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महिला किसान दिवस 2018: महिला किसान को भी बराबर का हक़ मिलना चाहिए

महिला किसान दिवस 2018 (Mahila Kisan Diwas)

आज के दिन को हम लोग महिला किसान दिवस के रूप में मानते है। महिलाओं को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है। विकासशील देशों में इनकी भूमिका ओर भी महत्वपूर्ण है, इसके बावजूद भी महिलाओं को ज्यादातर मजदूर ही समझा जाता है। ज्यादातर महिलाओं को न तो खेती के लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है औ न ही बेहतर फसल होने पर उन्हें ईनाम दिया जाता है।

जिन विकसित देशों में महिलाएं आर्थिक रूप से अपना योगदान दे रहीं उनमें 79 प्रतिशत महिलाएं कृषि क्षेत्र से हैं, जबकि पूरी दुनिया में यह आंकड़ा 48 प्रतिशत तक है। आज भी बड़ी संख्या में ऐसे परिवार है जिनको महिलाये चला रही है लेकिन उनकी पहुंच को आज भी सीमित रखा गया है। ग्रामीण महिलाएं पुरुषो की अपेक्षा ज्यादा काम करती है महिलाएं कृषि कार्य के साथ साथ घर और बच्चों की देखभाल भी करती है।

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पुरुषो की अपेक्षा ज्यादा मेहनत करने बावजूद भी कृषि लायक खेतो पर मालिकाना हक़ पुरुषो को ही होता है अगर हम अमेरिका की बात करे तो 80 फीसदी जमीन पर हक पुरुषों का है। एशियन देशों में ये स्थिति ओर भी ज्यादा ख़राब है एशिया देशों की बात करे तो यह पर महिलाओ को सिर्फ 10 प्रतिशत से भी कम है। इसके अलावा और क्षेत्रों में भी बराबर का अधिकार नहीं है।

हम आंकड़ों की बात करे तो कृषि उत्पादनो में महिलाओ का योगदान 20 से 30 प्रतिशत ही है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर महिला और पुरुषो में भेद भाव कम किया जाये तो ये स्थिति सुधर सकती है।

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 6 करोड़ से ज्यादा महिलाएं खेती कर रही है। महिला किसान दिवस (Mahila Kisan Diwas) की मदद से महिलाओ को जागरूक किया जा रहा है कृषि में बड़े योगदान की वजह से इन महिलाओ को सरकार के द्वारा सम्मानित भी किया जाने लगा है मेंधावल गाँव की सम्मानित महिला किसान गुजराती देवी बताती है अगर आज हम खेती में पिछड़े हुए है तो इसका कारण तकनिकी ज्ञान की कमी है अगर किसान महिला दिवस पर सरकार महिलाओ को आधुनिक खेती के बारे में छोटे छोटे कैंप लगाए तो यह प्रयास सराहनीय होगा।

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महिला किसान दिवस (Mahila Kisan Diwas) के उपलक्ष्य में आज हम उन महिलाओं की कहानी बताएगे, जिन्होंने समाज में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है।

1. नीलम त्यागी वर्ष 2000 में अध्यापिका के रूप में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ीं। बचपन से ही ये गरीबो के लिए कुछ करना चाहती थी इसलिए इन्होने वर्ष 2002 में उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। आज के दिन उनके दिखाए रास्ते पर 5000 से भी ज्यादा महिलाएं काम कर रही है।

2. फरहीन ने एम.बी.ए करने के बाद लगभग 2 वर्ष नौकरी की। फरहीन के पिता आमो का व्यवसाय करते थे फिर एक दिन फरहीन के पिता शोभारानी नाम की महिला से मिले उन्होंने ग्रीन हाउस और पाली हाउस के बारे में बताया इसके बाद फरहीन ने फूलो का व्यवसाय करने की ठान ली।

3. शोभा रानी को बचपन से ही पेड़ पौधो का शौक था। शादी के बाद शोभा ने कुछ साल तक शिमला मिर्च की खेती की इस खेती करने के पीछे का मकसद खुद को व्यस्त रखना था लेकिन कुछ सालो में इस कार्य से शोभा ने काफी नाम और सम्मान मिला।

प्रशांत यादव

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