Yudhishthir Ne Kunti Ko Kyu Diya Shrap: महाभारत से जुड़ा हुआ लगभग हर एक किस्सा सुनने वाले को कोई न कोई नई सीख सिखा जाता है। महाभारत का एक और किस्सा भी है जहाँ पर युधिष्ठिर ने अपनी माता कुंती को श्राप दिया था। हालाँकि युधिष्ठिर ने श्राप तो दिया था अपनी माता किन्तु को ही लेकिन उस श्राप का प्रकोप आज भी सभी महिलाओं के द्वारा भोगा जा रहा है।
महाभारत का युद्ध करीब 18 दिनों तक चला था, इन 18 दिनों के दरमियान कौरवों और पांडवों की ओर से लाखों योद्धाओं की मौत हुई। युद्ध के पश्चात् जब इन योद्धाओं के तर्पण की बारी आई तो पांडवों ने अपनी माता के साथ करीब 1 महीने तक गंगा के किनारे रहकर सभी योद्धाओं का तर्पण करने का निश्चय किया। दरअसल युद्ध में कौरवों और पांडवों के ही योद्धा मारे गए थे मात्र एक दिन में इन सभी योद्धाओं का तर्पण कर पाना मुश्किल था। धीरे धीरे दिन बीतते गए और पांडवों के द्वारा कौरव और पांडव पक्ष के परिजनों का तर्पण करते गए। एक महीने होने के साथ ही कर्ण को छोड़कर सभी योद्धाओं का तर्पण युधिष्ठिर के द्वारा किया गया था। युधिष्ठिर का तर्क था कि कर्ण न तो मेरा कोई रिश्तेदार है और न ही मेरा मित्र तो मैं उसका तर्पण कैसे कर दूँ। माता कुंती को जब कर्ण के तर्पण न होने की बात पता चली तो वह व्याकुल हो उठीं। माता कुंती की इच्छा थी की कर्ण का तर्पण युधिष्ठिर के द्वारा ही हो क्योंकि कर्ण उनका बड़ा भाई था। लेकिन कुंती ने यह बात अपने पांचों पुत्रों से छिपाये रखा। वहीँ श्री कृष्ण माता कुंती की भावनाओं की समझ गए थे और उन्होंने माता कुंती को भरोसा दिलाया कि वो अब कर्ण का सत्य अपने सभी पुत्रों से साझा कर दें। कृष्ण की बात को मानकर माता कुंती ने कर्ण के सत्य से पांचों पांडवों को अवगत कराया और बताया की कर्ण उनका सबसे बड़ा भाई है। माता कुंती ने बताया कि कर्ण का जन्म सूर्य देव के आशीर्वाद से हुआ था और विवाह से पूर्व जन्म लेने की वजह से कर्ण को अपनाया नहीं जा सका। इस पूरे घटनाक्रम को सुनकर युधिष्ठिर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी माता को श्राप दे दिया था। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शांत कराया और फिर बाद में श्राप के लिए युधिष्ठिर ने अपनी माता कुंती से क्षमा मांगी और फिर विधिपूर्वक कर्ण का तर्पण किया।
क्रोध में युधिष्ठिर ने श्राप देते हुए कहा था कि “आज से कभी भी कोई स्त्री अपने पेट में कोई भी बात छिपा कर नहीं रख पाएगी”
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