पॉजिटिव स्टोरी

हिंदी दिवस- जब ह‍िन्‍दी बोली अपने मन की बात

Hindi Diwas Kyu Manaya Jata Hai: हिन्दी, हमारी बोली, हमारी माँ की बोली, ऐसी बोली जिसे सुन बच्चा भी रोते से हसँने लगता है। साहित्यकारों की कठिन हिन्दी की बात छोड़ दे, इसके सरल-सहज रूप इतना प्यारा है कि देश के लोगों की बात छोड़िए विदेशियों को भी बड़ा भाता है। इसके प्रति मोह के चलते वे न सिर्फ हिन्दी बल्कि अच्छी हिन्दी सीखने के लिए लाख जतन करते हैं।

एक दिन मैं सड़क से गुजर रही थी, तो मैंने देखा कि एक बुढ़िया जोर-जोर से रो रही है,  उसकी कराह को देखकर मेरा भारतीय मन संवेदनशील हो उठा। मैंने उसे सांत्वना के बहाने दो शब्द कहे तो वह फफककर रो पड़ी। मैं उसे सांत्वना देती और उसकी आंतरिक पीड़ा पिघलकर आँसुओं और हिचकियों में बदल गई । आखिर मैंने पूछ ही लिया –  अम्मा रोती क्यों हो? क्या तकलीफ है?’ वो मौन रही पर उसका सिसकियों अब धीमी हो चली थी ।

अरे! कुछ तो बोलो!  मैंने पूछा। उसके आँसू थमे और क्षीण-सी आवाज मैं बोली —

मैं लगभग सौ करोड़ लोगों की मातृभाषा हूँ, मेरा नाम हिंदी है। मैंने भी आजादी के लिए संघर्ष किया है, ताकि मेरे बच्चे गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हों, पर आजादी मिलने पर मेरे कुछ संपन्न बेटों ने मुझसे आँखें फेर लीं हैं।

बिटिया! क्यों मेरे घाव कुरेदती हो, अपने रास्ते जाओ। इन सहानुभूतियों के शब्दों ने मेरा तन-मन छलनी कर दिया है।’

मैं बोली – नहीं, नहीं ऐसा नहीं है। मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं करुँगी। तुम्हारी यह हालत किसने की है।’

वह बोली – मैं क्या बोलूँ, क्या परिचय दूँ अपना। मैं लगभग सौ करोड़ लोगों की मातृभाषा, जिसे पूज्य बापू, स्वामी विवेकानंद, टंडन जी ने सगी माँ से ज्यादा आदर दिया था। पर मानसिक गुलामी के कारण मेरे कुछ बेटों ने मेरे आसन पर अँग्रेजी को बैठा दिया और मुझे धक्के मारकर घर से निकाल दिया।

मैं दर-दर भटकती फिरती हूँ। अरे! मैं तो जीना भी नहीं चाहती परंतु क्या करूँ, मेरे छोटे बेटों गरीब किसान, मजदूर तथा देशभक्तों के प्रेम के कारण मैं मर भी नहीं सकती। सोचती हूँ, मैं मर गई तो वे गूँगे-बहरे तथा अपंग हो जाएँगे। इसलिए खून के घूँट पीकर भी जिंदा लाश की तरह भटक रही हूँ।’ इतना कहकर वह फिर रोने लगी।

मैंने उसे सांत्वना के दो शब्द कहे तो वह फिर फूट पड़ी और कहने लगी, ‘हिन्दी दिवस पर लोगों ने मुझे फुटपाथ से उठाया और चौराहे पर सुंदर सिंहासन पर बैठा दिया। चीथड़ों के स्थान पर पुरानी सुंदर साड़ी पहनाकर मेरे स्वार्थी बड़े बेटे वोट के लिए मेरी वंदना करने लगे। मुझे तो ऐसा लग रहा था मानो कोई चौराहे पर लाश को कफन ओढ़ाकर क्रियाकर्म के नाम पर चंदा वसूल कर रहा हो। मैं तो सीता की तरह वहीं धरती में समा जाती पर क्या करूँ मेरे गरीब बेटों का प्रेम मुझे मरने भी नहीं देता।’ ऐसा कहते-कहते उसका गलाभर आया और फिर वह आगे बोल नहीं सकी।

‘अरे, हिन्दी माँ! बोलो, चुप क्यों हो गईं?’ मैंने कहा।

बड़ी मुश्किल से उसके गले से शब्द निकल रहे थे। वह बोली, बिटिया, तुम क्या समझोगी मेरी पीड़ा। जाओ, अगले 14 सितंबर के दिन फिर आना।’ ऐसा कहकर वह खामोश हो गई।

Facebook Comments
Manu Verma

Share
Published by
Manu Verma

Recent Posts

मध्य प्रदेश टूरिज़्म 2025: एक प्रगति की कहानी — ‘Heart of Incredible India’

मध्य प्रदेश, जिसे हम गर्व से Heart of Incredible India कहते हैं, अब सिर्फ घूमने…

2 days ago

IRCTC अकाउंट को आधार से ऐसे करें लिंक, वरना तत्काल टिकट बुकिंग पर लग सकता है ताला!

अगर आप भारतीय रेलवे की ऑनलाइन टिकट बुकिंग सेवा IRCTC का इस्तेमाल करते हैं, तो…

3 days ago

हिमाचल प्रदेश की वो झील जहां अंधेरे में आती हैं परियां, जानें क्या है इस फेमस लेक का राज़

Facts About Chandratal Lake In Hindi: भारत में हज़ारों की संख्या में घूमने की जगहें…

7 months ago

घर में ही शुगर लेवल को ऐसे करें मैनेज, डॉक्टर के चक्कर काटने की नहीं पड़ेगी ज़रूरत

Blood Sugar Control Kaise Kare: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कई बीमारियों को समाज…

7 months ago

इन बीमारियों का रामबाण इलाज है गोंद कतीरा, जानें इस्तेमाल करने का सही तरीका

Gond Katira Khane Ke Fayde: आयुर्वेद विज्ञान से भी हज़ारों साल पुराना है। प्राचीन ग्रंथों…

7 months ago

दिलजीत दोसांझ को फैन के साथ किया गया फ्रॉड, सिंगर के इस कदम ने जीता सबका दिल

Diljit Dosanjh Concert Scam: भारतीय गायक दिलजीत दोसांझ किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वे…

7 months ago