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Prachin Hanuman Mandir History In Hindi: दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर, महाभारत काल से भगवान हनुमान के बाल स्वरुप को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने पांच मंदिरों को स्थापित किया था और उन पांच मंदिरों में से यह मंदिर भी एक है। इस प्राचीन प्राचीन हनुमान मंदिर में 1 अगस्त 1964 से लगातार श्री राम, जय श्री राम और जय जय राम का जप लगातार चल रहा है। इसी कारण से इस मंदिर का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। आज के इस लेख में हम आपको दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर के इतिहास के बारे में बताएँगे।
सन 1724 में जब जयपुर राजघराने के राजा जय सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और मंदिर को उसके नवीनतम स्वरूप में लाने के बाद ही इसे श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। इसके पहले यह मंदिर लगातार आताताइयों के हमलों को झेलता रहा और अपने गौरवमयी इतिहास को खुद के प्रांगण के अंदर ही समेटे रहा। देश में जब मुग़ल शासन था तब भी इसके ऊपर लगातार हमले हुए और इसको खंडित किया गया, मुग़ल दौर के आक्रामणों की कहानी आज भी मंदिर के संत और साधु सुनाते रहते हैं। कई वर्षों तक लगातार आक्रमणों से सामना करने के बाद भी इस मंदिर में विराजमान भगवान श्री बजरंगबली की बाल स्वरुप प्रतिमा को कोई भी क्षति नहीं पहुंचा पाया है। मंदिर के मुख्य पुजारी जिनकी पिछली 33 पीढ़ियां सेवा भाव से बाल हनुमान की सेवा करती आ रही हैं। यहाँ के निवासी बताते हैं कि इस पूरे क्षेत्र की रखवाली खुद भगवान बजरंगबली करते हैं।
ऐतिहासिक सन्दर्भों के साथ साथ इस मंदिर से सर्व धर्म सद्भाव की मिसाल भी समय समय पर पेश की गयी है। इतिहासकार बताते हैं कि मुगल बादशाह अकबर को जब शादी के कई वर्षों के बाद भी संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने इस मंदिर पर आकर विधिवत पूजा अर्चना की और संतान की प्राप्ति हेतु भगवान हनुमान से आशीर्वाद माँगा। भगवान हनुमान मुग़ल बादशाह की श्रद्धा से ख़ुश हुए और उन्हें संतान का सुख दिया। सौहाद्र की मिसाल के तौर पर मंदिर के विमान पर ओम अथवा कलश के स्थान पर आज भी चाँद मौजूद है।
शिल्पकला की दृष्टि से भी यह मंदिर बेहद ही उत्कृष्ट है, इस मंदिर के मुख्य द्वार का वास्तुशिल्प रामायण में वर्णित कला के अनुरूप है। मुख्यद्वार के सभी स्तम्भों पर सुंदरकांड की सभी चौपाइयां अंकित की हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि श्री रामचरित मानस जैसे महाकाव्य को लिखने के दौरान जब गोस्वामी श्री तुलसीदास सी दिल्ली यात्रा के लिए तो इन्होनेइस इस मंदिर का दर्शन किया था और श्री रामचरित मानस की 40 चौपाइयों को यहीं पर गढ़ा था
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