माता–पिता के बिना जिंदगी जीने के बारे में सोचने से भी डर लगता है। बचपन से ही मां-बाप के साये में पलने वाले बच्चे खुद को महफूज समझते हैं। बचपना जब मां-बाप के साये में कटता है तो एक बच्चा उनसे बहुत कुछ सीखता है। जिंदगी जीने की परिभाषा एक मां-बाप ही अपने बच्चे को सिखाते हैं। उनके द्वारा बताई गई बातें ही होती हैं जो आगे बड़े होकर उसको जिंदगी को सही से समझना और जीना सिखाती हैं।
हालांकि, मां-बाप का साथ हमेशा नहीं होता है। प्रकृति के नियम के चलते एक-दिन मां-बाप आपको छोड़कर इस दुनिया से अलविदा कर लेते हैं और तब तक आप इस काबिल हो जाते हैं कि खुद का जीवन यापन कर सकें। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे बच्चे की कहानी बताएंगे जिसने बहुत ही कम उम्र में अपने मां-बाप को खो दिया। जो उम्र उसकी पिता के कंधों पर बैठकर घूमने की थी और मां से जिद कर अपनी बात मनवाने की उस उम्र में उसके सिर से मां-बाप का साया ही भगवान ने उठा लिया। अब वो बिल्कुल अकेला है।
उस बच्चे की उम्र महज 10 साल है। उसकी देखभाल करने के लिए उसके आगे पीछे कोई नहीं है। हमको ये सोचने में ही मुश्किल हो रही है कि आखिर कैसे 10 साल का बच्चा अकेले ही अपना जीवन यापन कर रहा है। हालांकि, उसकी कहानी आपकी आंखो को नम कर देगी लेकिन उससे आपको प्रेरणा भी मिलेगी।
ये कहानी है 10 साल के डांग वान खुयेन की। डांग वियतमान के एक गांव में रहते हैं। उनके घर में वो अकेला है और अपना जीवन यापन करने के लिए खेत में जाकर मेहनत करता है। डांग ने अपनी छोटी सी जिंदगी में बहुत से कष्ट सहे हैं। डांग की मां उनको बहुत ही कम उम्र में छोड़कर चली गई थी। इसके बाद उनके पिता पैसा कमाने के लिए शहर चले गए थे, जिस दौरान उनकी दादी उनका ख्याल रखती थीं। पिता शहर में काम करते थे और दादी गांव में ही लोगों के घरों में खाना पकाने का काम करती थीं और इसी तरह से उनका घर चलता था।
एक दिन ऐसा आया कि डांग के सिर पर दुखों का पहाड़ टूटा। एक हादसे के चलते उनके पिता का देहांत हो गया। यहां तक कि उनके पिता के शव को गांव लाने के लिए गांव वालों को चंदा इकट्ठा करना पड़ा था। कुछ समय बाद डांग की दादी भी उन्हें छोड़कर चली गई। अब डांग घर में बिल्कुल अकेले रह गए थे, उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। अपना जीवन यापन के लिए डांग अब अपने घर के पास ही खेत में काम करने लगा। खुद को खाने के लिए सब्जियां उगाने लगा और पड़ोसी उसकी अन्न देने में मदद कर देते हैं।
हालांकि डांग की मदद के लिए कई लोग आगे आए। उसे गोद लेने की भी बात कही गई लेकिन डांग ने ऐसा करने से मना कर दिया। डांग खुद ही अपना ख्याल रखता है, खेतों में काम भी करता है और स्कूल भी जाता है। वो अपना स्कूल कभी मिस नहीं करता है। डांग के एक शिक्षक ने उसकी ये कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की जो देखते ही देखते वायरल हो गई। इस कहानी के वायरल होने के बाद लोग उसकी मदद के लिए आगे आए। उसको गोद लेने की भी बात हुई वहीं और अन्य तरीकों से भी लोगों ने डांग को मदद की पेशकश की है। अब डांग उनसे मदद लेता है कि नहीं ये तो साफ नहीं हो पाया है। हालांकि, डांग की कहानी से यही प्रेरणा मिलती है कि जीने का जज्बा हो तो आप हर परिस्थितियों में जीना सीख ही लेते हो।
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