धर्म

आखिर क्यों महाकालेश्वर में की जाती है चिता की भस्म से शिव की आरती, जानिए भस्म आरती का महत्व

भगवान भोलेनाथ को विचित्र चीजों से ही प्रेम है। भगवान की पूजा में जहरीले धतूरे से लेकर नशीली भांग का इस्तेमाल किया जाता है। भोलेनाथ को अड़भंगी भी कहा जाता है। भगवान अपने शरीर पर भस्म लगाये रहते हैं। लेकिन यह भस्म वह यूं ही नहीं लगाते। इसके पीछे भी एक कारण है। इन दिनों सावन का पवित्र महीना चल रहा है और आज सावन का पहला सोमवार है, तो आज के इस पोस्ट में हम आपको भोलेनाथ से जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों भगवान शिव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं और महाकालेश्वर में होने वाली भस्म आरती का मतलब क्या है।भगवान शिव सरल होने के साथ-साथ बेहद रहस्यमयी भी हैं। शिवजी के बारे में पुराणों में अनेकों ऐसे राज छिपे हैं, जिनसे मनुष्य आज भी अनजान है।  मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान शिव का महाकालेश्वर मंदिर स्थित है. इस मंदिर में भगवान के कई अवतारों की पूजा की जाती है।  लेकिन यहां जिसे सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है, वह है शिव का अघोरी रूप।आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर में शिवलिंग पर चिता की ताजी भस्म लगाकर आरती की जाती है। जी हां, जैसे साधू-संत अपने शरीर पर भस्म लगाकर घूमते हैं, ठीक उसी तरह यहां शिवलिंग पर ताजी चिता की भस्म लगाकर आरती की जाती है। इतना ही नहीं, भगवान का श्रृंगार भी इसी भस्म से किया जाता है। आखिर क्यों भस्म से की जाने वाली इस आरती को इतना महत्व दिया जाता है, आईये हम आपको बताते हैं।

क्या है महत्व

आपको बता दें केवल उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म से आरती की जाती है। इस आरती को करने का ढंग बेहद अलग है। यह आरती सुबह के समय 4 बजे होती है। इस आरती को करने के लिए चिता की ताजी राख का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, कुछ कारणों से अभी आरती में भस्म का इस्तेमाल नहीं हो रहा. लेकिन जानकर हैरानी होगी कि पहले लोग अपने जिंदा रहते ही इस आरती के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लिया करते थे। जब ये लोग दुनिया छोड़ते थे तो इनकी इच्छा अनुसार इन्हीं की चिता की भस्म से भगवान की आरती की जाती थी। इस आरती को केवल मंदिर के कुछ पुजारी किया करते थे। ये आरती बंद कमरे में की जाती थी। दरअसल, भगवान के कक्ष में कैमरे लगे होते हैं और भक्त लोग बाहर खड़े होकर इस आरती को देखते थे।

इस वजह से की जाती है भस्म आरती

बता दें, मान्यता अनुसार भगवान अपने शरीर पर माता सती की चिता की भस्म लगाते हैं। कथा अनुसार एक बार सती अपने पिता दक्ष के घर यज्ञ में गयीं, जहां उनके पिता ने सबके सामने शिवजी का अपमान किया। शिवजी के निरादर से वह आहत हो गयीं और हवनकुंड में ही कूदकर अपनी जान दे दी। जब महादेव को इस बात का पता चला तो उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने जलते हुए कुंड से माता सती के शरीर को निकाला और प्रलाप करते हुए ब्रहामंड का भ्रमण करने लगे। पूरी सृष्टि को भगवान के क्रोध से डर लगने लगा था। जिस-जिस जगह सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। इसके बाद भी महादेव का प्रलाप जारी रहा. तब जाकर श्री हरी ने माता सती के शरीर को भस्म के रूप में परिवर्तित कर दिया। तबसे ही महादेव अंतिम निशानी के तौर पर माता सती की चिता की भस्म को अपने शरीर पर लगाने लगे और तभी से भगवान की आरती के लिए चिता की भस्म का इस्तेमाल होने लगा।

कब जाएं महाकालेश्वर

वैसे तो आप महाकालेश्वर के दर्शन के लिए कभी भी जा सकते हैं लेकिन सावन और शिवरात्रि के मौके पर यहां विशेष आयोजन होता है। सावन के महीने में देश के कोने-कोने से लोग महाकालेश्वर का दर्शन करने आते हैं। यहां भक्तों की भीड़ देखकर आपका सिर चकरा जाएगा। केवल देश नहीं बल्कि महादेव को मानने वाले विदेशी भक्त भी उनके दर्शन के लिए उज्जैन पहुंचते हैं।

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Shikha Yadav

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