धर्म

भगवान शिव के नीलकंठ अवतार को समर्पित है नीलकंठ महादेव मंदिर, आइए जानते हैं इसके इतिहास के बारे में

नीलकंठ महादेव मंदिर, हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। नीलकंठ महादेव मंदिर, देश के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक हरिद्वार में स्वर्ग मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर स्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिनको हिन्दू धर्म का सबसे प्रमुख और शक्तिशाली देवता माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे सदियों पुरानी एक पौराणिक कथा चलती आ रही है। आज के इस लेख में नीलकंठ महादेव मंदिर के इतिहास(Neelkanth Mahadev Temple History In Hindi) से संबंधित सभी जानकारी विस्तार पूर्वक देंगे।

Image Source: Rishikesh Tourism

नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास(Neelkanth Mahadev Temple History In Hindi)

जैसा की हमने आपको पहले ही बता दिया है कि नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव(Neelkanth Mahadev Temple) के नीलकंठ रूप को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के बाद जब सभी चीज़ें देवताओं और असुरों में बराबर बांटी जा रही थीं तो उन्ही चीज़ों में से हलाहल नाम का एक विष भी निकला था। इस विष को न तो देवता अपनाना चाहते थे और न ही असुर। हलचल विष को लेकर दोनों पक्षों के बीच तनाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। यह विष इतना खतरनाक था कि इससे सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश हो सकता था। सम्पूर्ण ब्रम्हांड की रक्षा के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष को ग्रहण करने का फैसला किया। जब भगवान शिव विष को पी रहे थे तो माता पार्वती ने उनका गला पकड़ लिया जिसकी वजह से विष न तो गले के अंदर गया और न ही गले से बाहर निकला। विष भगवान शिव के गले में ही अटक गया और इसके परिणाम स्वरूप उनका गला नीला पड़ने लगा और तभी से भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा।

विष की गर्मी की वजह से भगवान शिव हिमालय की ओर शीतलता की खोज के लिए निकल पड़े। भगवान शिव जब हरिद्वार पहुंचे तब मणिकूट पर्वत पर पंकजा और मधुमती नदी के संगम तट पर शीतलता की वजह से बैठ गए। भगवान शिव जिस स्थान पर बैठे थे उसी स्थान पर उन्होंने समाधि ले ली और उनकी इस समाधि को कई वर्ष बीत चुके थे, यह सब देखकर माता पार्वती चिंतित हो गयी। भगवान भोलेनाथ को समाधि में लीन देखकर सभी देवी देवता व्याकुल हो गए और सब ने मिलकर भोलेनाथ से समाधि भंग करने की प्रार्थना की। देवी देवताओं की प्रार्थना के बाद भगवान भोलेनाथ ने अपनी समाधि भंग की और कैलास की ओर प्रस्थान करने से पहले बोला कि आज से इस स्थान को नीलकंठ के नाम से जाना जाएगा। जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव समाधि में लीन थे, आज उस जगह पर एक विशालकाय मंदिर है।

नीलकंठ मंदिर का धार्मिक महत्त्व

नीलकंठ महादेव मंदिर मणिकूट, ब्रह्मकूट और विष्णुकूट की पहाड़ियों से घिरा हुआ भगवान भोलेनाथ का एक पवित्र मंदिर है। समुद्र तल से इस पवित्र मंदिर की ऊंचाई 1330 मीटर है। मंदिर की आध्यात्मिक आभा भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है। लोगों की ऐसी मान्यता है की इस मंदिर के मात्र दर्शन से ही इंसान को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

तो यह थी देवभूमि हरिद्वार स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर के इतिहास(Neelkanth Mahadev Temple History In Hindi) की जानकारी।

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Adarsh Tiwari

सॉफ्टवेयर की पढ़ाई करते करते दिमाग हैंग सा होने लगा तो कहानियां पढ़ने लगा. फिर लिखने का मन किया तो लिखना शुरू कर दिया। अब आप पढ़कर बताइए की कैसा लिख रहा हूँ.

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