Dr Nisha Khanna Relationship Expert: कई बार जिंदगी में इतने संघर्ष आते हैं कि हौसला टूटने लग जाता है, लेकिन इन संघर्षों का जो लोग डटकर सामना करते हैं आखिरकार जिंदगी में जीत भी उन्हीं की होती है। ऐसे ही लोगों में से एक हैं निशा खन्ना। निशा खन्ना आज दिल्ली की एक मशहूर काउंसलर हैं। वह लोगों की शादियों को टूटने से बचाती हैं, लेकिन जितनी सुखद आज निशा खन्ना की जिंदगी है, उतनी आज से करीब एक दशक पहले नहीं हुआ करती थी। बड़े संघर्ष के दौर से उन्हें गुजरना पड़ा है। तब जाकर आज उन्होंने एक मुकाम हासिल किया है है।
निशा खन्ना के मुताबिक उनका जन्म अमृतसर के एक ऐसे पंजाबी परिवार में हुआ था, जहां लड़कियों को पैरों की जूती से ज्यादा और कुछ नहीं समझा जाता था। बाद में उन पर घर में पति द्वारा बहुत अत्याचार किए जा रहे थे। मानसिक रूप से वह बहुत हद तक टूट चुकी थीं। इस वजह से प्रेगनेंसी को भी वे नहीं संभाल सकीं और अबॉर्शन कराने की नौबत आ गई थी। वे बताती हैं कि उस वक्त अस्पताल में भी उनके साथ कोई नहीं था। किसी तरह से उन्होंने खुद से पैसों का इंतजाम किया था और बिल भरने के बाद ऑटो पकड़ कर लौट आई थीं। उनके मुताबिक उस वक्त भी खून टपक ही रहे थे। फिर किसी तरह से उन्होंने खुद को संभाला, क्योंकि निशा खन्ना ने साइकोलॉजी की पढ़ाई की थी और उन्हें काउंसलिंग का भी करीब 5 वर्षों का अनुभव था। ऐसे में उन्होंने खुद का एक क्लीनिक शुरू करने का फैसला कर लिया।
आखिरकार वर्ष 2009 में उन्होंने क्लिनिक शुरू की। एक वक्त जो निशा खन्ना एक-एक पैसे की मोहताज थीं, आज एक घंटे की काउंसलिंग के लिए 5000 रुपये लेती हैं और लोग देते भी हैं। बीते दिनों को याद करते हुए वे बताती हैं कि जब उन्होंने अपना क्लीनिक शुरू किया था तो लोग ये ताने मारते थे कि जिसकी खुद की शादी नहीं चल सकी, वह भला दूसरों की शादी को टूटने से कैसे बचाएगी। निशा बताती हैं कि उनका इस पर एक ही जवाब होता था कि जिसके पास जो चीज नहीं होती है, उसे उस चीज की वैल्यू ज्यादा समझ आती है।
निशा के मुताबिक उनके अपने घर में ही उनका जीवन एक गुलाम की तरह बीता। घर में उनका भाई बचपन में उन्हें स्कूल लेकर जाता था और स्कूल से लेकर आता था। केवल घर और स्कूल ही उनकी दुनिया थे। घर से बाहर और किसी चीज से कोई मतलब नहीं। यहां तक कि दोस्त भी नहीं थे। घर में भाई बिल्कुल बाप की तरह व्यवहार करता था। मारता था, पीटता था और निशा के मुताबिक वे सब कुछ सहती रहती थीं। निशा का कहना है कि वे क्लास में भी अव्वल आया करती थीं। घर में पिताजी नंबर देखकर खुश हुआ करते थे, लेकिन कभी कोई खुशी से गले तक नहीं लगाता था।
स्कूल की पढ़ाई तो पूरी हो गई, लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिए घर में कोई तैयार नहीं हो रहा था। जब उन्होंने जिद की तो भाई ने जमकर पिटाई भी की। आखिरकार किसी तरह से घरवाले माने। साइकोलॉजी में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन कर लिया। अब इसके बाद बेंगलुरु जाने की बारी थी। एक लड़की को घर से बाहर भेजने के लिए घरवाले तैयार नहीं थे। घर में हंगामा मच गया। इस दौरान भी उन्हें बहुत कुछ सुनना पड़ा। आखिर में परिवार वाले बेंगलुरु भेजने के लिए राजी तो हो गए, लेकिन उनके पिता भी उनके साथ लगातार वहां रहे। परिवार एक लड़की को अकेला बाहर बिल्कुल भी नहीं छोड़ना चाह रहा था।
निशा बताती हैं कि बाद में अमृतसर आकर उन्होंने अपना क्लीनिक खोला। धीरे धीरे चलने भी लगा था, लेकिन घर में भाई की पिटाई से वे बेहद आहत हो गई थीं। इसी बीच एक दोस्त की मदद लेकर वह घर से भागकर दिल्ली पहुंच गयीं। बाद में दोस्त शादी की जिद यह कहकर करने लगा कि घरवाले उसे मार डालेंगे। शादी करने के बाद उसने अपना असली रंग दिखाया। वह शराब पीकर आता था। उसकी पिटाई भी करता था। इससे निशा डिप्रेशन में चली गई थीं। निशा के मुताबिक वे सर्वाइकल का भी बाद में शिकार हो गयीं। फिर उन्होंने एक काउंसलर की मदद ली। बाद में आखिरकार तमाम संघर्षों से गुजरने के बाद उन्होंने अपना क्लीनिक भी खोल ही लिया। इस तरह से निशा आज दिल्ली की एक मशहूर काउंसिल के तौर पर जानी जाती हैं और उनकी जिंदगी बाकी महिलाओं को भी प्रेरित करती है।
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