Premature Baby Care Tips In Hindi: प्रीमेच्योर बेबी ऐसे बच्चे होते हैं जिनका जन्म प्रेगनेंसी के 9 महीने या 37 सप्ताह पूरे किए बिना ही हो जाता है. इसलिए समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को बहुत ज्यादा केयर की जरूरत होती है. हॉस्पिटल में उन्हें डॉक्टर की निगरानी में NICU में रखा जाता है. इस दौरान उनकी विशेष रूप से देखभाल की जाती है क्योंकि बच्चों के शरीर के अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हुए होते हैं. उनका इम्यून सिस्टम भी दूसरे बच्चों के मुकाबले बहुत कमजोर होता है. बस इस वक्त उन्हें थोड़ी सी अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. इस तरह बच्चों को किसी बड़े जोखिम से बचाया जा सकता है. दरअसल प्री टर्म बेबी का समय से पहले जन्म होने के कारण इनमें कई पोषक तत्वों की कमी होती है, जिस कारण वह अनेक गंभीर रोगों से ग्रसित हो सकते हैं. उनका डाइजेस्टिव सिस्टम भी बहुत कमजोर होता है. ऐसे बच्चों की जितनी अच्छी देखभाल हॉस्पिटल में हो सकती है उतनी घर में नहीं… इसलिए ऐसे प्रीमेच्योर बेबी को जन्म के बाद NICU में रखना बहुत जरूरी है. इस आर्टिकल के जरिए बाल रोग विशेषज्ञ (Pediatrician) सलाह पर हम जानेंगे कि घर पर प्रीमेच्योर बेबी की देखभाल कैसे करनी चाहिए..
प्रीमेच्योर बेबी को एक अतिरिक्त गर्माहट की जरूरत होती है. बेबी की मसल्स और स्किन के नीचे की चर्बी अन्य बच्चों के मुकाबले बहुत कम होती है, इसी ब्राउन फैट की वजह से बच्चों के शरीर में गर्मी बनी रहती है लेकिन शरीर में ब्राउन फैट बहुत कम होने के कारण बच्चे आसानी से हाइपोथर्मिक बन सकते हैं. इसलिए उन्हें ऊपरी तौर पर गर्म रखना बहुत जरूरी होता है इसीलिए प्रीमेच्योर बेबी को NICU (NEONATAL INTENSIVE CARE) में रेडिएंट वॉर्मर में रखा जाता है लेकिन जब तक बच्चे हॉस्पिटल में हैं, तब तक तो बच्चों को NICU में यह सुविधा मिल जाती है लेकिन जब बच्चों को घर लाया जाता है तो तब भी इनको हाइपोथर्मिया से कुछ सप्ताहों तक बचाने की आवश्यकता होती है इसलिए ऐसे बच्चों को स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट या कंगारू मदर केयर दिया जाना अनिवार्य है. जिसमें मां बच्चे को खुद से सटाकर अपने जिस्म की गर्मी देती रहती है.
एक सामान्य बच्चे को जब बच्चे को भूख लगती है तभी उन्हें दूध दिया जाता है. लेकिन प्रीमेच्योर बेबी को डिमांड फीडिंग की जगह शेड्यूल फील्डिंग करानी चाहिए. बच्चे को भूख ना भी लगी हो तब भी एक निश्चित अंतराल पर बच्चों को दूध पिलाते रहना चाहिए. उनका पेट हमेशा भरा रहना चाहिए. फील्डिंग की कमी से उन्हें निम्न रक्त शर्करा (hypoglycemia) ग्रसित होने का खतरा रहता है.
यूं तो हर बच्चे के लिए ब्रेस्टफीडिंग सबसे अच्छा विकल्प होता है और प्रीमेच्योर बेबी के मामले में ब्रेस्टफीडिंग सबसे अच्छा है. क्योंकि ब्रेस्ट मिल्क आसानी से पच जाता है. प्रीमेच्योर बेबी का अपरिपक्व पाचन तंत्र (Immature digestive system) होता है और मां के दूध में प्रोटीन की गुणवत्ता और अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते है. साथ में मां का दूध पीने से बच्चे को एलर्जी की संभावना भी कम रहती है, जबकि अन्य प्रकार के दूध को पचाना बच्चे के लिए कठिन होता है.
प्रीमेच्योर बेबी का ग्रोथ चार्ट अन्य नवजात शिशुओं के चार्ट से अलग होता है. प्रीमेच्योर बेबी के ग्रोथ चार्ट को फेंटन ग्रोथ चार्ट कहा जाता है, बच्चे की जांच और निगरानी ग्रोथ चार्ट के अनुरूप ही की जानी चाहिए.
प्रीमेच्योर बेबी में आयरन को स्टोर करने की क्षमता कम होती है जिसकी वजह से उसमें एनीमिया होने की संभावना ज्यादा होती है. इसी कमी को पूरा करने के लिए डॉक्टर की सलाह के अनुरूप बच्चे को 2 सप्ताह के बाद से आयरन सप्लीमेंट्स देना चाहिए. इसी प्रकार जब डॉक्टर को लगता है कि प्रीमेच्योर बेबी और ऑस्टियोपीनिया से ग्रस्त हैं तो चिकित्सक उन्हें विटामिन डी और कैल्शियम सप्लीमेंट्स देने की एडवाइज देते हैं.
इस प्रकार इस आर्टिकल में दिए गए कुछ उपायों के जरिए समय से पहले जन्मे बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल घर पर ही की जा सकती है और बच्चे को होने वाले किसी भी खतरे से बचाया जा सकता है.
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