श्रावण मास शुरू हो गया है और इस समय शिव भक्त कांवड़ लेकर गंगाजल लेने जाते हैं और उसी जल को शिव भगवान पर चढ़ा कर उनका जलाभिषेक करते है। माना जाता है ऐसा करने से शिव भगवान प्रसन्न होते है और अपने भक्तो की मनोकामना पूरी करते है। सुख और समृद्धि की कामना करते हुए भक्त कांवड़ यात्रा के लिए जाते है। कांवड़ यात्रा काफी कठिन होती है। इस यात्रा में कई नियमो का पालन करना पढ़ता है। कांवड़ यात्रा कई तरह की होती है। आज हम आपको इस यात्रा के बारे में संक्षिप्त बाते बातएंगे।
2. झूला कांवड़ – इस कांवड़ को बासं के डंडे के साथ जोड़ कर बनाया जाता है। उसके बाद दोनों कांवड़ों में गंगा जल भरा जाता है। अगर किसी यात्री को आराम करना होता है तो वह उस समय कांवड़ को किसी ऊंची चीज़ पर टांग देता है ताकि वह ज़मीन पर ना रखनी पढ़े। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योकि कांवड़ को ज़मीन पर रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
3.खड़ी कांवड़- ये काफी मुश्किल कांवड़ होता है। कांवड़िये इस कांवड़ को ना ही ज़मीन पर रख सकते है ना ही किसी ऊंची जगह पर टांग सकते है। जब कांवड़िये को आराम करना होता है तब वह अपना कांवड़ किसी और को उठाने के लिए दे देते है।
4.झांकी कांवड़– इस कांवड़ में यात्री बड़ी-बड़ी झांकिया निकाल कर लेकर जाते है। इस यात्रा में कई लोग ग्रुप बना कर जाते है। इन झांकियो में शिव भगवान की बड़ी मूर्तियों को ट्रक या खुली गाड़िओ में रखा जाता है। इस झांकी की सबसे ज़ायदा मज़ेदार बात ये होती है की इसमें लोग यात्रा के साथ -साथ संगीत भजन करते हुए जाते है।
5. डाक कांवड़ – डाक कांवड़ एक तरह से झांकी कांवड़ की तरह ही होता है। इसमें भी शिव भगवान की मूर्ति को सजाकर ढोल नगाड़ो के साथ लेकर जाया जाता है। पर इस कांवड़ में एक कठिन चीज़ ये होती है की यात्रियों को जल लेकर दौड़ते हुए मंदिर तक जाना होता है। ऐसे दौड़ते हुए मंदिर तक जाना काफी मुश्किल होता है।
ये तो बात हो गई की कांवड़ कितने प्रकार के होते है तो अब हम जानते है की कांवड़ की यात्रा करते हुए किन नियमो का ध्यान देना चाहिए है।
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