Image Source: CitySpidey
Dwarkadhish Temple History In Hindi: गुजरात के द्वारिका में स्थित यह पवित्र कृष्ण मंदिर तीनों लोकों में सबसे खूबसूरत मंदिर माना जाता है, द्वारिका स्थित इस भगवान श्री कृष्ण के मंदिर को हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस मंदिर में भक्त भगवान श्री कृष्ण को द्वारिकाधीश के रूप में पूजते हैं। द्वापर युग में द्वारिका भगवान श्री कृष्ण की राजधानी थी और अब कलयुग में भक्त इसे महा तीर्थ के रूप में पूजते हैं। गोमती नदी के तट पर स्थित यह मंदिर बेहद ही खूबसूरत है। द्वारिकाधीश मंदिर उपमहाद्वीप पर भगवान श्री हरी विष्णु का आठवां दिव्य मंदिर है और इस दिव्य प्रधान मंदिर की महिमा का बखान पवित्र ग्रंथों में भी मिलता है। द्वारिकाधीश मंदिर को हिन्दुओं के चार प्रमुख धामों में से एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। आज के इस लेख में हम आपको द्वारिकाधीश मंदिर के इतिहास के बारे में बताएंगे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वारिका मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रभ ने कराया था और 15 वीं शताब्दी के करीब इस मंदिर का विस्तार हुआ। पुरातत्व विभाग के अनुसार, द्वारिका मंदिर का इतिहास करीब 2,000 से 2,200 साल पुराना है। जगत मंदिर के नाम जाने जाना वाला यह द्वारिकाधीश मंदिर 5 मंजिला इमारत तथा 72 स्तम्भों पर स्थापित किया गया है। मंदिर का शीर्ष शिखर करीब 78.3 मीटर ऊँचा है। मंदिर के ऊपर स्थित ध्वज सूर्य और चन्द्रमा को दर्शाता है और लोगों को बताता है कि जब तक इस ब्रम्हांड में सूर्य और चन्द्रमा मौजूद रहेंगे तभी तक भगवान श्री कृष्ण भी रहेंगे। द्वारिकाधीश मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज दिन में 5 बार बदला जाता है लेकिन झंडे का प्रतीक नहीं बदलता है।
इस प्राचीन और अद्भुत मंदिर का निर्माण चूने के पत्थर से हुआ है और यह मंदिर आज भी अपनी स्थिति में खड़ा हुआ है। मंदिर में मुख्य रूप से दो प्रवेश द्वार हैं, मुख्य प्रवेश द्वार जो उत्तर दिशा की तरफ खुलता है उसे मोक्षद्वार के नाम से जाना जाता है। जबकि दक्षिण के द्वार को स्वर्ग के द्वार के नाम से जाना जाता है।
सनातन पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका नगरी को भगवान श्री कृष्ण ने जमीन के एक टुकड़े पर बनाया था जिसे कालांतर में समुद्र ने पुनः अपने वश में कर लिया था। ऋषि दुर्वाशा ने एक बार भगवान श्री कृष्ण और उतनी पत्नी माता रुक्मणि के दर्शन के लिए द्वारिका की यात्रा की। यहां पर आने के बाद ऋषि दुर्वाशा ने भगवान श्री कृष्ण और उतनी पत्नी माता रुक्मणि को अपने निवास स्थान पर चलने का आग्रह किया। भगवान श्री कृष्ण दुर्वाशा ऋषि की बात पर सहमत हो गए और उन्होंने यात्रा शुरू कर दी। कुछ दूर चलने के बाद जब माता रुक्मणि को प्यास का अनुभव हुआ तो उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से पानी का अनुरोध किया। तब श्री कृष्ण ने पौराणिक छेद को खोला और गंगा जी वहां पर ले आए, इस घटनाक्रम को देखने के बाद ऋषि दुर्वाशा उग्र हो गए और उन्होंने माता रुक्मणि को श्राप दे दिया कि तुम जहाँ पर हो अब उस जगह से हिल नहीं सकती हो। ऐसा माना जाता है द्वारिका मंदिर का निर्माण ठीक उसी स्थान पर हुआ है जहाँ पर माता रुक्मणि खड़ीं थीं।
तो यह था द्वारिका स्थित श्री द्वारिका धीश मंदिर का इतिहास।(Dwarkadhish Temple History In Hindi)
एक नए माता-पिता के तौर पर, बच्चे के रोने की आवाज़ से ज़्यादा परेशान करने…
घर में एक नन्हे मेहमान का आना दुनिया की सबसे बड़ी खुशियों में से एक…
हिसार, हरियाणा – हरियाणा के हिसार जिले के भाटोल जाटान गांव की कीर्ति बामल, जो…
मध्य प्रदेश, जिसे हम गर्व से Heart of Incredible India कहते हैं, अब सिर्फ घूमने…
अगर आप भारतीय रेलवे की ऑनलाइन टिकट बुकिंग सेवा IRCTC का इस्तेमाल करते हैं, तो…
Facts About Chandratal Lake In Hindi: भारत में हज़ारों की संख्या में घूमने की जगहें…