महाराष्ट्र में आखिर जिस बात का डर दूसरे, तीसरे और चौथे नम्बर की पार्टी को सता रहा था। आखिरकार वही हूआ, मंगलवार देर शाम को राज्य में राष्ट्रपति शासन का ऐलान कर दिया गया। इस चुनाव के बाद जो नतीजे आएं वह इतने हैरान करने वाले नहीं थें, जितना कि शिव सेना का रवैया, इस बार शिव सेना ने कई सारी रवायतों को तोड़ दिया। आज से पांच साल पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि शिव सेना प्रमुख के परिवार से कोई चुनाव लड़ेगा, लेकिन इस बार ऐसा हुआ। इसके बाद एक के बाद एक कई सारी रवायतें टूटती चली गई। पार्टी ने मुख्यंत्री पद का भी सपना देखा। भले ही ढाई साल के लिए लेकिन देखा जरूर, इसके बाद जब भाजपा ने इस 50:50 के फॉर्मूले से इंकार किया। तो शिव सेना ने दशकों पुराने गठबंधन को भी तोड़ने में देरी नहीं की।
लेकिन इसके बाद भी पार्टी के विधायकों और शिर्ष नेताओं को उम्मीद थी कि हम सरकार में लौटेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ केंद्र सरकार की शिफारिस पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। बतादें कि राष्ट्रपति कोविंद ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से जुड़ी उद्घोषणा पर मंगलवार की देर शाम को हस्ताक्षर कर दिया है। इसका मतलब यह होता है कि चुनाव होने के बाद भी राज्य में विधानसभा निलंबित रहेगी। राज्यपाल ने अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करते हुए सूबे में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की।
इस बीच गृहमंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि गवर्नर की रिपोर्ट के मुताबिक उनके तरफ से हर संभव कोशिश करने के बाद भी महाराष्ट्र की सरकार का गठन संविधान के मुताबिक नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में राज्यपाल के पास राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 356 के मुताबिक यह अनुशंसा की है।
गृह मंत्रालय ने आगे कहा है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल का मानना था कि चुनावी प्रक्रिया समाप्त हुए 15 दिन बीत गए हैं और कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना बेहतर होगा।
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