सावन का पावन महीना चल रहा है। ये महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस महीने में जो कोई भगवान शिव की दिल से पूजा-अर्चना करता है, उसे फल अवश्य मिलता है। इस पोस्ट में हम आपको शिवजी के 19 अवतार के बारे में बताने जा रहे हैं। शिवपुराण में शिव जी के 19 अवतारों का वर्णन मिलता है। भगवान शिव ने ये अवतार अलग-अलग कारण से लिए थे।
व्यक्ति के जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बहुत महत्व है। पिप्पलाद की कृपा से ही शनि पीड़ा का निवारण हो सका। एक कथा की मान्यता अनुसार जब पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा कि आखिर किस वजह से मेरे पिता दधिची मुझे जन्म होने से पहले ही छोड़कर चले गए? जिसका जवाब देवताओं ने दिया कि ऐसा शनिग्रह की दृष्टि के कारण हुआ ह
जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव के अनादर से आहत होकर माता सती ने अपना शरीर त्याग दिया था, तब भगवान शिव के इस अवतार का जन्म हुआ था। जब सती के मृत्यु की बात शिवजी को पता चली तो उन्होंने अपने सिर से एक जटा उखाड़कर गुस्से में पर्वत के ऊपर फेंक दिया। उस जटा के भाग से भयंकर वीरभद्र का जन्म हुआ। शिव के इसी अवतार ने सती के पिता दक्ष का सिर काटकर उनसे सती के मृत्यु का बदला लिया था.
भगवान शिव का यह अवतार संदेश देता है कि मनुष्य को सभी जीवों से प्रेम करना चाहिए। नंदी एक बैल था जो भोलेनाथ की सवारी माना जाता है। नंदी को कर्म का प्रतीक माना जाता है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है।
शिव महापुराण के अनुसार भैरव परमात्मा शंकर के पूर्ण यानि पूरे रूप हैं।
अश्वत्थामा महाभारत में पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। अश्वत्थामा को काल, क्रोध, यम व भगवान शिव के अंशावतार भी माना जाता। कहा जाता है कि अश्वत्थामा को अमर होने का वरदान मिला था और वह आज भी धरती पर जीवित हैं और कहीं न कहीं हम सबके बीच में रहते हैं।
भगवान शिव का छठा अवतार शरभावतार है। यह भगवान शिव का आधे मृग (हिरण) और शेष शरभ (पक्षी) का अवतार था. पुराणों के अनुसार शरभ एक आठ पैरों वाला जंतु था, जिसे शेर से भी ज्यादा शक्तिशाली माना गया है।
विश्वानर नाम के मुनि और पत्नी शुचिष्मती भगवान शिव जैसा पुत्र चाहते थे। इसलिए शिव जैसे पुत्र की कामना में उन्होंने काशी में भगवान शिव के वीरेश लिंग की कठोर तपस्या की. विश्वानर की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने शुचिष्मति के गर्भ से पुत्र के रूप में जन्म लिया।
सती अनुसूइया के पति का नाम महर्षि अत्रि था. शास्त्रों में कहा गया है कि महर्षि अत्रि ने पुत्र की कामना के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने यह तपस्या ऋक्षकुल पर्वत पर की. उन्होंने ब्रह्मा के कहने पर ऐसा किया। उनकी तपस्या ब्रह्माजी प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के अंश से दत्तात्रेय और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।
आपको जानकर हैरानी होगी कि हनुमान जी भी भगवान शिव के 19 अवतारों में से एक अवतार थे। भगवान के इस अवतार को सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है
इस अवतार में जन्म लेकर शिवजी ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था।
इस अवतार के द्वारा भगवान ने अतिथि के महत्व को बताने की कोशिश की थी।
इस अवतार में शिवजी ने यज्ञ, पूजा-पाठ समेत तमाम धार्मिक कार्यों के महत्व को बताने की कोशिश की है।
भगवान शिव ने यह अवतार इसलिए लिया था ताकि वह इंद्र देव के अहंकार को चकनाचूर कर सकें।
भोलेनाथ को देवों का देव कहा जाता है। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के रक्षक भी भगवान शिव हैं। भगवान शिव के भिक्षुवर्य अवतार ने यही संदेश देने की कोशिश की है।
इस अवतार में शिवजी ने एक छोटे बच्चे उपमन्यु की भक्ति से खुश होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दे दिया था।
पांडुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा भगवान ने इसी अवतार में ली थी।
शिवजी ने राजा हिमालय से उनकी पुत्री पार्वती का हाथ मांगने के लिए यह अवतार लिया था. हाथ में डमरू लेकर शिवजी हिमालय के महल पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी का नृत्य देखकर सभा में मौजूद सभी लोग प्रसन्न हो गए। जब हिमालय ने शिवजी से भिक्षा मांगने को कहा तो उन्होंने भिक्षा में पार्वती को मांगा।
सती ने प्राण त्यागने के बाद हिमालय के घर में पार्वती का जन्म लिया. पार्वती ने शिवजी को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। लेकिन शिवजी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे इसलिए उन्होंने ब्रह्मचारी का अवतार लिया.
महादेव ने यह अवतार इसलिए लिया था ताकि वह देवी-देवताओं के गलत और झूठे अहंकार को तोड़ सकें।
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