Natraj Stuti: अक्सर आपने नृत्य विद्यालय में नटराज की मूर्ति देखी होगी और जितने भी नृत्यकार यानी डांसर होते हैं वे सभी ‘नटराज स्तुति’ करके ही आगे की सीख अपने विद्यार्थियों को देते हैं। उनके लिए नटराज पूजन बहुत जरूरी होती है और इसके बिना वे अपना नृत्य सिखाने की कला किसी के साथ बांट नहीं सकते। Natraj Stuti करने से पहले कई तरह की विधियां होती हैं और उनमें से नटराज स्तुति अहम है।
नटराज स्तुति पाठ भगवान नटराज से जुड़ा एक पाठ होता है और इसको शक्तिशाली पाठ कहा जाता है। इसे पढ़ने से हर मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। नटराज को भगवान शिव का रूप कहा जाता है और नटराज को नृत्य का देवता भी कहते हैं। आखिर नटराज भगवान हैं कौन और ये नटराज स्तुति पाठ क्या है इसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए। नटराज शब्द ‘नट’ और ‘राज’ शब्द से मिलकर बना है। शिव भगवान का तांडव नृत्य उनका ही एक रूप है और तांडव के यही दो स्वरूप हैं। पहला रूप शिव भगवान के क्रोध को दर्शाता है और दूसरा स्वरूप आनंद का प्रतीक होता है। जब शिव जी क्रोध में तांडव करते हैं तो उसे शिव रुद्र कहते हैं और वही शिव आनंद तांडव करते हैं तो उसे शिव नटराज के नाम से जानते हैं। पुराणों में शिव जी के तांडव का जिक्र करते हुए बताया गया है कि शिव के तांजव से ही ये सृष्टि बनी है और शिव के आनंद तांडव से ये संसार अस्तित्व में आया। जबकि शिव के रौद्र तांडव में इस संसार का नाश हो जाता है।
जो लोग नृत्य करना पसंद करते हैं और इस कला को सीखना चाहते हैं वे नटराज को अपना भगवान मानते हैं। जब लोग नृत्य करना शुरु करते हैं तो सबसे पहले नटराज की मूर्ति को प्रणाम करके नटराज स्तुति करते हैं और फिर अपना नृत्य शुरु करते हैं। नटराज की मूर्ति देखने में काफी अलग तरह की होती है और इसमें नृत्य मुद्रा में एक मूर्ति दिखाई देती है जो भगवान शिव की है और वे एक पैर खड़े नजर आते हैं। जबकि उनका एक पैर बौने को दबा रखा है। मूर्ति में इनकी चार भुजाएं दिखाई देती हैं और इनका पहला दाहिना हाथ ऊपर की ओर उठा है और इस हाथ में नटराज ने डमरू पकड़ा है। डमरू का सृजन प्रतीक है। ऊपर की ओर उठे दूसरे हाथ में अग्नि होती है जो विनाश को दर्शाती है।
नटराज की मूर्ति का दूसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में होता है जो बुराईयों से रक्षा का प्रतीक है जबकि दूसरा बाया हाथ उनके उठे हुए पांवों की ओर इशारा करता है। जो कि मोक्ष के मार्ग को दर्शाता है, इसके अलावा उनकी मूर्ति चारों ओर से अग्नि घिरी होती है जो कि इस ब्राह्मांड का प्रतीक है। वहीं नटराज के पैरों के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान को दर्शाता है और इस बात का प्रतीक है कि शिव अज्ञान का विनाख करते हैं। इसके अलावा नटराज के शरीर पर कई लहराते सर्प कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक मानते हैं और अगर शिव की नटराज मूर्ति को ध्यान से देखा जाए तो ये मूर्ति ‘ओम’ आकृति में दिखाई देती है।
शास्त्रों के अनुसार, शिव के नटराज रूप का वर्णन पढ़ना हर नृत्यकारों के लिए जरूरी है। इस बारे में ऐसा कहा जाता है कि एक बार शिव जी और मां काली के बीच नृत्य की प्रतियोगिता हुई थी और इस प्रतियोगिता में भगवान विष्णु न्यायधीश बने थे। शिव और मां काली दोनों ही बेहद ही सुंदर तरह की मुद्रा लेकर यह नृत्य कर रहे थे। वहीं इस दौरान शिव जी ने अपने पैरों को कुमकुम में डाल दिया और इन पैरों को काली मां के माथे पर लगा दिया। शिव को ऐसा करता देख काली मां नृत्य करते हुए रुक गई और शिव जी इस प्रतियोगित को जीत गए।
शास्त्रों में नटराज स्तुति भी लिखी गई और नटराज स्तुति का पाठ पढ़ना बहुत ही लाभ पाने वाला माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग नटराज स्तुति का पाठ करते हैं उन लोगों पर भगवान शिव की कृपा बनती। जो लोग किसी कला क्षेत्र से जुड़े होते हैं उन लोगों को नटराज स्तुति का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे वे अपने काम में पक्के हो जाते हैं क्योंकि नटराज भगवान को कला का भगवान भी माना जाता है और नटराज स्तुति इन्हीं से जुड़ी मानी जाती है। जो लोग नटराज स्तुति का पाठ करते हैं उन लोगों को नटराज यानी शिव भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और ये सभी कला में उत्तम बन जाते हैं। इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि जो लोग नटराज स्तुति का पाठ करते हैं उन लोगों से भगवान शिव आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी हर कामना को पूरी होती है। इसलिए अगर आपकी कोई इच्छा है जो पूरी नहीं हो पा रही है तो आपको नटराज स्तुति का पाठ जरूर करना चाहिए।
नटराज स्तुति का पाठ दूसरे पाठों की तरह होता है और इस पाठ को सुबह के समय पढ़ना चाहिए। इस स्तुति को नटराज की मूर्ति के सामने ही बैठकर सोमवार के दिन करना उत्तम होता है। इसके अलावा जो लोग कला से जुड़े हुए हैं वे लोग इसका पाठ करते हैं। संपूर्ण नटराज स्तुति पाठ इस प्रकार है-
सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः…
हेआद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः…
गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्माडना
नित होत नाद प्रचंडना
नटराज राज नमो नमः…
शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां
विषनाग माला कंठ मां
नटराज राज नमो नमः…
तवशक्ति वामांगे स्थिता हे चंद्रिका अपराजिता
चहु वेद गाए संहिता
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