Muladhara Chakra Kya Hai: ऐसा सिर्फ आज या कल से नहीं बल्कि सदियों से बताया जाता रहा है कि हमारे दैनिक जीवन में योग का अभ्यास बेहद ही आवश्यक रहा है। चूंकि चक्र वे ऊर्जा केन्द्र है जिसके माध्यम से अंतरिक्ष ब्रह्माण्ड की ऊर्जा मानव शरीर में प्रवाहित होती है। बता दें कि इन केन्द्रों को योग के ही माध्यम से जाग्रत किया जा सकता है, जो सभी में और हर एक व्यक्ति में विद्यमान है। वैसे तो हम सभी के शरीर में मुख्य रूप से 7 चक्र होते हैं और सभी हमारे अस्तित्व के खास पक्ष से सबंधित हैं। आज हम आपको मूलाधार चक्र के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि मानव चक्रों में सबसे पहला चक्है। मूल और आधार शब्दों से मिल कर बना मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है, इसका रूप मंत्र “लम” है।
मूलाधार चक्र(Muladhara Chakra Kya Hai) के सांकेतिक चित्र में चार पंखुड़ियों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों- मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सभी इस चक्र में उत्पन्न होते हैं। मूलाधार का मतलब है मूल आधार यानी यह हमारे भौतिक ढांचे का आधार है। अगर यह आधार स्थिर नहीं हुआ तो इंसान न तो अपना स्वास्थ्य ठीक रख पाएगा, न ही अपनी कुशलता और संतुलन ठीक रख पाएगा। इंसान के विकास के लिए ये खूबियां बेहद ही आवश्यक हैं। ऐसा माना जाता है कि पिछले जीवन की यादें तथा कार्यों को इस क्षेत्र में संग्रहित किया जाता है। इस चक्र की वजह से मनुष्य को चेतना, जीवन शक्ति और संवृध्दि जैसी विशेषताएं प्राप्त होती हैं। हालांकि, इसके अनुचित कार्य की वजह से परिणामतः आलस्य तथा आत्म केंद्रित प्रवृत्ति आ सकती है।
मूलाधार या रुट चक्र(Muladhara Chakra Kya Hai) रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित होता है और यह बुनियादी मानव वृत्ति और अस्तित्व से संबंधित है। मूलाधार चक्र की सकारात्मक उपलब्धियां स्फूर्ति, उत्साह और विकास हैं। नकारात्मक गुण हैं सुस्ती, निष्क्रियता, स्वार्थी और अपनी शारीरिक इच्छाओं द्वारा प्रभावित होना। मूलाधार-चक्र अग्नि वर्ण का त्रिभुजाकार एक आकृति होती है, जिसके मध्य कुण्डलिनी सहित मूल स्थित रहता है। इस त्रिभुज के तीनों उत्तंग कोनों पर इंगला, पिंगला और सुषुम्ना आकर मिलती है। इसके अंदर चार अक्षरों से युक्त अग्नि वर्ण की चार पंखुड़ियां नियत हैं। ये पंखुड़ियां अक्षरों से युक्त हैं- स, ष, श, व। यहां के अभीष्ट देवता के रूप में गणेश जी नियत किए गए हैं। जो साधक साधना के माध्यम से कुण्डलिनी जागृत कर लेता है अथवा जिस साधक की स्वास-प्रस्वास रूप साधना से जागृत हो जाती है और जागृत अवस्था में उर्ध्वगति में जब तक मूलाधार में रहती है, तब तक वह साधक गणेश जी की शक्ति से युक्त व्यक्ति हो जाता है।
जानकारी के लिए बताते चलें कि इस चक्र की 2 संभावनाएं हैं। पहली प्राकृतिक संभावना है सेक्स की और दूसरी संभावना है ब्रम्हचर्य की, जो ध्यान से प्राप्य है। सेक्स प्राकृतिक संभावना है और ब्रह्मचर्य इसका परिवर्तन है। इसे आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि हम दो तरह से प्रकृति द्वारा दी गई स्थिति का उपयोग कर सकते हैं। हम ऐसी स्थिति में रह सकते हैं जैसे प्रकृति ने हमें अंदर रखा है लेकिन फिर आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकती है या हम इस अवस्था को बदल सकते हैं। मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। पृथ्वी तत्व का अर्थ गंध है। इस चक्र मे ध्यान साधक को इच्छा शक्ति की प्राप्ति कराता है। ध्यान फल को साधक को अपने पास नही रखना चाहिये, इसी कारण ‘’ध्यानफल श्री विघ्नेश्वरार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये। मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए आपको कुछ नियमों का पालन करना होता है तभी आप इस चक्र को जागृत करने में सक्षम बन सकते हैं। जैसे संभोग, भोग और नशा आदि से आपको दूर रहना होगा जब तक कोई व्यक्ति अपने पहले शरीर में ब्रह्मचर्य तक नहीं पहुंचता, फिर अन्य चक्रों की संभावना पर काम करना मुश्किल होता है।
दोस्तों, उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा। पसंद आने पर लाइक और शेयर करना न भूलें।
लीजिये चक्रों का ज्ञान:
Benefits Of Ice On Face In Hindi: चेहरे को सुंदर बनाने के लिए लोग तरह-तरह…
Spring Roll Sheets Recipe in Hindi: स्प्रिंग रोल हर एक आयु वर्ग के लोगों के…
Shri Ram Raksha Strot Padhne Ke Fayde: सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा…
Benefits of Roasted Chana with Jaggery In Hindi: शरीर को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए…
Benefits of Papaya Milk for Skin In Hindi: त्वचा के लिए पपीता फायदेमंद होता है…
Famous Shakti Peeth in Haryana: इस समय पूरे देश भर मे चैत्र नवरात्रि के त्यौहार…