Garbh Sanskar in Hindi: भारतीय संस्कृति में मनुष्य के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बनाए गए हैं और ये प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। इन संस्कारों में गर्भ संस्कार भी एक प्रमुश संस्कार माना जाता हैं। चिकित्सा विज्ञान में इस बात को स्वीकार किया जा चुका है कि गर्भस्थ शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है, किसी भी बात को सुनकर उसे ग्रहण भी करता है। माता के गर्भ में आने के बाद शिशु को संस्कारित किया जाता है तथा इससे आप दिव्य संतान की प्राप्ति भी कर सकते हैं। गर्भ संस्कार (Garbh Sanskar) से आप अपनी संतान को तेजस्वी और संस्कारी बना सकते हैं।
महाभारत काल में अर्जुन द्वारा अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह की जानकारी देने और अभिमन्यु द्वारा उसे ग्रहण करके सीखने की पौराणिक कथा है। इससे गर्भस्थ शिशु के सीखने की बात प्रामाणित है, सभी धर्मों में ये बात किसी ना किसी रूप में बताई गई है। जैन धर्म में गर्भस्थ भगवान महावीर के गर्भस्थ जीवन के बारे में आचार्य भद्रबाहू स्वामीजी ने कल्पसूत्र नाम के ग्रंथ में वर्णित किया है। बाइबल में गर्भस्थ मरियम और उनकी सहेली अलीशिबा दोनों के बीच संवाद के जरिए गर्भस्थ शिशु के संवेदनशील स्थिति की ओर सांकेतिक किया है। पौराणिक कथाओं में भक्त प्रहलाद जब गर्भ में थे तब उनकी मां को घर से निकाल दिया गया था और उस सम देवर्षि नारद मिले और उन्होंने उन्हें अपने आश्रम में शरण दी थी। वहां नारायण-नारायण का अखंड जाप चलाया था। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान परीक्षणों द्वारा ये सिद्ध हुआ है कि गर्भस्थ शिशु माता के जरिए सुनता और समझता है जिसे वो जन्म के साथ मरण तक याद रखता है। इसे सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण ही काफी है कि अगर सोनोग्राफी करते समय गर्भवती को सुई चुभोई जाती है तो गर्भस्थ शिशु तड़प जाता है और रोने लगता है, इसे सोनोग्राफी के नतीजों में आसानी से देखा जा सकता है।
मां बनना एक औरत के लिए ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। हर गर्भवती एक तेजस्वी शिशु को जन्म देकर अपना जन्म सार्थक कर सकती है। दुर्भाग्यवश इस संवेदनशील स्थिति को गर्भवती महिलाएं, उनका परिवार और ये समाज नजरअंदाज कर रहे हैं। गर्भ में पल रहे शिशु के मस्तिष्क का विकास गर्भवती की भावनाएं, विचार, आहार और वातारवरण पर निर्भर करता है। एक प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट का कहना है कि अगर गर्भवती आधे घंटे तक क्रोध या विलाप करती है तो उस दौरान गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास रुक जाता है। इसका नतीजा ये होता है कि शिशु की बौद्धिक क्षमता कम हो जाती है और जन्म के बाद उसे सोचने-समझने में काभी समस्या होती है। ये बहुत ही महत्वपूर्ण बात है जिसे हर कोई नहीं समझता है। गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क न्यूरोन सेल्स से बना होता है और अगर मस्तिष्क में न्यूरोन सेल्स की मात्रा ज्यादा होती है तो स्वाभाविक रूप से शिशु के बौद्धिक कार्यकलाप दूसरे शिशुओं की अपेक्षा बेहतर हो जाते हैं। आज की कम्यूटर भाषा में अगर इसे कहा जाए तो मस्तिष्क को इंसान के शरीर का हार्ड डिस्त होता है। ये हार्ड डिस्क गर्भवती के मस्तिष्क से जुड़ी होती है और गर्भवती के विचार, भावनाएं, जीवन की ओर देखने का नजरिया गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क तक पहुंचता है।
गर्भधारण से लेकर प्रसूति तक के 280 दिनों में घटने वाली हर घटना, हर विचार, उनकी मनोदशा, गर्भस्थ शिशु से उसका संवाद, सुख-दुख, डर, संघर्ष, विलाप, भोजन, दवाएं, ज्ञान-अज्ञान और धर्म-अधर्म सभी शिशु की मानसिकता पर छाए रहते हैं। अमेरिका के एक वैज्ञानिक चिकित्सिक के एक अध्ययन के बाद ये सामने आया कि गर्भावस्था के दौरान आहार में परिवर्तन, आहार में कमी, गलत आहार से गर्भस्थ शिशु को कई बिमारियों से घेर लेती है। शिशु के भावी जीवन में स्वास्थ्य संबंधी क्या तकलीफें हो सकती हैं, उनकी नींव गर्भावस्था से ही पड़ने लगती हैं। गर्भस्थ शिशु को तेजस्वी बनाने के लिए इन 3 खास बातों का ख्याल रखें..
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