जितना जरूरी जीवन के लिए रोटी, कपड़ा और मकान है, उतना ही जरूरी पर्यावरण भी है। वर्तमान में हमारा पर्यावरण, हमारी जलवायु इस कदर मानवीय क्रियाकलापों की वजह से कुप्रभावित हो गयी है कि इसके दुष्परिणाम प्राकृतिक आपदाओं और प्रतिकूल मौसम के रूप में हमारे सामने आने लगे हैं। जैव विविधता तक में भारी कमी आयी है, जिसकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र में खाद्य श्रृंखला का संतुलन बिगड़ गया है। ऐसे वक्त में भी हमारे देश में पर्यावरण के कुछ ऐसे हीरो हैं, जिन्होंने अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता को सहेजने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है।
इन्हीं में से एक नाम है अरुण प्रसाद गौड़ का जो उत्तराखंड के देवलसारी के बंगसिल गांव के रहने वाले हैं और जिन्हें मधुमक्खियों को बचाने, देवलसारी के जंगलों को कटने से बचाने एवं यहां एक तितली पार्क विकसित कर इको टूरिज्म को नई राह दिखाने के लिए बीते दिनों मुंबई में मशहूर फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के हाथों सेंक्चुरी एशिया मैगजीन की ओर से बेस्ट वाइल्ड लाइफ सर्विस अवार्ड 2019 से सम्मानित किया गया है।
परागण के लिए मधुमक्खियों के महत्व को समझते हुए उत्तराखंड के जंगलों के लिए मधुमक्खियों को बचाने की दिशा में अरुण ने पहला प्रयास बचपन में ही छोटे से कटोरे में मधुमक्खियों को पाल कर शुरू किया था, जो अब बी बॉक्स में भी तब्दील हो चुका है। अरुण के मुताबिक वनों के क्षय की वजह से उत्तराखंड के लोगों के मैदानी इलाकों की ओर पलायन करने के साथ मधुमक्खियों ने भी उधर का ही रुख करना शुरू कर दिया है, जिसकी वजह से उनके यहां विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है। अरुण के अनुसार शुरुआत में जिन लोगों ने उनके इस काम में रोक-टोक की, अब वही लोग इसका महत्व समझने के बाद इसकी सराहना करने लगे हैं।
देवलसारी में जंगलों को काटने का विरोध करने पर माफियाओं से धमकी मिलने के बावजूद अरुण का हौंसला टूटा नहीं और स्थानीय लोगों और फिर वन विभाग का भी सहयोग मिलने से अरुण ने यहां के जंगलों को कटने से बचाने में कामयाबी पा ली है। दोस्तों के साथ मिलकर तितलियों की कुल 186 प्रजातियों वाले देवलसारी में अरुण ने तितली पार्क भी विकसित किया है, जिससे यहां इको टूरिज्म की वजह से यहां देशी-विदेशी पर्यटकों की आवाजाही के साथ स्थानीय युवाओं के लिये रोजगार की उपलब्धता और उनके कौशल विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। संरक्षित पार्क में तितलियों की 133 प्रजातियों का संरक्षण किया गया है।
मधुमक्खियों और वनों के संरक्षण के लिए काम करने की वजह से पढ़ने को वक्त न मिलने पर बीएससी की पढ़ाई उन्होंने बीच में ही छोड़कर आर्ट्स में ग्रेजुएशन शुरू कर दिया, ताकि अपने जीवन के ध्येय को वे पूरा कर सकें। बंगसिल के राजकीय इंटर कॉलेज की जर्जर दीवारों एवं इसकी टूटी छतों की मरम्मत के लिए अरुण इसे गोद भी ले रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि जन्मभूमि के लिए भी कुछ करना उनका दायित्व है।
अरुण नहीं चाहते कि पहाड़ी युवा नौकरी के लिए मैदानों में जाएं। इस 10 जनवरी को अपना 27वां जन्मदिन मनाने जा रहे अरुण का मानना है कि गांव में युवा नजर दौड़ाएं और स्वरोजगार पर अपना ध्यान केंद्रित करें। अरुण के मुताबिक जंगल और वन्य जीवों को बचाने की जिम्मेवारी युवाओं की भी है। उन्हें समझना होगा कि जंगल है तो ही हम हैं। बिना जंगलों के हम अपनी बहुत सी जरूरतों को पूरा करने के लिए तरस जाएंगे।
अरुण लोगों को मधुमक्खियों, तितलियों और वनों के संरक्षण के लिए यहां-वहां जाकर जागरूक करते रहते हैं। टूरिज्म से जुड़े नेचर गाइड प्रशिक्षण की भी अगुवाई करते हैं। विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने लिए वे अधिक प्रयास कर रहे हैं, क्योंकि अरुण का मानना है कि युवा बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
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