भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा…जो हर साल बड़ी ही धूमधाम से निकाली जाती है। इस समय देखने लायक होता है पुरी का नज़ारा और इस भव्य समारोह में शामिल होने के लिए आस्था का सैलाब उड़ीसा के पुरी शहर में हर साल उमड़ता है। सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी आस्था के इस पर्व को देखने के लिए जुटते हैं। आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को हर साल भगवान जगन्नाथ की ये विश्व प्रसिद्ध यात्रा निकाली जाती है। जिसमें जगन्नाथ मंदिर के तीनों मुख्य देवता… भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की झाकियां अलग अलग भव्य रथों पर सवार कर निकाली जाती है।
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू होती है आषाढ़ शुक्ल द्वितीय से। इस दौरान भगवान जगन्नाथ को पुरी नगर में भ्रमण कराया जाता है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्रजी और देवी सुभद्रा के अलग अलग भव्य रथ तैयार किए जाते हैं। तीनों देवी-देवताओं को इनके रथ में बड़े ही आदर के साथ विराजमान कराकर नगर में भ्रमण करते हुए जनकपुर स्थित गुंढ़ीचा मंदिर ले जाया जाता है। कहा जाता है कि ये भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। जहां तीनों अगले सात दिनों तक विश्राम करते हैं। भगवान जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि पूर्वक उतार कर इनकी मौसी के घर यानि कि गुंडीचा मंदिर में विराजमान कराया जाता है। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है। जहां अगले 7 दिनों तक निवास करने के बाद 8वें दिन यानि आषाढ़ शुक्ल दशमी को तीनों देवी-देवता जगन्नाथ पुरी मंदिर की ओर दोबारा प्रस्थान करते हैं। इस रस्म को स्थानीय लोग ‘बहुड़ा यात्रा’ कहते हैं।
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा अपने धार्मिक कारणों से तो विश्व प्रसिद्ध है ही साथ ही इस यात्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले रथ भी बेहद खास होते हैं जो इस यात्रा के आकर्षण का मुख्य केंद्र माने जाते हैं। आइए आपको बताते हैं इस रथ यात्रा से जुड़ी कुछ खास बातें।
1. रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण बिना किसी धातु के होता है। इन रथों में केवल तीन प्रकार की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है।
2. इन रथों के निर्माण के लिए काष्ठ यानि लकड़ी के चयन का काम बसंत पंचमी से शुरू होता है। इस दौरान स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है। एक बार लकड़ी का चयन हो जाने के बाद अक्षय तृतीया से रथों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाता है।
3. जगन्नाथ जी का रथ 16 पहियों का होता है, जिसमें 832 लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल करते हैं।
4. यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जी का रथ बलभद्र जी और सुभद्रा जी के रथ के पीछे चलता है। और इनके रथ पर हनुमानजी और नृसिंह का प्रतीक अंकित होता है।
5. इस रथयात्रा में लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। कहते हैं रथ खींचने से पुण्य मिलता है लिहाज़ा देश के कोन-कोने से भक्त यहां पहुंचते हैं।
6. रथ के आगे-आगे सफाई की जाती है लेकिन खास बात ये है कि रथ के मार्ग की सफाई सोने की झाडू से की जाती है।
7. भगवान जगन्नाथ जी का रथ सबसे ऊंचा16 मीटर, बलभद्र जी का रथ 14 मीटर और सुभद्रा जी का रथ 13 मीटर ऊंचा होता है।
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