How Many Wife of Lord Krishna in Hindi: आज तक हम सभी धर्म और शास्त्रों में सुनते आ रहे हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के एक नहीं या दो नहीं बल्कि करीब 16108 रानिया हैं और सभी उनके साथ खुश रहती थीं। महाभारत के अनिसार कृष्ण ने रुक्मणी का हरण करके उनसे विवाह किया था। विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणि प्रेम करती थीं और उनसे विवाह करने की इच्छा रखती थीं। रुक्मणि के पाच भाई रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस और रुक्ममाली थे। रुक्मणि सर्वगुण संपन्न थीं इसके अलावा उनके माता-पिता बी श्रीकृष्ण से ही विवाह कराना चाहते थे लेकिन रुक्म ताहता था कि बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल से हो। इस वजह से उन्हें रुक्मणी से भागकर शादी करनी पड़ी थी। ये तो थीं इनकी पहली शादी इसके अलावा इनकी 7 शादियां और हुईं, कैसे ? चलिए आपको बताते हैं।
पांडवों के लाक्षागृह से कुशलतापूर्वक बचने के लिे सात्यिकी यदुवंशियों को साथ लेकर श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने इंद्रप्रस्थ गए। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रोपदी और कुंती ने उनका अथिति के रूप में पूजन किया। इस प्रवास के दौरान एक दिन अर्जुनन को साथ लेकर कृष्ण वन में घूमने निकले। यहां पर वे घूम रहे थे तो वहां सूर्य पुत्री कालिंदी, श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की कामना से तप करते हुए देखा तो उन्होने कालिंदी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए उनसे विवाह किया। फिर वे एक दिन उज्जयिनी की राजकुमारी मित्रबिंदा के स्वयंवर से उन्हे वर लाए, इसके बाद कौशल के राजा नग्नजित के सात बैलों को एकसाथ नाथ पर उनकी कन्या सत्या से भी विवाह कर लिया। फिर उनका कैकेय की राजकुमारी भद्रा से भी विवाह संयोगवश हो गया। भद्रदेश की राजकुमारी लक्ष्मणा भी श्रीकृष्ण को चाहती थीं लेकिन परिवार कृष्ण से विवाह के लिए राजी नहीं हुआ तो उन्हें भी वर कर अपने साथ ले आए। तो इस तरह श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा हुईं।
श्रीकृष्ण अपनी 8 पत्नियों के साथ सुखपूर्वक द्वारिका में रहते थे। एक दिन स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने आकर उनसे प्रार्थना की कि प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण बहुत परेशान हो गए हैं। क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली है और वे त्रिलोकी विजयी हो गया। इंद्र ने कहा, ”भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुंदरी कन्याओं का हरण करके उन्हें यहां बंदी बना लिया था। कृपया आप उन्हें बचाएं।” इंद्र की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण अपनी सबसे प्रिय पत्नी सत्भामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार होकर प्रागज्योतिषपुर पहुंच गए। वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से पहले मुर दैत्य सहित मुर के छ: पुत्रों ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया। इसके बाद पुत्रों के मरने की खबर सुनपर भौमासुर सेनापतियों और दैत्यों को लेकर युद्ध पर निकला। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए उन्होने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद सत्यभामा की सहायता से श्रीकृष्ण ने भौमासुर का वध कर दिया। इस प्रकार भौमासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर प्रागज्योतिष का राजा बनाया।
भौमासुर द्वारा हरण की हुई 16,100 कन्याओं को श्रीकृष्ण ने मुक्त किय। इन कन्याओं का अपहरण हुआ था तो वे सभी भौमासुर के द्वारा पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित, लांछित और कलंकित थीं। समाज की यातनाएं कैसे सहेंगी और इन्हें कौन अपनाएगा। ये सभी बातों को सोचते हुए सभी ने अपने रक्षक श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया। श्रीकृष्ण इन सभी को अपने महल द्वारिकापुरी ले आए। यहां पर सभी कन्याएं स्वंत्रतापूर्वक और अपनी इच्छानुसार जीवन जीने के साथ सम्मानपूर्वक रहती थीं। वे सभी वहां भजन, कीर्तन, ईश्वर की भक्ति और नृत्य करके सुखीपूर्वक साथ रहती थीं।
हिंदू ग्रंथों के मुताबिक श्रीकृष्ण विष्णु भगावन के 8वें अवतार थे। इंसान के रूप में थे तो मृत्यु होना भी तय था मगर खगोलीय शोधकर्ताओं ने घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटीक वर्णन किया है। ब्रिटेन में काम करने वाले न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में बताया कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर, 3067 ईसा पूर्व को घटित हुआ था और उस समय श्रीकृष्ण की उम्र लगभग 55-56 रही होगी। उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में एक रिसर्च का हवाला दिया है।
पुराणों के अनुसार, 8वें अवतार के रूप में विष्णु ने ये अवतार 8वें मनु वैवस्वत के समय 28वें द्वापर में श्रीकृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से 8वें पुत्र के रूप में मथुरा के कारागार में हुआ था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकलने के बाद 8वें मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि का संयोग था को आज से करीब 5125 साल पहले की बात है। ज्योतिषियों के अनुसार रात के 12 बजे का समय शून्य होता है। ऐसा बताया जाता है कि इसी के साथ आर्यभट्ट ने शून्य का अविष्कार किया था। उनके अनुसार, महाभारत का युद्ध 3137 ईपू में हुआ था। इस युद्ध के 35 साल बाद श्रीकृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया ता और तभी से कलयुग का आरंभ हो गया था। उनकी मृत्यु एक बहेलिए का तीर लगने से हुई थी और तब उनकी उम्र 125 वर्ष थी।
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