Holi Puja Muhurat Timings 2022: होलिका दहन जिसे छोटी होली भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार होलिका दहन प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए। प्रदोष काल सूर्यास्त होने के बाद के समय को कहा जाता है। होलिका दहन के समय पूर्णिमा तिथि रहती है, पूर्णिमा तिथि के आधे भाग में भद्रा रहती है और भद्रा के प्रबल होने पर किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार, दुष्ट सम्राट हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था और उन्ही की भक्ति में लीन रहता था। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझता था और सभी देवो में अपना स्थान सबसे ऊपर मानता था। हिरण्यकश्यप को यह पसंद नहीं था कि उनका बेटा उनकी भक्ति नहीं करता बल्कि भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता है। वह चाहता था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करना बंद करे और हिरण्यकश्यप की पूजा करे। जब प्रह्लाद ने ऐसा करने से मना कर दिया तब उसके पिता ने उसको मारने की कोशिश की। हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसको नहीं जला सकती, इसीलिए राजा हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को होलिका की गोद में बैठा कर दोनों को अग्नि में जलाने का आदेश दे दिया। परन्तु प्रह्लाद भगवान विष्णु का नाम जपता रहा और उनके आशीर्वाद से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। वहीं दूसरी ओर होलिका को आग ने जला दिया और इस बार उसका वरदान काम नहीं आया। ऐसा माना जाता है कि वरदान तब ही लागू होता था जब होलिका अकेली आग में बैठती थी। इस कथा के साथ, होलिका दहन की परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गई।
इस साल 17 तारीख को प्रदोष काल में भद्रा है और मध्य रात्रि में भी भद्रा का साया बना हुआ है। इसके साथ ही अगले दिन प्रदोष काल से पहले ही पूर्णिमा समाप्त हो जा रही है। जिस दिन प्रदोष काल में पूर्णिमा हो उस दिन भद्रा मुख काल को छोड़कर होलिका दहन कर लेना चाहिए। इसी नियम के अनुसार साल 2022 में 17 मार्च को शाम 6 बजकर 33 मिनट से रात 8 बजकर 58 मिनट के दौरान प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाएगा। क्योंकि इस समय में भद्रा का साया नहीं रहेगा।
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