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जानें धर्म और आस्था का सैलाब माने जाने वाले रामेश्वरम मंदिर के बारे में

Rameshwaram Temple History In Hindi: भारत एक ऐसा देश है जिसे अगर मंदिरों का देश कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसका मुख्य कारण है यहाँ मंदिरों की संख्या। इस देश में जितने स्कूल और हॉस्पिटल नहीं हैं उससे भी ज्यादा मंदिर हैं। लोगों में आस्था और धर्म कूट-कूट कर भरे होने की वजह से मंदिरों के निर्माण पर लाखों रूपये खर्च किये गए हैं। हालाँकि धर्म और आस्था के प्रतीक इन मंदिरों की चमत्कारिक तथ्य वाकई हैरान करने वाले हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको एक ऐसे ही मशहूर मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जी हाँ हम बात कर रहे हैं दक्षिण भारत के प्रसिद्ध रामेश्वरम मंदिर(Rameshwaram Temple History In Hindi) की। आइये जानते हैं धर्म और आस्था का सैलाब कहलाने वाले रामेश्वरम मंदिर के बारे में।

क्या खासियत है रामेश्वरम मंदिर की ?(Rameshwaram Temple History In Hindi)

बता दें कि, दक्षिण भारत में स्थित रामेश्वरम मंदिर को भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। ऐसी मान्यता हैं कि, अगर इस मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसके साथ ही साथ यहाँ के पवित्र जल से स्नान करने से लोगों को हर प्रकार की गंभीर बीमारियों से भी छुटकारा मिल जाता है। इन कारणों से यहाँ हर साल लाखों भक्तअपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं। भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक रामेश्वरम को काफी ज्यादा महत्व दिया जाता है। कहते हैं कि, हर व्यक्ति को कभी ना कभी जीवन में एक बार रामेश्वरम जरूर जाना चाहिए। यहाँ भगवान् शिव और भगवान् राम दोनों की पूजा की जाती है।

Image Source: Tamil Nadu Tourism – Tn.gov.in

सभी चार धामों में से एक धाम रामेश्वरम को भी माना जाता है

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, हिन्दू धर्म के सभी चार धामों में से रामेश्वरम मंदिर को भी एक माना जाता है। ये मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है, यहाँ पर समुद्र पर स्थित पामबन ब्रिज के माध्यम से पंहुचा जाता है। इस मंदिर के बनावट की बात करें तो, करीबन हज़ार फ़ीट लंबा, 650 फ़ीट चौड़ा और डेढ़ सौ फ़ीट ऊँचा है, इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। यहाँ विशेष रूप से शिवलिंग की पूजा की जाती है, शिवजी के करीबन नौ शिवलिंग यहाँ पर स्थापित हैं। इसके साथ ही पूरे मंदिर में आपको भगवान् शिव की बहुत सी मूर्तियां भी देखने को मिल सकती है। इसलिए इस जगह को रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है। गंगोत्री से गंगाजल लाकर यहाँ चढ़ाने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिल सकता है।

कैसे हुई रामेश्वरम मंदिर की स्थापना

इस मंदिर की मान्यता से ज्यादा इस मंदिर का इतिहास चर्चित है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, यही वो जगह है जहाँ पर भगवान् श्री राम ने रावण का वध करने के बाद भगवान् शिव की पूजा आराधना की थी। जब लंकापति रावण ने सीता माता का हरण किया तो उस समय भगवान् राम उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे, लेकिन मजबूरन उन्हें रावण का वध करना पड़ा। धर्म शास्त्रों के अनुसार रावण एक ब्राह्मण था और इसलिए उसके वध के बाद भगवान् श्री राम पर ब्रह्म हत्या का पाप चढ़ गया था। अब चूँकि स्वयं भगवान राम पर ऐसा पापा चढ़ा है इसलिए उसे दूर करना काफी आवश्यक हो गया था। इसी पाप को दूर करने के लिए उन्होनें लंका से वापिस आते समय रामेश्वरम में शिव जी की पूजा अर्चना कर शिवलिंग स्थापित करने का विचार किया। इससे संबंधित एक कथा काफी मशहूर है, जिसके अनुसार भगवान राम ने हनुमान जी को रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित करने के लिए उन्हें काशी भेजा था। लेकिन हनुमान जी को काशी से शिवलिंग लाने में देर होगई, जिसके फ़लस्वरूरप माता सीता ने रेत का शिवलिंग बनाकर वहां प्रभु राम के साथ उनकी पूजा अर्चना की।

इसके बाद ही यहाँ रामेश्वरम मंदिर को बनवाया गया और शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। इस मंदिर में कुल चौबीस कुंड हैं, जिसे बेहद पवित्र माना जाता है। इसके साथ ही आपको बता दें कि, इस मंदिर के गलियारे को दुनिया का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। हर साल यहाँ हज़ारों सैलानियों के साथ ही भक्त भी शिव जी के दर्शन के लिए आते हैं।

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Indira Jha

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