इंसान के अंदर यदि संवेदना है, तो ही वह इंसान है। बिना संवेदना के इंसानियत कुछ भी नहीं। जितना प्यार हम अपने आप से करते हैं, जितना प्यार हम अपने घर वालों से करते हैं या जितना प्यार हम अपने दोस्तों और सगे-संबंधियों से करते हैं, उतने ही प्यार का हकदार वे बेजुबान जानवर भी होते हैं, जो सड़कों पर लावारिस घूमते रहते हैं। हम में से अधिकांश लोगों को इसकी समझ नहीं होती, लेकिन इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो इन जानवरों के प्रति भी संवेदना रखते हैं और ऐसी ही संवेदना रखने की वजह से उनकी इंसानियत हमारी इंसानियत की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।
भोपाल की 14 साल की चांदनी ऐसे ही इंसानों में से एक हैं, जिन्होंने ‘काइंडनेस: द यूनिवर्सल लैंग्वेज ऑफ लव’ नामक एक प्रोग्राम चलाकर बेसहारा जानवरों के प्रति लोगों को जागरूक बनाने एवं उन्हें संवेदनशील बनाने का बीड़ा उठाया हुआ है। न केवल इन बेसहारा जानवरों को वे खाना खिलाती हैं, बल्कि उनके लिए टीकाकरण के साथ उन्हें कीटाणुओं से मुक्त कराने एवं उनके स्टरलाइजेशन तक के लिए अभियान चलाती हैं। वर्तमान में चांदनी दसवीं की छात्रा हैं और संस्कार वैली स्कूल में पढ़ाई कर रही हैं। बचपन से ही अस्थमा जैसी बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद जानवरों के वे बहुत नजदीक रही हैं। जानवरों के प्रति उनके प्यार का ही नतीजा था कि उनके मां-बाप ने तभी उन्हें एक पालतू कुत्ता लाकर दे दिया था, जब उनकी उम्र महज सात साल की थी।
अपने पालतू कुत्ते को जब चांदनी सड़क पर घुमाने ले जाते थीं, तो वहां बेसहारा घूम रहे जानवरों को भी वे खाना खिलाती थीं। एक दिन ऐसे ही जानवरों को खाना खिलाने के दौरान उनकी नजरों के सामने कुत्ते का एक बच्चा एक गाड़ी के नीचे आ गया। उस घटना के बाद से चांदनी ने यह ठान लिया कि अब वह किसी भी जानवर को बेसहारा नहीं रहने देगी। बस फिर क्या था, अपने माता-पिता को उन्होंने अपनी योजना के बारे में बताया। मां-बाप का भी समर्थन शेल्टर होम बनवाने के अभियान में उन्हें मिल गया।
भोपाल नगर निगम की ओर से भी शहर में घूम रहे आवारा जानवरों के लिए चार शेल्टर होम बनाने का प्रस्ताव पास किया गया था, लेकिन चांदनी के मुताबिक अब तक यह धरातल पर नहीं उतर पाया है। ऐसे में अपने माता-पिता, डॉ अनिल शर्मा, चित्रांशु सेन एवं नसरत अहमद की मदद लेकर उन्होंने बरखेड़ा में रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर शुरू कर दिया, जहां वर्तमान में 55 से भी अधिक बेसहारा जानवरों को आश्रय मिला हुआ है। साथ ही यह सेंटर अब तक 28 जानवरों को गोद ले चुका है। रोजाना यहां 70 से भी अधिक बेसहारा जानवरों को खाना खिलाया जा रहा है।
चांदनी कहती हैं कि लोग कुछ विशेष प्रजाति के ही जानवरों को पालना पसंद करते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि कुत्ते कोई प्रोडक्ट नहीं हैं। वे जीव हैं। सभी को समान रूप से केयर की जरूरत होती है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर जानवरों के लिए यह सेंटर चलता कैसे है? इसके लिए पैसे कहां से आते हैं? चांदनी ने इसके लिए ‘काइंडनेस: द यूनिवर्सल लैंग्वेज ऑफ लव’ के नाम से एक सोशल स्टार्टअप शुरू कर रखा है। एक तो कुछ उनके जानने वालों से इस अभियान के लिए उन्हें फंड मिल जाता है और दूसरा वे इसके लिए क्राउडफंडिंग कैंपेन भी चला चुकी हैं। चांदनी के मुताबिक बहुत से लोग बाहर जाकर जानवरों के साथ समय नहीं बिता सकते, लेकिन वे 500 से 1000 रुपये तक जरूर मदद कर देते हैं। इससे उनका काम आसानी से चल जा रहा है।
चांदनी की ओर से दो अभियान इस वक्त चलाए जा रहे हैं। पहले अभियान को उन्होंने ‘एंपैथी’ नाम दिया है, जिसमें वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जानवरों के रखरखाव के लिए जागरूक करती हैं। अपने दूसरे अभियान ‘वन हाउस वन स्त्रे’ के माध्यम से वे आवासीय कॉलोनियों एवं ऑफिस आदि में जाकर लोगों को कम-से-कम एक बेसहारा जानवरों की जिम्मेवारी संभालने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। चांदनी उन युवाओं में सबसे युवा चेंजमेकर भी हैं, जिन्हें बीते वर्ष अशोका चेंजमेकर्स प्रोग्राम के लिए चुना गया है। चांदनी का बस यही कहना है कि बदलाव अपने आप से शुरू होता है।
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