मातृभूमि की रक्षा के लिए हमारे वीर जवान अपनी शहादत दे देते हैं। शहीद वे जरूर हो जाते हैं, मगर वे अमर रहते हैं। देश के लिए जो वीर सपूत अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं, उनकी जिंदगी दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन जाती है। अलग-अलग तरीके से लोग इन वीर सपूतों को याद करते हैं। इनके परिवार के बीच कोई जाता है, तो कोई किस्से-कहानियों में इनका जिक्र करता रहता है। कई लोग ऐसे भी होते हैं जो इन शहीदों के परिवारों से जिंदगी भर के लिए अपना नाता जोड़ लेते हैं। शहीदों की बहनों से वे राखी बंधवाते हैं। उनकी मां से उनके बेटे की बहादुरी के किस्से सुना करते हैं। शहीदों के पिता को अपनेपन का एहसास दिलाते रहते हैं।
हंदवाड़ा में जब बीते दिनों जवानों की शहादत हुई तो लॉकडाउन की वजह से ये लोग शहीद जवानों के घर नहीं जा पाए। ऐसे में ट्विटर पर ही उन्होंने इन जवानों को अपनी श्रद्धांजलि दी। मेजर अक्षय गिरीश, जो कि वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर के नगरोटा में शहीद हो गए थे, उनकी मां मेघना गिरीश और कई लोगों ने मिलकर बीते 4 मई को देश के इन वीर जवानों को सोशल मीडिया में याद किया और अपने घरों में उन्होंने दीपक जलाए।
बीते 21 वर्षों से जम्मू के विकास मन्हास यह काम करते चले आ रहे हैं। शहीदों के घर वे जाते हैं। परिजनों के सुख-दुख का वे हिस्सा बनते हैं। उनकी बातों को सुनते हैं। विकास बताते हैं कि वर्ष 1994 में एक आतंकी हमला हुआ था, जिसमें जम्मू-कश्मीर में 7 जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी। उनके शव तक घरों तक नहीं पहुंचाए जा सके थे। उनका अंतिम संस्कार जम्मू-कश्मीर में ही कर दिया गया था। विकास के मुताबिक उनके मन को इस घटना ने झकझोर कर रख दिया था।
विकास का कहना है कि एक शहीद जवान, जिसने देश के लिए अपने प्राण तक की परवाह नहीं की, आखिरी बार घरवाले उसका चेहरा तक न देख सकें, इससे बड़े कष्ट की बात और क्या हो सकती है। वर्ष 1999 में फिर कारगिल युद्ध हुआ। इसमें अपने 527 बहादुर जवानों को हमारे देश ने खो दिया। विकास के मुताबिक तभी से उन्होंने शहीदों के घर जाने की शुरुआत कर दी। जम्मू में पहली बार वे शहीदों के परिवार में गए। विकास का कहना है कि जवान के शहीद होने के बाद शुरुआत में तो कई लोग आ जाते हैं। सरकार भी आती है, मगर कुछ वक्त बीत जाने के बाद परिवार उनका बड़ा अकेला हो जाता है।
विकास के मुताबिक किसी घर में कोई मां अपने वीर बेटे की उन्हें कहानी सुनाती है तो किसी घर में उन्हें अपना भाई समझ कर कोई बहन उन्हें राखी बांधी देती है। बीते 21 वर्षों से लगभग 400 से 500 शहीद परिवारों के घर उनका आना-जाना लगा हुआ है। पहली बार लॉकडाउन की वजह से 50 दिनों से किसी शहीद के घर वे जा नहीं सके हैं।
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