Amarkantak Tourism in Hindi: अमरकंटक वह स्थान है जहां से नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम हुआ है। अमरकंटक मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है। इस स्थान से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है। यही कारण है कि इसे एक पवित्र स्थल माना जाता है। मैकाल की पहाड़ियों में बसे अमरकंटक एक ऐसा स्थान है जहां भारी संख्या में लोग सालों भर घूमने के लिए पहुंचते हैं। यह समुद्र तल से लगभग 1056 मीटर की उंचाई पर बसा हुआ है। यही वह स्थान है जहां विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों का मेल भी होता है यह स्थान चारो तरफ से टीका और महुआ के पेड़ों से घिरा हुआ है। यहां से निकने वाली नर्मदा नदी पश्चिम की तरफ बहती है और सोन नदी पूर्व दिशा की तरफ बहती है। यहां बहने वाले खूबसूरत झरने खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों को अपनी ओर आकर्शित करते हैं। जो लोग प्राकृति से प्रेम करते हैं वह यहां आ कर कुछ वक्त व्यतीत करना काफी पसंद करते हैं। इतना ही नहीं अमरकंटक का इतिहास हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। ऐसा कहते हैं कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा यहां से जीवनदायिनी के रूप में यहां से बहा करती है। यहां बने हुए कई सारे मंदिर माता नर्मदा को समर्पित है। यहां माता दूर्गा का भव्य मंदिर बना हुआ है, माता दुर्गा को नर्मदा की प्रतिमूर्ति मानते हैं। यहां कई सारे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी भी पाए जाते हैं जो जीवन के लिए काफी लाभदायक होते हैं। तो चलिए इसी कड़ी में अब आगे जानते हैं कि अगर आप अमर कंचक जाते हैं तो ऐसी कौन-कौन सी जगहे हैं जहां आपको घूमना चाहिए।
कपिल धारा एक बेहद ही विख्यात जलप्रपात है जो कि नर्मदा कुंड से लगभग 7 किलो मीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम दिशा में बसा हुआ है। यह धारा करीब 150 फूट उंचे पहाड़ से नीचे की तरफ गिरता है। शास्त्रों के मुताबिक कपिल मुनी ने नर्मदा जी की धारा को इसी स्थान पर रोकने का प्रयत्न किया था। जिसके बाद वह नर्मदा जी को रोकने में तो असमर्थ रहें लेकिन नर्मदा जी की चौड़ाई बढ़कर लगभग 20 फीट हो गई। यह स्थान बेहद ही सुगम है यहां पहुंच कर सैलानी काफी सुकून की अनुभूती करते हैं। जो शैलानी यहां नहीं आते हैं वह अपने अमरकंटक की यात्रा को अधूरा समझते हैं।
दूधधारा नर्मदा जी का एक जल प्रपात है जो कि कपिलधारा से करीब एक किलो मीटर की दूरी पर बसा है। यह घने जंगलों के बीच में बसा हुआ है। यहां आने वाले लोग इसकी मनोरम छटा में खो जाते हैं। इस जलप्रपात की उंचाई करीब 10 फुट है। हिन्दु धार्मिक पुराण में इस बात का जिक्र है कि इसी स्थान पर दुर्वासा ऋषि ने तपस्या की थी। जिसके बाद इसका नाम “दुर्वासा धारा” पड़ गया। लेकिन आगे चल कर इसके दुग्ध जैसे सफेद रंग के कारण इल जलप्रपात का नाम दुधधारा पड़ गया। मान्यता यह भी है कि रीवा राज्य के एक राजकुमार पर प्रसन्न होकर माता नर्मदा ने उन्हें दूध की धारा के रूप में दर्शन दिया था उसी समय से इस जल प्रपात का नाम दूध धारा पड़ गया। इस जलप्रपात के बारे में इसी तरह की कई सारी और भी कहानियों का जिक्र किया जाता रहा है।
भृगु कमंडल नर्मदा नदी से करीब 4 किमी की दूरी पर स्थित है। इस स्थान को लेकर यह मान्यता है कि भृगु ऋषि ने यहीं बैठकर कठोर तप किया था। जिसके बाद उनके कमंडल से एक नदी की उत्पत्ती हुई इस नदी को करा कमंडल के नाम से भी जाना जाता है। यहां मौजूद चट्टान में कमंडल की आकृति भी नजर आती है। कुछ दूर तक स्वतंत्र बहने के बाद यह नदी नर्मदा में जाकर मिल जाती है।
जैसा कि इसके नाम से ही साफ कि यह एक बागीचा है। माँई की बगिया नर्मदा कुंड से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा की ओर स्थित है। यह बागीचा माता नर्मदा को समर्पित है। यही कारण है कि इसे ‘माँई कि बगिया’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी बाग से शिव पुत्री नर्मदा पुष्प चुना करती थी। इस बाग में आम और केले के साथ-साथ और भी कई सारे फलों के पौधे लगे हैं। यहां एक गुलाब का बागीचा भी है। जहां कई प्रजातियों के गुलाब और गुलबकावली के पौधे लगे हुए हैं। ऐसा कहा जाता था की गुलबकावली पूर्वकाल में एक सुन्दर कन्या के रूप में थी| गुलबकावली पुष्प के अर्क से नेत्र रोग के लिए औषधि बनायी जाती है जो नेत्र रोगियों के लिए लाभकारी होती है।
जय जालेश्वर धाम ही वह स्थान है जहां से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला नदी की उत्पत्ती हुई है। जालेश्वर धाम नर्मदा मंदिर से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग को खुद भगवान शंकर ने स्थापित किया था। जिसके कारण इस स्थान को महा-रूद्र मेरू भी कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ वास करते हैं। इस मंदिर के पास ही सनसेट प्वाइंट भी है।
माता नर्मदा के मंदिर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम-दक्षिण दिशा की ओर एक स्थान है जिसका नाम संत कबीर चबूतरा है। ऐसी मान्यता है कि संत कबीर ने सबसे पहले यहीं आकर अपना डेरा डाला था। यहीं पर उन्होंने कठोर तप के माध्यम से सिद्धी प्राप्त की थी और फिर लोगों के बीच ज्ञान बांटने लगे। जो लोग कबीर को मानते हैं वह लोग इस स्थान काफी पवित्र मानते हैं। इस स्थान को कबीर चबूतरा के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप संत कबीर के साधना स्थली को जाना चाहते हैं तो आपको बतादें कि अमरकंटक से साधना स्थली के लिए एक सीधी पक्की सड़क जाती है। ऐसा कहा जाता है कि आज भी इस स्थान पर प्रातः काल दूध कई पतली धारा प्रवाहित होती है जिसे देखने के लिए दर्शनार्थी कबीर चबूतरा आते रहते है । अमरकंटक में इसके अलावा और भी कई सारे स्थल हैं जहां पर्यटक जा सकते हैं। यहां आने वाले लोगों को काफी शांति और मनोशक्ति की प्राप्ति होती है।
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