Negative Health Effects of Video Games: स्मार्ट फोन के जमाने में हमारे जीवन पर कुछ तो अच्छे प्रभाव पड़े हैं लेकिन इसके कारण बुरे प्रभाव का असर ज्यादा नजर आ रहा है। इसका असर केवल शहरों में नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहा है। स्मार्ट फोन में खेले जाने वाले गेम के पीछे बच्चे, किशोर और युवा इतना पागल हो जा रहे हैं कि यह उनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। अधिकतर समय तक गेम खेलने के लत को विशेषज्ञों ने मानसिक स्वास्थय अवस्था (Mental health Condition) का नाम दिया है। पिछले आठ महीने में ऐसे करीब 120 मामले देखे गए हैं। जिसमें लोग वीडियो गेम खेलने की लत से पीड़ित हैं। इसमें ज्यादातर 15 से 20 वर्ष की आयु के युवक हैं।
वीडियो गेम खेलने की लत से पीड़ित लोगों में भूख की कमीं और नींद ना आने की समस्या दिखने लगती है। ऐसे लोग वास्तविक जीवन के कामों में रुची लेना बंद कर देते हैं। इतना ही नहीं यह लोग गेम खेलने से रोकने पर हिंसक प्रवृति के हो जाते हैं। शुरुआती दौर में तो गेम का असर पढ़ाई पर कम दिखता था लेकिन अब इसका असर पढ़ाई पर भी बड़े पैमाने पर दिखने लगा है। ऐसे कई सारे लोग हैं जो एक बार गेम खेलना शुरु कर रहे हैं तो लगातार आठ-आठ घंटे तक गेम को खेलते ही रह रहे हैं। गेम खेलने वालों में ऐसा देखा गया है कि वह अगर गेम खेलना शुरु कर रहे हैं तो उनका खुद पर नियंत्रण ही नहीं रह रहा है।
इस गेम के पीछे लोग इतना पागल हो जा रहे हैं कि घंटों इसे खेलने के लिए वक्त दे रहे हैं। यहां तक कि इसके अलावा उन्हें कुछ याद ही नहीं रह रहा है। लोग खाना, नहाना और सोना तक भूल जा रहे हैं। बच्चों के अंदर इस तरह के बदलाव को देखते हुए अभिभावक काफी परेशान हो रहे हैं। कई मामले तो ऐसे सामने आ रहे हैं जिसमें डॉक्टरों को बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों का भी उपचार करना पड़ रहा है।
इस मामले में सबसे ज्यादा चिंता जनक बात यह है कि बच्चे इसे केवल खेल के तौर पर नहीं देख रहे हैं। वह इसमें अपना करियर भी बनाना चाह रहे हैं। पिछले कुछ समय में काउंसेलिंग के दौरान बच्चों ने यह कहा है कि वह इस खेल में अपना करियर बनाना चाहते हैं। वह इस गेम को इस लिए ज्यादा से ज्यादा खेलना चाहते हैं ताकि वह इससे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा सकें। खुद को एक बेहतर खिलाड़ी बनाने के लिए वह इसे ज्यादा से ज्यादा वक्त तक खेलते रहते हैं। ताकि वह ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा सकें। बहुत से बच्चों को यह भी लगता है कि वह इसे खेलेंगे तो उन्हें गेम डेवेलपर या प्लेयर के तौर पर नौकरी मिल जाएगी।
National Institute Of Mental Health And Neuro Sciences (NIMHANS) में डिजिटल लत छुड़ाने की क्लिनिक SHUT (सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी – Services For Healthy Use Of Technology) चला रहे क्लिनिकल साइकोलॉजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ मनोज कुमार शर्मा के मुताबिक “लत के साथ मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। गत तीन माह में 120 से ज्यादा अभिभावक अपने बच्चों के उपचार के लिए पहुंचे हैं। कई अभिभावक फोन पर भी परामर्श लेते हैं। मरीजों में कई Chennai, Hyderabad, Delhi, Pune और Mumbai आदि शहरों से हैं। 99 फीसदी मरीज Boyas हैं।“
डॉ के मुताबिक मौजूदा वक्त में लोगों के बीच मौखिक संवाद घटा है। यही कारण है कि लोग एक दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं। इतना ही नहीं लोग इस दौरान शैक्षिक, सामाजिक और मनोरंजक गतिविधियों से लोग कट रहे हैं और चिड़चिड़े बन रहे हैं। लोग खुद को मनोरंजन करने के लिए ही इस तरह के गेम्स से जुड़ रहे हैं। कम सदस्य वाले परिवार में ज्यादातर लोग इंटरनेट, सोशल मीडिया और मोबाइल के लत से पीड़ित हैं। डॉक्टर के मुताबिक इसके लिए ज्यादातर अभिभावक भी जिम्मेंदार हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि परिवार में लोगों के बीच संवाद का समय ही नहीं बचा है। पहले के समय में लोग साथ बैठकर चाय-नाश्ता करते थें। एक साथ खाना पीना किया करते थें लेकिन बदलते वक्त में यह सब खत्म हो चुका है।
इस एडिक्शन को डॉक्टरों ने डिजिटल एडिक्शन का नाम दिया है। इससे निपटने के लिए जरूरी है कि इस के लक्षणों को सबसे पहले पहचाना जाए। तनाव, खराब पारिवारिक माहौल, बच्चों पर अत्यधिक दबाव, माता-पिता द्वारा बच्चों की अनदेखी आदि कारणों से भी बच्चे हर उस वस्तु या गेम की ओर आकर्षित हो जाते हैं, जिनसे उन्हें खुशी मिलती हो।
भारत में पबजी जैसे गेम ने आज से आठ साल पहले दस्तक दी थी। डॉक्टर्स के मुताबिक शुरुआती दौर में तो हर महीने करीब दो से तीन मरीज ही आते थें। लेकिन आगे चल कर एक बड़ी संख्या में लोग इस बिमारी से पीड़ित होने लगें। आज हर महीने इस समस्या से पीड़ित करीब 40 मरीज सामने आ रहे हैं। इस गेम का गेमिंग एडिक्ट्स मानसिक स्वास्थ्य अवस्था नामक विकार से पीडि़त होते हैं। इसमें मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। इसका कोई ऐसा इलाज नहीं है जो तत्काल रूप से आराम दे। जो लोग इस समस्या से परेशान हैं उनसे मोबाइल छीन लेना ही केवल इसका समाधान नहीं है। इससे पीड़ित व्यक्ति और भी ज्यादा चिड़चिड़ा हो सकता है। ऐसे लोगों को धीरे-धीरे इस समस्या के बारे में जागरुक करना पड़ता है। काउंसलिंग के माध्यम से उन्हें धीरे-धीरे जागरुक करना होता है। कई बार अपने बच्चों को इस आदत से छुटकारा दिलाने के लिए माता-पिता बच्चों पर काफी ज्यादा प्रभाव डाल देते हैं। ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए डॉक्टर के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती है।
पबजी के अलावा और भी कई सारे ऐसे गेम हैं जिसके चपेट में लोग आने से इस परेशानी का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में लोग गेम के प्रति काफी आकर्षित हो रहे हैं। यह गेम खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर बिमार करने की क्षमता रखते हैं।
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