धर्म

गुरु नानक देव जी के जीवन की कहानी

Guru Nanak History In Hindi: गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक थे। इनका जन्म 14 अप्रैल, 1469 को उत्तरी पंजाब के तलवंडी गांव के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके पिता तलवंडी गांव में पटवारी थे। इनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन होने के कारण सिख लोग इस दिन को प्रकाश उत्सव या गुरु पर्व के रूप में मनाते है। गुरुनानक को पारसी और अरबी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।

नानक जी ने बचपन से ही चरवाहे का काम किया था। एक दिन नानक देव जी के पशुओं ने पास में खड़ी फसल को बर्बाद कर दिया था। इसलिए उनके पिता जी ने बहुत डांटा था। लेकिन जब गांव का मुखिया राय बुल्लर फसल देखने गया तो उन्होंने फसल को सही सलामत पाया था। इसी प्रकार गुरु नानक जी के चमत्कार शुरू हुए थे।

उनके पिता जी नानक का ध्यान कृषि और व्यापार में लगाना चाहा, लेकिन उनके सभी प्रयास व्यर्थ गए। एक बार उनके पिता जी ने घोड़ो के व्यापार के लिए 20 रुपये दिए थे। नानक जी ने उन 20 रुपये का भूखो को भोजन करवा दिया था।

Prabhasakshi

गुरु नानक जी का विवाह 24 सितंबर, 1487 में मूल चंद की बेटी सुलक्षणा देवी से उनकी बहन नानकी और जीजा जय राम ने करवा दिया था। नानक जी रीति-रिवाजों का विरोध शुरू से ही करते थे। इसके कारण उनके ससुराल वालो ने पहले तो शादी करने से मना कर दिया था और बारात वापस भेजने की भी धमकी दी थी। इसके बाद नानक जी को वधु पक्ष वालो ने उनको मरने के लिए मिट्टी की कच्ची दीवार के पास बैठा दिया। लेकिन इस साजिश की खबर गुरु नानक को लग गयी थी। इसके बाद नानक देव जी ने उस दीवार को सदियों तक न गिरने की घोषणा की। वह दीवार आज भी गुरुद्वारा कंध साहिब, गुरदासपुर पंजाब में एक कांच में बंद है।

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गुरु नानक जी के दो पुत्र थे। एक का नाम श्रीचंद और दूसरे का लक्ष्मीचंद था। 1499 में नानक और मर्दाना दोनों ही एकेश्वर की खोज के लिए निकल पड़े। नानक जी ने अपनी यात्राओं के दौरान हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धार्मिक स्थलों की। पूजा की उनका कहना था कि ईमानदारी से रोजगार करो। अपनी आय का कुछ भाग गरीबो में बांटना चाहिए और हर रोज ईश्वर की आराधना करो।

नानक जी ने जीवनभर देश-विदेश में यात्रा की थी। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम चरण परिवार के साथ करतारपुर में बिताये थे। 25 सितंबर, 1539 को गुरु नानक देव जी ने अपना शरीर त्याग दिया। ऐसा कहा जाता है कि उनकी अस्थियो की जगह फूल मिले थे। इन फूलों का हिन्दू और मुस्लिम अनुयायियों ने अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया।

प्रशांत यादव

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