भारत एक बहुत ही प्राचीन देश है। यहां की संस्कृति और यहां का इतिहास दुनियाभर में सबसे ज्यादा पुराना और महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर आप थोड़ा सा पीछे जाएं तो आप खुद जान पाएंगे कि विश्व के इतिहास में भारत कितना ज्यादा महत्वपूर्ण देश रहा है, जिसकी खोज में कई विदेशी यहां आए और यहां की खासियत देखने और समझने के बाद इसका लाभ भी उठाया। हमारे इस भारत देश में कई सल्तनत के राजाओं ने राज किया और अपने-अपने समय की कुछ निशानियां छोड़ते गए। किसी ने स्मारक के रूप में अपनी निशानी छोड़ी तो किसी ने विशालकाय किले के रूप में। ऐसे में आज हम आपको ऐसे ही एक प्राचीन और बहुत ही महत्वपूर्ण किले के बारे में बताने जा रहे हैं जो कई मायनों में बहुत ही खास है।
हम बात करने जा रहे हैं आमेर के किले की जो जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। बता दें कि अपनी अनूठी वास्तुशैली और शानदार संरचना के लिए मशहूर यह किला राजस्थान के महत्वपूर्ण एवं सबसे विशाल किलों में से एक है। यही वजह है कि आमेर का किला राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो आमेर के किले के चारों तरफ उंची और मोटी दीवारे हैं जो तकरीबन 12 किलोमीटर तक फैली हुई हैं। इसके अलावा इस किले की खूबसूरती भी देखते ही बनती है क्योंकि यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। ऐसे में बीचों-बीच मौजूद यह किला देखने में बेहद ही आकर्षक लगता है।
वैसे तो राजस्थान अपने बड़े-बड़े किलों और शाही स्मारकों के लिए हमेशा से ही मशहूर रहा है मगर यहां के आकर्षणों में ऐतिहासिक आमेर अपनी गौरवशाली कथाओं और नक्काशी, कलात्मक शैली, शीश महल के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। आमेर का किला उच्च कोटी की शिल्प-कला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। इस किले के अंदर बने महल अपने आप में बेमिसाल हैं। इन्हीं महलों में शामिल है शीश महल जो अपनी आलीशान अद्भुत नक्काशी के लिए जाना जाता है। आपको यह जानकर काफी गर्व होगा कि इस ऐतिहासिक किले को राजा मानसिंह, राजा जयसिंह, और राजा सवाई सिंह ने बनवाया था जो अपनी 200 साल पुरानी ऐतिहासिक गौरवशाली गाथा प्रस्तुत करता है।
आमेर किला हिंदू धर्म के लिए मुख्य माना गया है। यहां पर हिंदू धर्म क़ी बहुत सी चित्रकारी और आकृतियां मौजूद हैं। ना सिर्फ भारत बल्कि विश्व भर में मशहूर आमेर किले का नाम अम्भा माता के नाम पर पड़ा था। बता दें कि अम्भा माता को मीनाओ की देवी माना जाता है। किले के बारे में बात करें तो आपको बता दें कि इस किले को लाल पत्थरों से बनाया गया है और इस महल के गलियारे सफेद संगमर्मर के बने हुए हैं। चूंकि यह किला काफी ऊंचाई पर बना हुआ है इसलिए इस तक पहुंचने के लिए काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।
राजस्थान स्थित आमेर के किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शीश महल, ओट जय मंदिर और सुख निवास भी बना हुआ है, जहां हमेशा ठंडी और ताज़ा प्राकृतिक हवाएं चलती रहती हैं। यही वजह है कि आमेर किले को कई बार आमेर महल के नाम से भी पुकारा जाता है। किले के प्रवेश द्वारा गणेश गेट पर चैतन्य पंथ की देवी सिला देवी का मंदिर बना हुआ है, जो राजा मानसिंह को दिया गया था जब उन्होंने 1604 में बंगाल में जैसोर के राजा को पराजित किया था। बता दें कि करीब छ: शताब्दियों तक यह नगरी ढूंढाढ़ क्षेत्र के सूर्यवंशी कछवाहों की राजधानी रही है। सर्वप्रथम इस किले का निर्माण सन 1558 में राजा भारमल ने शुरू करवाया था।
हालांकि इसके निर्माण की प्रक्रिया बाद में राजा मानसिंह और राजा जयसिंह के समय में भी जारी रही। करीब सौ वर्ष के अंतराल के बाद राजा जयसिंह सवाई के काल में यह किला पूरी तरह से बन कर तैयार हुआ। यह भी बताया जाता है कि उसी दौर में कछवाहा राजपूत और मुगलों के बीच मधुर संबंध भी बने, जब राजा भारमल की पुत्री का विवाह अकबर से हुआ था। बाद में राजा मानसिंह अकबर के दरबार में नवरत्नों के रूप में शामिल हुए और उनके सेनापति बने। वही आमेर घाटी और इस किले का स्वर्णिम काल था।
यहां पर एक मोटा झरना है जिसके किनारे आमेर किले को बनाया गया है। दिन के वक्त आमेर किले क़ी परछाई इस मोटे झरने पर पड़ती है और इस झरने में आमेर किला झलकता हुआ दिखाई देता है। हालांकि, बाद में कछवाहों द्वारा अपनी राजधानी जयपुर स्थानांतरित कर देने की वजह से आमेर के किले का वैभव लुप्त होने लगा मगर यह देश के लिए बहुत ही सम्मान की बात है कि यह गौरवशाली किला आज भी उसी शान से खड़ा है।
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