हम जानते है कि दिन ,सप्ताह ,महीने ,साल के लिए हमे कैलेंडर की जरुरत पड़ती है। जो की दुनिया के अलग-अलग जगह के समय अनुसार बनाये गए है। कैलेंडर मे सबसे पहली रचना यहूदी कैलेंडर की हुई थी। जो की 3500 ईसा पूर्व बनाया गया था। यह एक सोलर कैलेंडर के अनुसार बनाया गया था। जो सूर्य और चांद की गति के आधार पर था। इसमें साल के महीने किसे मे 12 होते तो किसी मे 13 होते थे। और साल मे दिन किसी मे 353 या 385 होते थे। इसके 2500 साल बाद चाइनीज कैलेंडर आया। जिसे कैलेंडर का मूल रूप बताया गया था। और इसके बाद भारत मे विक्रम संवत को अपनाया। जिसको लेकर हर किसी की अलग-अलग राय होती है।
जिसको लेकर कई लोग बोलते है कि इसको नेपाल प्रथम राजा धर्मपाल भूमि वर्मा विक्रमादित्य ने बनाया था। तो कोई यह दावा करता है कि इसे भारत के सम्राट विक्रमादित्य ने बनाया था। इस विक्रम संवत मे 1 साल मे 12 महीने होते है और इसमे दुनिया मे सबसे पहले 1 हफ्ते मे 7 दिन का कैलेंडर की शुरुआत हुई। इसे सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर तैयार किया गया।
प्राचीन समय मे रोमन कैलेण्डर में पहले 10 माह होते थे और वर्ष का पहला दिन 1 मार्च से होता था। इसमें कई सालो बाद जनवरी ओर फरवरी महा जोड़े गए। जिससे फिर साल का नया दिन 1 जनवरी को मनाया जाने लगा।
ग्रेगोरियन कैलेंडर जो आज पूरी दुनिया इसका इस्तेमाल करती है और यह अंतरराष्ट्रीय कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सोलर कैलेंडर है। जिसमे साल मे 12 महीने होते है। फरवरी के महीने मे 28 या 29 दिन होते है और साल मे 52 सप्ताह और दिन 365 होते है। इस कैलेंडर मे हर 4 साल बाद 1 दिन जोड़ दिया जाता है। जिसमे साल के दिन 366 हो जाते है। यह इसलिए होता क्योकि पृथ्वी सूर्ये के चारो ओर चकर लगाने मे समय 356 दिन 5 घंटे ओर 45 सेकंड का समय लेती है। जिसमे 365 दिन के बाद बचा ये टाइम हर चार साल बाद जोड़ दिया जाता है। जिससे उस साल दिन 366 हो जाते है। जिसे हम लीप ईयर बोलते है। इस कैलेंडर आज पूरी दुनिया मे प्रचलन है।
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