अंडर-19 वर्ल्ड कप में भारत के युवा बल्लेबाज यशस्वी जायसवाल ने सेमीफाइनल मैच में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला शतक जड़ दिया। उन्होंने 113 गेंदों का सामना किया और 105 रन बनाए। यही नहीं, उन्होंने छक्का लगाकर अपना शतक पूरा किया। इस वर्ल्ड कप में यशस्वी का यह पहला शतक है। इस मैच में अंत तक आउट नहीं होने वाले यशस्वी ने यह शतक लगाने के साथ ही इस टूर्नामेंट में सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी भी बन गए। यशस्वी ने इस दौरान एक और कीर्तिमान अपने नाम किया। अंडर-19 वर्ल्ड कप में 300 से अधिक रन बनाने वाले वे पहले बल्लेबाज भी बन गए। उनके शानदार शतक की बदौलत भारत ने इस मैच में पाकिस्तान को 10 विकेट से हरा दिया और फाइनल में अपनी जगह सुनिश्चित कर ली।
सेमीफाइनल मैच में शतक जड़ने के बाद आज यशस्वी जायसवाल का नाम खूब लिया जा रहा है, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए यशस्वी को लंबा संघर्ष करना पड़ा है। यशस्वी वैसे लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं, जिन्हें लगता है कि गरीबी और संसाधनों के अभाव की वजह से वे जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते। एक निर्धन परिवार से यशस्वी आते हैं। दो भाइयों में वे छोटे हैं। उत्तर प्रदेश के भदोही के वे मूल रूप से रहने वाले हैं। उनके पिता कि यहां छोटी-सी दुकान है।
बचपन से ही उन्होंने क्रिकेटर बनने का सपना देखा था। यही वजह थी कि अपने पिता से उन्होंने मुंबई जाने का अनुरोध किया। आर्थिक हालत घर की ठीक नहीं देखते हुए पिता को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं हुई और इस तरह से यशस्वी जायसवाल महज 11 वर्ष की उम्र में मुंबई पहुंच गए क्रिकेटर बनने का सपना अपनी आंखों में संजोए। यहां उनके चाचा का घर इतना बड़ा नहीं था कि उन्हें ठीक से रखा जा सके। ऐसे में मुस्लिम यूनाइटेड क्लब से उन्होंने यशस्वी को उनके टेंट में रखने का आग्रह किया। इस तरह से यशस्वी ने मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के गार्ड के साथ 3 वर्ष यहां टेंट में बिताए।
कुछ समय पहले यशस्वी ने एक साक्षात्कार के दौरान यह बताया था कि उन्होंने कुछ समय तक एक डेयरी में भी काम किया था। दिनभर क्रिकेट खेलने के कारण थकावट उन पर इतनी हावी हो जाती थी कि उन्हें नींद आ जाती थी। आखिरकार एक दिन उन लोगों ने उन्हें यह कहकर काम से बाहर कर दिया कि वे हमेशा सोते ही रहते हैं। इसके बाद तीन साल यशस्वी ने टेंट में गुजारे। यशस्वी के मुताबिक बारिश के दौरान यहां छत टपकने लगती थी। और भी कई तरह की असुविधाएं होती थीं, लेकिन खुद को हो रही परेशानियों की खबर उन्होंने कभी भी अपने मां-बाप को नहीं लगने दी। इसलिए कि यदि उन्हें पता चल जाता तो वे यशस्वी को वापस भदोही बुला लेते और क्रिकेटर बनने का उनका सपना फिर कभी नहीं पूरा हो पाता। दिन के वक्त यशस्वी जहां क्रिकेट खेलते थे, वहीं रात के वक्त वे पेट पालने के लिए गोलगप्पे बेचा करते थे। हालांकि कई बार तो ऐसा भी हुआ कि उन्हें भूखे भी सो जाना पड़ा।
एक इंटरव्यू में यशस्वी ने संघर्ष के अपने दिनों के बारे में यह भी बताया था कि रामलीला के वक्त उनके गोलगप्पे ज्यादा बिकते थे। अच्छी कमाई हो जाती थी। वे बस यही मनाते थे कि उनके साथ खेलने वाले लड़के यहां न आ जाएं, लेकिन वे आ ही जाते थे। इससे यशस्वी के मुताबिक उन्हें बड़ी शर्म आती थी। यशस्वी बताते हैं कि टेंट में वे रोटियां बनाते थे। लाइट रहती नहीं थी तो रात में कैंडल लाइट डिनर ही होता था। फिर भी तमाम परेशानियों से पार पाते हुए अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और जुनून के दम पर उन्होंने न केवल मुंबई की टीम में अपनी जगह बनाई, बल्कि भारत की अंडर-19 की टीम में भी चुन लिए गए और अब उनका बल्ला अंडर-19 वर्ल्ड कप में आग उगल रहा है। इस तरह से यशस्वी जायसवाल ने अपने उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर लिया है और यह देखकर कोई ताज्जुब नहीं होगा कि बहुत जल्द वे विराट कोहली की टीम में भी खेलते हुए दिख जाएं।
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