Radha Yadav Success Story: भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अंतर्राष्ट्रीय महिला T-20 वर्ल्ड कप में धमाल मचा कर रखा हुआ है। टीम इंडिया का विजय रथ तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। अपने चारों ही मैचों में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने जीत दर्ज की है। सेमीफाइनल में तो उसने पहले ही अपनी जगह सुनिश्चित कर ली थी, लेकिन बीते शनिवार को श्रीलंका के खिलाफ भी भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए श्रीलंका को सात विकेट से मात दे दी और इस तरीके से ग्रुप में वह सर्वोच्च स्थान पर बनी रही।
श्रीलंका के खिलाफ भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने जो बीते शनिवार को मैच खेला उसमें भारत की जीत में स्पिनर राधा यादव की महत्वपूर्ण भूमिका रही। राधा यादव ने इस मैच में 4 ओवर फेंककर केवल 23 रन दिए और 4 विकेट झटक लिए। राधा यादव के इस प्रदर्शन की वजह से भारत इस मैच को जीत पाया। उनके इस दमदार प्रदर्शन के लिए उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच का खिताब भी प्रदान किया गया। जिस तरह के शानदार खेल का प्रदर्शन राधा यादव ने करके दिखाया है, उनकी जिंदगी की कहानी भी उतनी ही शानदार है और प्रेरणा देने वाली है।
भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जिस वक्त राधा यादव को चुना गया था, उस वक्त वे केवल 17 साल की थीं। राधा यादव के लिए भारतीय क्रिकेट टीम तक पहुंचना इतना भी आसान नहीं रहा था। मुंबई की कोलिवरी बस्ती में 220 फीट की झुग्गी में वे रह रही थीं। उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम तक का सफर तय किया है। यह उनके लाजवाब खेल का ही नतीजा रहा कि जब राजेश्वरी गायकवाड चोटिल हो गईं तो उन्हें उनकी जगह पर दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर जा रही भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चुन लिया गया।
राधा यादव उत्तर प्रदेश के जौनपुर से नाता रखती हैं। जी हां, उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित अजोशी गांव की वके मूल रूप से रहने वाली हैं। इंटर की परीक्षा उन्होंने केएन इंटर कॉलेज बांकी से पास की थी। राधा यादव के पिता प्रकाश चंद्र यादव मुंबई में डेयरी उद्योग से जुड़ कर काम कर रहे हैं। ऐसे में राधा भी मुंबई चली गई और वहां उन्होंने क्रिकेट की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। इसके बाद वर्ष 2018 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने का उन्हें अवसर मिल गया। राधा यादव ने सबसे पहले मुंबई के लिए खेलना शुरू किया था। वर्तमान में वे गुजरात की टीम की ओर से खेलती हैं। परिस्थितियां भले ही विपरीत रही हों, लेकिन ना तो कभी राधा यादव के पिता ने हार माना और ना ही कभी राधा यादव ने अपने पांव पीछे खींचे।
क्रिकेट का शौक तो राधा यादव को बचपन से ही रहा था। जब वे केवल 6 साल की थीं, तभी मोहल्ले में बच्चों के साथ वे खेलने जाती थीं। मोहल्ले के बच्चों के साथ गलियों में और सड़कों पर स्टंप गाड़ कर जब वे खेलती थीं तो आसपास के लोग उन पर और उनके परिवार पर यह कहकर तंज कसते थे कि देखो एक लड़की होकर लड़कों के साथ यह खेल रही है। उनके पिता ओमप्रकाश ने मीडिया में यह बताया है कि आस-पड़ोस के लोग उनसे हमेशा यह कहते थे कि बेटी को इतनी छूट देना किसी भी तरीके से जायज नहीं है। हो सकता है कि कभी लड़के कुछ बोल दें या फिर उसके साथ मारपीट ही कर दें तो ऐसे में भला कितनी दिक्कत हो सकती है। राधा यादव के पिता के मुताबिक उन्होंने कभी भी इस चीज की परवाह ही नहीं की कि लोग क्या कहते हैं। उन्होंने हमेशा अपनी बेटी को खेलने के लिए छूट दे रखी थी।
राधा अपने चार भाई बहनों में सबसे छोटी हैं। उनके पिता की एक छोटी सी दुकान है। मुंबई जैसे बड़े शहर में इस छोटी दुकान से गुजारा करना थोड़ा मुश्किल तो रहता है। साथ ही म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की ओर से हमेशा अतिक्रमण के नाम पर दुकान हटाए जाने का डर बना रहता है। परिस्थितियां प्रतिकूल रहीं। इतने पैसे नहीं थे कि बैट भी खरीद सकें। ऐसे में लकड़ी की ही बैट बनवा ली थी और उसी से प्रैक्टिस करती थीं। पिता साइकिल से 3 किलोमीटर दूर राजेंद्र नगर स्टेडियम में पहुंचा आते थे। प्रैक्टिस करने के बाद राधा कभी या तो ऑटो रिक्शा लेकर या फिर पैदल ही घर लौट आया करती थीं। आज अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने अपनी एक खास पहचान बना ली है।
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