगेशकर, जानिये उनकी पूरी दास्तान

Lata Mangeshkar Biography In Hindi: लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय गायिका हैं. फिल्म इंडस्ट्री को छ: दशकों तक अपनी सुरीली आवाज़ से उन्होंने सजाया है. सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में उन्हें सुनने वाले बड़ी तादाद में हैं. लता जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन संगीत को ही समर्पित कर दिया. उनके चाहने वाले तो उन्हें साक्षात मां सरस्वती का अवतार मानते हैं. उनके बेहतरीन काम को सराहते हुए भारत सरकार ने भी उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया. लेकिन कामयाबी का एक नया कीर्तिमान रचने वाली लता दीदी का पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा है. लता मंगेशकर ने अपने पूरे करियर में हजार से ज्यादा हिंदी फिल्मों में गीत गाए हैं। उन्होंने अलग अलग भाषाओं में तकरीबन पांच से छह हजार गाने गाये हैं. वे 36 से ज्यादा भाषाओं में गीत गा चुकी हैं जो अपने आप में एक कीर्तिमान है. मुख्यत: उन्होंने हिंदी, मराठी और बंगाली में गाने गाए हैं।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर 1929 को मध्य प्रदेश के इन्दौर में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर और माँ का नाम शेवंती था. उनके पिता एक मराठी संगीतकार, शास्त्रीय गायक और थिएटर एक्टर थे जबकि उनकी मां गुजराती घरेलू महिला थीं। दीनानाथ मंगेशकर की पहली पत्नी का नाम नर्मदा था जिसकी मृत्यु के बाद उन्होंने उसी की छोटी बहन शेवंती से शादी कर ली थी. पंडित दीनानाथ का सरनेम पहले हार्डीकर था जिसे बदल कर उन्होंने मंगेशकर कर दिया। वे गोआ में मंगेशी के रहने वाले थे और इसी के आधार पर उन्होंने अपना नया सरनेम मंगेशकर रख लिया था.

हेमा कैसे बन गई लता(Hema Mangeshkar)

जब लता का जन्म हुआ तब उनका नाम हेमा रखा गया था. बाद में दीनानाथ को अपने नाटक के एक महिला किरदार लतिका का नाम इतना पसंद आया कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम भी लता रख दिया. पांच भाई बहनों में लता सबसे बडी थी. उनके बाद मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ का जन्म हुआ। बचपन से ही घर में गीत-संगीत और कला का माहौल था. लता जब पांच वर्ष की हुईं तो उनके पिता उन्हें संगीत सिखाने लगे। साथ ही पिता के नाटकों में लता अभिनय भी करने लगीं।

क्यों नहीं जा पायी स्कूल

लता जब थोड़ी बड़ी हुई तो बाकी बच्चों की तरह उन्हें भी स्कूल भेजा गया. लेकिन पहले ही दिन उनकी टीचर से अनबन हो गई. दरअसल लता अपने साथ छोटी बहन आशा को भी स्कूल ले गईं। लेकिन टीचर ने आशा को कक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी इससे लता को गुस्सा आ गया और उन्होंने स्कूल जाने से इनकार कर दिया.1942 में उनके पिता की मृत्यु हो गई. तब लता केवल 13 वर्ष की थी। बड़ी बेटी होने के नाते परिवार का पूरा बोझ अब उनपर आ गया था। नतीजा फिर कभी उन्हें पढाई करने का मौका भी नहीं मिला.

अभिनय से की थी शुरुआत(Lata Mangeshkar Career In Hindi)

लता को अभिनय पसंद नहीं था. लेकिन घर की जैसी हालत थी उसमें वो कोई भी काम करने के लिए तैयार हो गई थी. ऐसे में नवयुग चित्रपट मूवी कंपनी के मालिक मास्टर विनायक मंगेशकर और उनके करीबी लोगों ने लता को काम दिलवाने में काफी मदद की. इस दौरान लता ने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। मंगला गौर (1942), माझे बाल (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी मां (1945), जीवन यात्रा (1946) जैसी फिल्मों में लता छोटी छोटी भूमिकाओं में नजर आती रहीं. और इस तरह उनके करियर की शुरुआत हो गई.

गायन के क्षेत्र में पहला कदम

लता को पहली बार 1942 में सदाशिवराव नेवरेकर ने एक मराठी फिल्म में गाने का अवसर दिया। गाना रिकॉर्ड भी किया गया लेकिन फिल्म के फाइनल कट में वो गाना हटा दिया गया। 1942 में रिलीज हुई मंगला गौर में लता की आवाज लोगों को पहली बार सुनने को मिली। इस गाने की धुन दादा चांदेकर ने बनाई थी। 1943 में प्रदर्शित मराठी फिल्म गजाभाऊ में लता ने हिंदी गाना “माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू” गाया। शुरू में गायिका के तौर पर काम पाने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा था. कई संगीतकारों ने उनकी पतली आवाज़ के कारण उन्हें काम देने से साफ़ मना कर दिया था। उस समय की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका नूरजहाँ के साथ लता जी की तुलना की जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई.

मुंबई का सफर

1945 में लता मंगेशकर मुंबई शिफ्ट हो गईं और अपने करियर को नए तरीके से आकार देना शुरू किया. उन्होंने भिंडीबाजार घराना के उस्ताद अमन अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। फिल्म बड़ी मां (1945) में गाए भजन “माता तेरे चरणों में” और 1946 में रिलीज हुई आपकी सेवा में लता द्वारा गाए गीत “पा लागूं कर जोरी” को लोगों ने खूब पसंद किया. लता की प्रतिभा को पहचानकर गुलाम हैदर उन्हें शशधर मुखर्जी के पास ले गए. हैदर ने उनसे अपनी फिल्म में लता को लेने की सिफारिश की। लेकिन उन्होंने भी लता की पतली आवाज का हवाला देते हुए उनसे गाना गवाने से इनकार कर दिया. इसपर हैदर ने भदकते हुए कहा कि आने वाले दिनों में लता पूरी फिल्म इंडस्ट्री पर छा जाएगी और सारे निर्माता-निर्देशक लता के पैरों में गिर कर उनसे अपनी फिल्मों में गाने की मिन्नत करेंगे। गुलाम हैदर ने लता से 1948 में एक गीत दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा गवाया। जो सही मायने में उनका पहला हिट माना जा सकता है। लता ने भी गुलाम हैदर को अपना गॉडफादर माना था. सबसे पहले लता की प्रतिभा को उन्होंने ही पहचाना था.

सबसे अलग बनाई अपनी पहचान

लता ने फिल्मों में गाने की शुरुआत की तब वहां नूरजहां और शमशाद बेगम जैसी गायिकाओं का एकक्षत्र राज था। खुद लता भी इनकी गायिकी को पसंद करती थीं. लेकिन वो समझ चुकी थीं कि अगर उन्हें आगे बढ़ना है तो इन गायिकाओं से अलग उन्हें अपनी पहचान बनाई पड़ेगी. इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत करके उर्दू और हिंदी शब्दों के सही उच्चारण सीखे. साल 1948 में उन्होंने फिल्म जिद्दी में एक गाना गाया था “चंदा रे जा रे जा रे”. ये गाना जब रेडियो पर आया दर्शकों में ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि इसे किसने गाया है. सैकड़ों की तादाद में लोगों ने रेडियो में पात्र लिखकर इस गाने की गायिका का नाम पूछा. जिसके बाद रेडियो पर पहली बार लता मंगेशकर का नाम अनाउंस किया गया. 1949 में खेमचंद प्रकाश ने लता से “आएगा आने वाला” गीत गवाया जिसे मधुबाला पर फिल्माया गया था। यह गीत जबरदस्त तरीके से हिट हुई। इसके बाद लता ने ऐसे कई सुपरहिट गाने फिल्म इंडस्ट्री को दिए.

बन गई सबकी चहेती गायिका

1950 से 1970 के दौर में एक से बढ़कर एक गायक, संगीतकार, गीतकार और फिल्मकार हुए हैं. उस वक्त हर किसी की पहली पसंद लता मंगेशकर ही हुआ करती थी. लता ने भी उस दौर के सभी मशहूर संगीतकार के साथ काम किया. इन संगीतकारों के साथ लता ने अनेक यादगार गीत गाए जो आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं. कई फिल्में तो सिर्फ इसलिए सफल हो गईं क्योंकि इसमें लता मंगेशकर के गाए गाने मौजूद थे. उन्होंने अपने हर गाने को अपनी मेहनत और लगन से बेहद खास बना दिया. रोमांटिक, क्लासिकल, भक्ति या देशभक्ति हर तरह के गाने उन्होंने गाये और सबमें अपनी अमिट छाप छोड़ी. उनके द्वारा गाए गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों” को सुन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भी आँखें भर आई थी। संगीतकार लता के पास कठिन से कठिन गीत लाते थे और लता उन्हें बड़ी आसानी से गा देती थी।

नए संगीतकारों के साथ भी किया काम

अस्सी के दशक में कई नए संगीकार उभर कर आए। अनु मलिक, शिवहरी, आनंद-मिलिंद और राम-लक्ष्मण जैसे संगीतकारों ने भी लता से गीत गवाना पसंद किया। एक बार फिर से उनके गाये गानों की लोकप्रियता आसमान छू रही थी. लता हमेशा कहती रहीं कि अगर नए संगीतकार उनके पास अच्छे गीत का प्रस्ताव लाते हैं तो उन्हें गीत गाने में कोई समस्या नहीं है। लगभग सत्तर सालों तक भारतीय सिनेमा लता के गाये गीतों से गूंजता रहा. उन्होंने मधुबाला से लेकर तो माधुरी दीक्षित तक को अपनी आवाज दी। खास बात यह है कि उनकी लता आवाज कभी भी किसी अभिनेत्री पर मिसफिट नहीं लगी। शाहरुख खान ने एक बार लता के सामने मजाक में कहा भी था कि काश उन पर भी कोई गीत लता दीदी की आवाज में फिल्माया जाता।

विवादों से भी रहा है नाता

अक्सर सफेद साड़ी में नजर आने वाली लता ने हमेशा अपना करियर भी बेदाग़ रखने की ही कोशिश की लेकिन फिर भी कुछ विवाद उनके खाते में भी हैं. सचिन देव बर्मन से एक बार उनका मनमुटाव हो गया था और दोनों ने पांच साल तक साथ काम नहीं किया। इसी तरह मोहम्मद रफी और लता गीतों की रॉयल्टी पर एकमत नहीं हो सके और उन्होंने भी साथ काम करना बंद कर दिया. सी. रामचंद्र और ओपी नैयर से भी उनके छोटे मोटे विवाद रहे.

जब हुई जान लेने की कोशिश

सबकी चहेती गायिका लता मंगेशकर की एक बार किसी ने जान लेने की भी कोशिश की थी. साल 1962 में एक दिन सुबह उठते ही उन्हें पेट में जबरदस्त दर्द हुआ। उनकी हालत ऐसी थी कि अपनी जगह से हिलने में भी उन्हें दिक्कत होने लगी। डॉक्टर से चेकअप करवाने पर पता चला कि उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था। हालांकि उन्हें मारने की कोशिश किसने की, इस बारे में आज तक खुलासा नहीं हो पाया।

अकेले जिंदगी गुजारने का फैसला

लता मंगेशकर को बचपन से ही परिवार का बोझ उठाना पड़ा था। पूरे परिवार को संभालने में वे ऐसी उलझीं कि अपनी शादी के बारे में उन्हें सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली. एक इंटरव्यू में संगीतकार सी. रामचंद्र ने कहा था कि लता उनसे शादी करना चाहती थीं, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया क्योंकि वह पहले से शादीशुदा थे। वो अलग बात है कि सी. रामचंद्र ने इस घटना के बाद अपनी एक अन्य महिला मित्र शांता से दूसरी शादी कर ली थी. लता ने इस बारे में कभी खुल कर नहीं कहा, पर उनके करीबियों का मानना है कि सी. रामचंद्र के व्यक्तित्व से लता बहुत प्रभावित थीं और उन्हें पसंद भी करती थीं। 1958 में उन्होंने सी. रामचंद्र के साथ काम करना भी बंद कर दिया था. बाद में लता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक रेकॉर्डिस्ट इंडस्ट्री में मेरे बारे में उल्टी-सीधी बातें फैला रहा था और मैंने सी. रामचंद्र से कहा कि वो उसे हटा दें। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसलिए मैंने उनके साथ काम न करने का फैसला किया.

सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार लेने से किया था इनकार

लता के गाये गीतों की सूची बहुत लंबी है. खुद लता भी नहीं जानती कि उन्होंने कितने गाने गाए क्योंकि उन्होंने इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा। गिनीज़ बुक में भी उनका नाम शामिल किया गया था, लेकिन इसको लेकर भी खासा विवाद हुआ। लता मंगेशकर को अपने पूरे करियर में अनगिनत सम्मान और पुरस्कार मिले हैं. उन्होंने कई पुरस्कारों को लेने से मना भी कर दिया. 1970 के बाद उन्होंने फिल्मफेयर को कह दिया कि वे सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार नहीं लेंगी और उनकी बजाय नयी गायिकाओं को यह पुरस्कार दिया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण पुरस्कार :

1969 – पद्म भूषण

1989 – दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

1999 – पद्म विभूषण

2001 – भारत रत्न

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

1972 – सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (फिल्म परी)

1974 – सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (फ़िल्म कोरा कागज़)

1990 – सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (फिल्म लेकिन)

फिल्मफेयर अवार्ड्स

1959 – आजा रे परदेसी (मधुमती)

1963 – काहे दीप जले कही दिल (बीस साल बाद)

1966 – तुम मेरे मंदिर तुम मेरी पूजा (खानदान)

1970 – आप मुझसे अच्छे लगने लगे (जीने की राह से)

1993 – फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड

1994 – दीदी तेरा देवर दीवाना (हम आपके हैं कौन)

2004 – फ़िल्मफ़ेयर स्पेशल अवार्ड: 50 साल पूरे करने वाले फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स के अवसर पर एक गोल्डन ट्रॉफी प्रदान की गई

महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार

1966 – सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका

1966 – सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक आनंदघन नाम से

1977 – जैत रे जैत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका

1997 – महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार

2001 – महाराष्ट्र रत्न

बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स

लता मंगेशकर को बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का पुरस्कार इन फिल्मों के लिए मिला-

1964 – वो कौन थी

1967 – मिलन

1968 – राजा और रंक

1969 – सरस्वतीचंद्र

1970 – दो रास्ते

1971 – तेरे मेरे सपने

1972 – पाकीज़ा

1973 – बॉन पलाशिर पदबाली (बंगाली फिल्म)

1973 – अभिमान

1975 – कोरा कागज़

1981 – एक दूजे के लिए

1983 – A Portrait Of Lataji

1985 – राम तेरी गंगा मैली

1987 – अमरसंगी (बंगाली फिल्म)

1991 – लेकिन

उनको मिले अनगिनत पुरस्कारों में से ये बस नाम हैं. इसके अलावा मध्यप्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर के नाम पर एक पुरस्कार भी स्थापित किया है।

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