धर्म

जानें क्या है माता के पवित्र शक्तिपीठ की कहानी

Maa Durga Shakti Peeth: हिंदू धर्म में मां दुर्गा को एक बहुत ही अहम स्थान दिया गया है। साथ ही मां दुर्गा पौराणिक कथाओं में एक बेहद शक्तिशाली देवी हैं। पुराणों का हिंदू धर्म में बहुत ही विशेष महत्‍व है। मां दुर्गा सभी के संकटों को दूर करती हैं और बुरी शक्तियों का संहार करती हैं। मां के दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता है। जो सच्चे दिल और पूरी श्रद्धा के साथ मां की पूजा-अर्चना करता है, मां उसकी सभी मुरादें पूरी करती हैं। मां दुर्गा की शक्ति और उनकी ममता का जितना वर्णन करो उतना ही कम है। माता के शक्‍ति पीठों का वर्णन पुराणों में बहुत ही अच्छे से किया गया है। माता के नवरात्रे हिंदू धर्म के प्रमुख पर्व हैं, जिसका सभी भक्त बेसब्री से इंजतार करते हैं और नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं।

भारतवर्ष में नवरात्र आने वाले हैं और इसी के साथ हर एक जगह मां के जयकारों से गूंज उठेगी। नवरात्रों में मां के नौ अलग-अलग रुप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा की जाती है। पूरे भारत में यह पर्व बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसे में मां के शक्‍तिपीठों पर एक बहुत ही भव्य नजारा होता है और मां के भक्तों का सभी शक्तिपीठ पर तांता लगा होता है। पुराणों में इन सभी शक्‍तिपीठों की महिमा अपरमपार है और यह शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। यह शक्तिपीठ वहां बने हुए हैं जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े, वस्‍त्र और गहने गिरे थे।

जानकारी के लिए बता दें कि पुराणों के अनुसार सती माता के पिता दक्ष राजा ने कनखल (हरिद्वार) में बृहस्पति सर्व नामक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिवजी के अलावा ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और सभी देवी देवताओं को बुलाया। दक्ष राजा ने अपने जवाई भगवान शिव का अपमान करने के लिए इस यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में माता सती भगवान शंकर के मना करने पर भी जा पहुंची। यज्ञ-स्थल पर पहुंच कर जब माता सती ने अपने पति का स्थान नहीं पाया तो उन्हें बहुत दुख हुआ।

जब उन्होंने अपने पिता से इसका कारण पूछा तो राजा दक्ष ने शंकर जी से नाराज होने के कारण सबके समक्ष भोलेनाथ का अपमान किया। उन्होंने सबके सामने शिवजी को अपशब्द कहे। अपने पति का अपमान सती सह नहीं पाईं और वह क्रोध एवं लज्जा वश यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर सती हो गयी।

इस बात का जब भगवान शिव को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे और उनकी तीसरी आंख खुल गयी। तीसरा नेत्र खुलने से शिवजी ने यज्ञ को तहस-नहस कर दिया और चारों ओर हाहाकार मचने लगा। माता सती के पार्थिव शरीर को यज्ञकुंड से निकाल कर कालों के काल भगवान शंकर ने अपने कंधे पर उठा लिया और दुखी होकर ब्रह्मांड में इधर-उधर घूमने लगे। भगवान शिव के क्रोध की ज्वाला में सब कुछ खत्म होता देख भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को बहुत से टुकड़ो में काट दिया और फिर जिन-जिन स्थानों पर मां के शरीर और उनके आभूषणों के टुकड़े गिरे आज वह स्थान पूज्य हैं और शक्तिपीठ कहलाते हैं।

शक्ति जिसका अर्थ ही दुर्गा होता है, उन्हें दाक्षायनी या पार्वती रूप में भी पूजा जाता है। इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन है। वहीं, देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं। पुराणों के अनुसार मान्यता है कि इन सभी 51 शक्तिपीठों में से भारत में मात्र 42 शक्तिपीठ रह गए हैं, जबकि अन्य 4 बांग्लादेश में और 2 नेपाल में हैं। इसके अलावा 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में तथा 1 भारत के दक्षिण में स्थित देश श्रीलंका में और 1 शक्तिपीठ तिब्बत में है। आपको पता होना चाहिए कि ये सभी शक्तिपीठ अत्यंत पावन तीर्थ स्थान हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही लोगों का कल्याण हो जाता है। नवरात्र के दौरान इन सभी शक्तिपीठों पर माता के भक्तों की भीड़ जुट जाया करती है।

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