हमारे देश के जहां बहुत से प्रतिभाशाली युवा पढ़ाई करने के बाद विदेशों में नौकरी करने के लिए चले जाते हैं, वहीं बहुत से युवा ऐसे भी हैं, जिन्हें अपनी माटी से इतना प्यार है कि वे अच्छी सैलरी वाली और सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण विदेशों की नौकरियों को छोड़कर वे देश में ही वह बदलाव करने में जुटे हैं, जिनकी अपेक्षा हम अक्सर दूसरों से करते हैं। अमिताभ सोनी एक ऐसे ही युवा का नाम है। ब्रिटेन सरकार की नौकरी छोड़ दी। भारत लौट आये। यहां के ग्रामीण व आदिवासी इलाकों में बच्चों के कल्याण के लिए काम करना शुरू कर दिया। पेयजल संकट और शिक्षा जैसे गंभीर विषयों पर वर्तमान में काम कर रहे हैं।
अमिताभ सोनी की ही पहल का नतीजा है कि मध्यप्रदेश के केकडिया गांव में आदिवासी बच्चे एक सॉफ्टवेयर कंपनी का संचालन कर रहे हैं। यह कंपनी डेटा एंट्री जैसे प्रोजेक्ट को संभाल रही है। यह गांव मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 23 किमी की दूरी पर स्थित है। इसे इन्होंने गोद ले रखा है और करीब पांच वर्षों से इसके विकास के लिए प्रयासरत हैं। भोपाल में अपनी जिंदगी का अधिकांश वक्त गुजारने की वजह से अमिताभ सोनी ने इसके नजदीक के गांव को अपनी कर्मस्थली बनाया है। वर्ष 2003 में इंग्लैंड जाकर ब्रिटेन सरकार के अधीन सोशल वेलफेयर बोर्ड में लगभग 10 वर्षों तक काम करने के बाद इसे लात मारकर 2014 में वे अपने देश वापस आ गये और यहां अपने सामाजिक मिशन का आगाज कर दिया।
केकडिया गांव में शिक्षा की बदहाली से दुखी अमिताभ सोनी ने सबसे पहले सरकारी स्कूलों को आवश्यक चीजें उपलब्ध कराकर बच्चों को स्कूल से जोड़ना शुरू किया। इनके प्रयासों की वजह से स्कूल में बच्चों की उपस्थिति 100 फीसदी तक पहुंच गई। यहां आदिवासी बच्चों को कंप्यूटर तक चलाना सिखाया जा रहा है और कई बच्चों को तो शहर के अच्छे स्कूलों तक में पढ़ने के लिए अमिताभ भेज रहे हैं। अमिताभ मानते हैं कि बचपन से ही बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा से जोड़ा जाए तो विकास की रफ्तार में हमारा देश दुनिया के बाकी देशों से पीछे नहीं रहेगा।
प्रतिभाओं के देश से पलायन को रोकने के उद्देश्य से अमिताभ सोनी ने आदिवासी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘विलेज क्वेस्ट’ भी शुरू कर दिया, जिसका संचालन आदिवासी युवा कर रहे हैं। अमिताभ के मुताबिक शुरुआत आसान तो नहीं रही, मगर दोस्तों व परिचितों की सलाह, सेकेंड हैंड कंप्यूटर की उपलब्धता और गांववालों की मदद से यह संभव हो गया। बिजली की आंखमिचैली के बीच फंड इकट्ठा करके सौर पैनल उन्होंने लगवा लिये। अमिताभ की चाहत है कि आदिवासी किसी पर आश्रित न होकर आत्मनिर्भर बनें। उनकी कोशिशें रंग लाने लगी हैं क्योंकि अब आदिवासियों ने सरकारी तंत्र के समक्ष अपनी बातों को पूरी मजबूती से रखना सीख लिया है।
अमिताभ का कहना है कि लंदन की नौकरी छोड़कर भारत लौटने का उन्हें जरा भी अफसोस नहीं है, क्योंकि उनकी चाहत ही हमेशा से यही करने की थी। वहां जाने का उनका मकसद बस कई चीजों को सीखना था, जो आज उनके बहुत काम आ रही हैं। अमिताभ तीन बार भारत आये और लौटकर चले गये, मगर हिम्मत नहीं हारी और जब 2014 में फिर से आये, तो इस बार जम ही गये। ठान लिया कि अब लंदन लौटकर नहीं जाना। आदिवासियों की तो जिंदगी उन्होंने यहां काफी हद तक सुधार दी है, लेकिन उनकी पत्नी भारत नहीं लौटना चाहतीं। फिर भी अमिताभ सोनी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को दूर रखकर अपने मिशन पर डटे हुए हैं। उन्हें सर्वाधिक सहयोग फंड जुटाने में जैन समाज से मिल रहा है।
अपने अभियान को और सशक्त बनाने के उद्देश्य से उन्होंने ‘अभेद्य’ नामक एक एनजीओ भी शुरू कर दिया है, जो केकडिया व आसपास के इलाकों में शिक्षा, रोजगार व जल प्रबंधन को लेकर काम कर रही है। साक्षर युवाओं को पंचायत के काम में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने के साथ, छोटे-छोटे चेक डैम व स्टॉप डैम आदि की सीरीज बनाने पर भी इनके द्वारा काम चल रहा है। इसके अलावा जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा, साक्षर युवाओं को पंचायत के कामों में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। साथ ही सिंचाई के लिए पानी की किल्लत का सामना करने वाले गांवों के साथ अमिताभ सोनी की संस्था अब छोटे-छोटे चेक डैम, स्टॉप डैम आदि की एक श्रृंखला बनाने की योजना का खाका तैयार कर रही है और जैविक खेती पर भी जोर दिया जा रहा है। अमिताभ कहते हैं, हर जिम्मेवारी सरकार पर डालकर हम नहीं बच सकते। बेहतर समाज बनाना है तो जिम्मेवारी हमारी भी कुछ करने की बनती है।
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