भगवान शिव का पावन महीना शुरू हो गया है। 17 जुलाई से सावन शुरू हो गया है जो कि अगले महीने की 12 तारीख को जाकर खत्म होगा। शिव भक्तों के लिए यह महीना बेहद ख़ास होता है। इस पूरे महीने वह भक्ति-भावना में डूबकर शिवजी की पूजा-अर्चना करते हैं। यह महीना किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दौरान भक्त अलग-अलग मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत रखते हैं। कोई सुयोग्य वर या वधु पाने के लिए सावन के सोमवार का व्रत रखता है तो कोई पुत्र प्राप्ति के लिए। भक्त लोग अलग-अलग कारणों से भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। वहीं, कुछ भक्त ऐसे भी होते हैं जो बिना किसी स्वार्थ भगवान की पूजा करते हैं।
सावन के महीने के साथ कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है. इस पूरे महीने भक्त जगह-जगह कांवड़ ले जाते हुए दिखाई देते हैं। इस यात्रा के दौरान कांवड़िये जल लेकर मीलों तक चलते हैं और भोलेनाथ को अर्पित करते हैं। ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर कांवड़ होता क्या है? आखिर क्यों लोग अपने कंधे पर कांवड़ रखकर मीलों चलते हैं?
बता दें, कांवड़ का अर्थ होता है ‘कंधा’। सावन के महीने में लोग अपने कंधे पर कांवड़ रखकर उसमें गंगाजल डालकर मीलों की यात्रा तय करते हैं और इसी यात्रा को ‘कांवड़ यात्रा’ के नाम से जाना जाता है। लोग मीलों चलकर हरिद्वार, काशी जैसे पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं और वहां शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं. कांवड़िये बड़े उत्साह के साथ इतना लंबा सफर पैदल चलकर तय करते हैं। उनके लिए कुछ-कुछ मील की दूरी पर लोग चाय-पानी का भी बंदोबस्त करते हैं।
कांवड़ यात्रा दिखने में तो बेहद मौज-मस्ती वाला काम लगता है लेकिन असलियत में ऐसा होता नहीं है। केवल झुंड में पैदल चलने भर से यह यात्रा पूरी नहीं होती। कांवड़ यात्रा के भी कुछ नियम और कानून होते हैं। इन नियम-कानून को मानने पर ही कांवड़ यात्रा सफल मानी जाती है। क्या हैं कांवड़ यात्रा के नियम, आईये जानते हैं।
– कांवड़ यात्रा का सबसे पहला नियम है कि कांवड़िये बिना नहाये-धोये कांवड़ को छू नहीं सकते। स्नान करने के बाद ही यात्रा शुरू की जाती है।
– दूसरा नियम है कि आप कांवड़ को कभी नीचे जमीन पर नहीं रख सकते। अगर आप कुछ देर का विश्राम चाहते हैं तो कांवड़ को किसी उंचे स्थान या पेड़ पर रखें।
– कांवड़ यात्रा में किसी भी चमड़े से बनी चीजों का उपयोग करना सख्त मना होता है।
– कांवड़ ले जा रहे लोगों का व्यवहार नम्र, सरल और सहज होना चाहिए. वह किसी से बात करते समय गलत शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
– कांवड़ यात्रा के दौरान यह बेहद जरूरी होता कि आप भगवान शिव के नामों व उनके मंत्रों का जप करें। भले ही मन में लेकिन भगवान का ध्यान लगाना जरूरी है।
– इस यात्रा के दौरान कोई नशा भी नहीं कर सकता। नशा वाली चीजों से दूर होकर पूरी सच्ची श्रद्धा के साथ कांवड़ यात्रा की जाती है।
– कांवड़ यात्रा के दौरान आपको मांसाहारी भोजन से दूरी बनानी होगी। इस दौरान आप केवल शुद्ध सात्विक भोजन ही खा सकते हैं।
– कांवड़िये श्रृंगार सामग्री का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान शिव बैरागी हैं और उनको बैराग्य ही प्रिय है।
– इस यात्रा के दौरान कांवड़िये किसी वाहन पर नहीं बैठ सकते। वाहन तो दूर की बात है वह विश्राम के लिए किसी चारपाई का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते।
तो आपने देखा कांवड़ यात्रा इतना आसान नहीं है। इसके भी अपने कुछ नियम होते हैं जिनका सख्ती से पालन कारण बेहद जरूरी है। यदि आप इनमें से एक भी नियम का उल्लंघन करते हैं तो आपकी यात्रा सफल नहीं मानी जाती। इन कठिन नियमों को पालन करते हुए कांवड़िये अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं और महादेव का जलाभिषेक करते हैं।
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