पॉजिटिव स्टोरी

नौकरी को मारी लात, उठा रहीं बच्चों के भोजन, पढ़ाई और यूनिफॉर्म का खर्च

Richa Prashant Story: अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन दूसरों के लिए जीने में जो आनंद मिलता है उसकी अनुभूति ही कुछ अलग होती है। दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्होंने इस आनंद को महसूस करने के लिए ऐसे कदम उठाए हैं जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। दिल्ली की रहने वाली ऋचा प्रशांत ने भी कुछ ऐसा ही किया है। उन्होंने अपनी नौकरी को लात मार दी। पिछले 10 वर्षों में उन्होंने दिल्ली में रहने वाले हजारों जरूरतमंद बच्चों के बचपन में ऐसे रंग घोल दिए हैं, जो उनके आने वाली जिंदगी को भी रंगीन बनाए रखेंगे।

वर्ष 2009 में हुई शुरुआत

अपने अभियान की शुरुआत 2009 में करने वाली ऋचा अब तक एक लाख से भी अधिक बच्चों को मिड-डे-मील खिला चुकी हैं। अब तक वे 1500 से भी अधिक कंबल का वितरण कर चुकी हैं, जबकि 1000 से भी अधिक बच्चों को स्कूल यूनिफार्म बांट चुकी हैं।

सुनय फाउंडेशन का संचालन ऋचा प्रशांत द्वारा किया जा रहा है। इसके जरिए 300 से 400 बच्चों को न केवल मिड डे मील की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, बल्कि उनकी पढ़ाई का खर्च उठाया जा रहा है। उन्हें स्टेशनरी मुहैया कराई जा रही है।

स्कूल यूनिफार्म की उनके लिए व्यवस्था की जा रही है। इन बच्चों के लिए कंबल भी ऋचा के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं। उनके फाउंडेशन से 8 साल से लेकर 80 साल तक के बुजुर्ग भी वालंटियर के तौर पर जुड़े हुए हैं। ये या तो शारीरिक सहयोग देकर या फिर फंडिंग के जरिए अपनी ओर से मदद मुहैया करा रहे हैं। जो बच्चे गरीब हैं, लेकिन मेधावी हैं, उनका दाखिला ऋचा ने प्राइवेट स्कूलों में भी करवा दिया है।

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इन बच्चों की कर रहीं मदद

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जिन बच्चों के माता-पिता बहुत ही गरीब हैं या दिहाड़ी मजदूर हैं, जो अपने बच्चों को शिक्षा दे पाने की स्थिति में नहीं हैं, ऐसे बच्चों को ऋचा अपने सुनय फाउंडेशन में 3 से 4 घंटे तक रखती हैं। यहां इनकी पढ़ाई करवाई जाती है। ऋचा का यह लक्ष्य है कि पढ़ने-लिखने में तो यह बच्चे अच्छे बनें ही साथ में इन्हें स्किल की ट्रेनिंग भी दी जाए, ताकि ये आगे चलकर आत्मनिर्भर बन सकें। ऋचा का मानना है कि इसी तरीके से इनके भविष्य को संवारा जा सकता है।

नहीं की नौकरी की परवाह

जरूरतमंदों की मदद का लक्ष्य लिए हुए ऋचा प्रशांत ने वर्ष 2009 में अपनी नौकरी छोड़ दी। उन्होंने सुनय फाउंडेशन की नींव रख दी। धीरे-धीरे लोगों की ओर से भी उन्हें मदद मिलनी शुरू हो गई और कारवां बढ़ता चला गया। अपने फाउंडेशन में ऋचा ने बाद में जरूरतमंद महिलाओं को भी स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देनी भी शुरू करवा दी। बहुत सी महिलाएं स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग ले चुकी हैं और कई महिलाएं तो ऐसी भी हैं जो ट्रेनिंग लेने के बाद उन्हीं के संस्थान में बच्चों की टीचर, उनकी ट्रेनर और कोऑर्डिनेटर के तौर पर भी काम कर रही हैं।

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पढ़ाई के अलावा वर्कशॉप

ऐसा नहीं है कि बच्चों को केवल ऋचा की ओर से शिक्षा ही दी जा रही है, बल्कि समय-समय पर उन्हें विभिन्न वर्कशॉप में भी शामिल करवाया जाता है। बच्चों को नशे से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी दी जाती है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि लिंग भेद क्यों नहीं करना चाहिए। ऋचा के फाउंडेशन से जो विशेषज्ञ जुड़े हुए हैं, वे बच्चों को प्रेरणादायक कहानियां तो सुनाते ही हैं, साथ ही मोटिवेशनल बातें भी उनके साथ करते हैं, ताकि ये बच्चे सही रास्ते पर जीवन में आगे बढ़ें और आगे चलकर एक जिम्मेवार नागरिक बनकर देश और समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

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