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Yoga Sutras of Patanjali: सबसे पहले आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, पतंजलि के योग सूत्र वास्तव में एक किताब का नाम है। यह एक ऐसा किताब है जिसमें योग से जुड़ी हर बात को सार्थक तरीके से शब्दों में पिरोया गया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस किताब में मुख्य रूप से योग से जुड़े करीबन 195 सूत्रों के बारे में बताया गया है। इन सभी सूत्रों को चार अध्यायों में विभाजित किया गया है। योग का इतिहास भारत में काफी पुराना रहा है, यही से दुनिया के अन्य देशों में इसका प्रसार हुआ है। अंदरूनी मन और तन दोनों के विकास के लिए इसे काफी लाभकारी माना जाता है। आज इस आर्टिकल में हम आपको विशेष रूप से पतंजलि के योग सूत्रों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। (Yoga Sutras of Patanjali)
सबसे पहले आपको बता दें कि, यदि आपको इस बात का भ्रम है कि, महर्षि पतंजलि ने योग की रचना की तो आप गलत हैं। भारत में योग की शुरुआत करने वाले आदियोगी थे उन्होनें ही सबसे पहले योग का प्रचार दुनिया भर में करने के लिए अपने सात शिष्यों को इसका ज्ञान दिया था। बता दें, आदियोगी ने अपने जिन सातों शिष्यों को योग का ज्ञान दिया था उन्हें ही सप्तऋषि के नाम से जाता है। उन सात ऋषियों ने ही योग का प्रचार करते हुए उसे विभिन्न विशेषज्ञताओं के साथ आम लोगों तक पहुंचाने का काम किया। उन्हीं सात ऋषियों में से एक थे पतंजलि, चूँकि योग का ज्ञान काफी विशाल है जिसे आसानी से आम व्यक्ति नहीं समझ पाते।
इसलिए उन्होनें योग के मुख्य भागों को एकत्रित करते हुए उसके 195 सूत्र बनाएं और उन्हें चार भागों में विभाजित कर दिए। जिस तरह से मेडिकल साइंस में हर शरीर के अंग के लिए अलग डॉक्टर और इलाज उपलब्ध है। उसी प्रकार से योग के भी कुछ विशेष नियम और तरीके हैं।
योग के बारे में लोगों को आसान शब्दों में समझाने के लिए पतंजलि ने उसके सूत्र बनाकर उसे चार प्रमुख भागों में विभाजित किया है। यहां हम आपको उन्हीं चार भागों के बारे में बताने जा रहे हैं।
योगसूत्रों के प्रथम अध्याय को समाधिपाद के नाम से जाना जाता है। इस प्रथम अध्याय में योग गुरु पतंजलि ने कहा है कि, योग का अर्थ है अपने चित्त यानि कि मन के विकारों को दूर करना। इसे एक शब्द में “योगचित्तवृत्तिनिरोध” कहा गया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, मन में आने वाली विभिन्न भावों की एक श्रृंखला को चित्त कहा जाता है, इसे आप आसान शब्दों में इच्छा भी कह सकते हैं। पतंजलि के अनुसार विभिन्न मुद्राओं द्वारा इन इच्छाओं या चित्त को रोकना ही योग कहलाता है। पतंजलि के योग सूत्रों के इस प्रथम अध्याय में विशेष रूप से चित्त और इच्छाओं का वर्णन किया गया है।
पतंजलि के योग सूत्रों का दूसरा अध्याय साधनापाद कहलाता है। इस अध्याय में मुख्य रूप से इंसान के जीवन में सभी दुखों के पांच कारण बताए गए हैं। इन्हीं दुखों को दूर करने के लिए विभिन्न उपायों के साथ ही योग के विभिन्न मुद्राएं और उसके लाभों को भी इस अध्याय में बताया गया है। साधना और अनुशासन के द्वारा योग के माध्यम से दुखों से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है, यह आप यहां जान सकते हैं।
पतंजलि के योग सूत्रों का तीसरा अध्याय विभूतिपाद कहलाता है। इस अध्याय में विशेष रूप से संयम, ध्यान और समाधि पर बल दिया गया है। योगगुरु पतंजलि के अनुसार कभी भी व्यक्ति को भूलकर भी किसी भी सिद्धि प्राप्ति के लालच में नहीं आना चाहिए।
पतंजलि के योगसूत्रों के चौथे अध्याय को कैवल्यपाद के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में उन्होनें समाधि के हर प्रकार के बारे में विशेष रूप से बताया है। इस अध्याय में आसान शब्दों में कैवल्यपाद क्या होता है और इसके लिए किन मुद्राओं को अपनाया जा सकता है इस बारे में विशेष रूप से जनकारी दी गई है। पतंजलि के सूत्रों का समावेश इसी अध्याय के साथ अंत होता है। इन सभी योगसूत्रों को आम व्यक्ति के लिए समझना ख़ासा जरूरी और आसान है।
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