कोरोना वायरस (CoronaVirus) पर इम्यूनिटी और एंटीबॉडीज को लेकर पूरे विश्व में कई रिसर्च की जा चुकी हैं। अब देश के डॉक्टरों ने एंटीबॉडी पर नई स्टडी की है।
हाल ही में मुंबई के जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल (J.J. Group of Hospital) में कोरोना वायरस (CoronaVirus) पर इम्यूनिटी और एंटीबॉडीज को लेकर एक स्टडी की गई। हास्पिटल के कोरोना से पीड़ित स्टाफ पर की गई इस स्टडी के मुताबिक कोविड-19 (Covid-19) एंटीबॉडीज शरीर में दो महीने तक जीवित रहती हैं। इस स्टडी को मुख्य तौर से डॉक्टर निशांत कुमार ने किया है।
डॉक्टर निशांत कुमार के मुताबिक, ‘जेजे, जीटी और सेंट जॉर्ज अस्पताल (J.J, G.T and Saint George Hospital) के लगभग 800 कर्मचारियों पर की गई, हमारी रिसर्च में 28 लोग RT-PCR टेस्ट में कोरोना से संक्रमित पाए गए थे। ये टेस्ट अप्रैल के आखिरी और मई के शुरूआती दिनों में किए गए थे। जून में किए गए सर्वे में कोरोना से पीड़ित 25 संक्रमितों में से किसी के शरीर में भी एंटीबॉडी नहीं पाई गई।’ ये स्टडी इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ (International Journal of Community Medicine and Public Health) में सितंबर के महिने में छापी जाएगी।
जेजे हॉस्पिटल (J.J Hospital) में किए गए सीरो सर्वे में 34 ऐसे लोग भी शामिल थे जिनका तीन से पांच हफ्ते पहले RT-PCR टेस्ट हुआ था और वो कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। डॉक्टर निशांत कुमार के अनुसार, ‘3 हफ्ते पहले संक्रमित हुए 90% लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज पाई गई थी, जबकि 5 हफ्ते पहले कोरोनासे संक्रमित हुए लोगों में से सिर्फ 38.5% लोगों के शरीर में ही एंटीबॉडीज पाई गई हैं.’
देश में चल रहे वैक्सीन के प्रयोग और हॉन्ग कॉन्ग में एक बार फिर से हुए संक्रमण का पहला डॉक्यूमेंटेड मामला सामने आने के बाद कोविड एंटीबॉडी (Covid Antibodies) की चर्चा और तेजी से बढ़ी है। मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज़ एक बार संक्रमण होने के बाद उसको संक्रमण फिर से न हो इससे उसका बचाव करती हैं।
डॉक्टर निशांत कुमार ने जून के महिने में एक फाउंडेशन और जेजे हॉस्पिटल (J.J Hospital) के साथ मिलकर कुछ कर्मचारियों पर एक और एंटीबॉडी सर्वे किया था, इस सर्वे में पता चला था कि 10 में से एक कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव था यानी वो पहले वायरस(CoronaVirus) के संपर्क में आ चुका था। इस सर्वे से ये भी पता चला था कि एंटीबॉडी बहुत तेजी के साथ कम होती हैं। डॉक्टर कुमार के मुताबिक, ‘सर्वे के नतीजे बताते हैं कि वैक्सीन की रणनीति पर एक बार फिर से काम करने की जरूरत है.’
कोरोना(CoronaVirus) के मरीजों पर हुई स्टडी के रिसर्चर्स का ये भी मानना है कि वैक्सीन की एक खुराक देने की जगह कई खुराक देने की जरूरत होगी, इससे पहले की गई स्टडीज़ में ये बात सामने आई थी कि बिना लक्षण वाले मरीजों में एंटीबॉडी का वो लेवल नहीं पाया जाता है जो कोरोना संक्रमण के गंभीर या लक्षण वाले मरीजों में होता है।
इससे पहले कई रिसर्चर्स मानते थे कि कोरोना वायरस (CoronaVirus) के मरीजों में इम्यूनिटी डेवलप हो जाती है और उनको फिर से संक्रमण नहीं हो सकता। हॉन्ग कॉन्ग में दोबारा से हुए संक्रमण का मामला भी इस बात का सबूत है कि कुछ संक्रमित हुए लोगों में एंटीबॉडी का लेवल कुछ महीनों के बाद कम हो जाता है, सबसे मजबूत इम्यूनिटी सिस्टम उन लोगों का पाया गया है जो काफी गंभीर रूप से कोरोना को झेल चुके हैं। हालांकि, यह अभी भी साफ नहीं है कि ये सुरक्षा कितनी मजबूत है और इम्यूनिटी कब तक कायम रह सकती है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (Public Health Foundation of India) के महामारी स्पेशलिस्ट गिरिधर आर बाबू के मुताबिक, ‘जिन मरीजों में कोरोना के लक्षण ज्यादा वक्त तक रहते हैं उनमें कम से तीन-चार महीने तक एंटीबॉडीज मौजूद रहती हैं.’
वहीं WHO की तकनीकी प्रमुख मारिया वान केरखोव का कहना है कि जिन मरीजों में जरा से भी लक्षण हैं, उनमें संक्रमण के खिलाफ इम्यून रिस्पॉन्स मौजूदा होता है, लेकिन ये अब तक पता नहीं चल सका है कि ये इम्यून रिस्पॉन्स कितना कारगर है और कितने दिनों तक शरीर में मौजूद रहता है। वान केरखोव के मुताबिक, ‘ये बहुत जरूरी है कि हॉन्ग कॉन्ग जैसे मामलों पर नजर बनाई रखी जाए लेकिन किसी भी नतीजे तक पहुंचना जल्दबाजी होगी। ‘ उन्होंने कहा कि स्टडीज़ के दौरान ये समझने की कोशिश की जाती है कि संक्रमित हुए मरीज(CoronaVirus) में किस तरह का संक्रमण हुआ है और ठीक हुए मरीज की न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कैसी है।
देश के लोगों के बीच भी ये सवाल उठ रहा है की एक बार संक्रमण होने के बाद फिर से कोरोना संक्रमित होने का खतरा कितना बना रहता है। पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन विभाग (Internal Medicine Department of PGI) के प्रो. आशीष भल्ला के अनुसार एक नए वायरस स्ट्रेन की मौजूदगी रिकवर कर चुके मरीज को दोबारा से संक्रमित कर सकती है। प्रोफेसर भल्ला के मुताबिक, ‘संक्रमण और बीमारी दो अलग-अलग चीजें हैं। कोरोना संक्रमण (Corona Infection) तब हो सकता है जब वायरस शरीर के अंदर पहुंचता है, लेकिन बीमारी तभी होती है जब ये वायरस मल्टीप्लाई होना शुरू हो जाता है और आपके इम्यून रिस्पॉन्स को अपने काबू में कर लेता है.’
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साथ ही प्रोफेसर भल्ला ने बताया कि, ‘वायरस शरीर में तब भी मौजूद रह सकता है जब मरीज का इम्यूनिटी सिस्टम एंटीजन पर भारी पड़ रहा हो। आपकी नेजल कैविटी में वायरस की सिर्फ मौजूदगी हकीकत में संक्रमण की पहचान नहीं हो सकती जब तक कि किसी व्यक्ति में लक्षण पूरी तरह से साबित न हो जाएं। ‘यह वायरस बहुत तेजी से फैलता है यानी की बहुत जल्दी म्युटेट करता है, और कहीं अगर वायरस ने म्युटेट कर लिया और एक नया स्ट्रेन डेवलप हो गया, तो आपको फिर से संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। दक्षिण कोरिया और चीन में कुछ इसी तरह का संक्रमण अभी देखा जा रहा है। लेकिन फिर से संक्रमित हुए लोगों में कितने लोग फिर से गंभीर रूप से बीमारी होते हैं, यह अभी भी बहुत साफ नहीं है, क्योंकि बिमार हुए लोगों की गिनती बहुत ही कम है.’
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