Acharya Prashant Biography In Hindi: हर मां-बाप का सपना होता है कि उसका बच्चा अच्छी से अच्छी शिक्षा प्राप्त करे। वह अपने जीवन में उच्च शिक्षा ग्रहण करे और इतना ढेर सारा ज्ञान प्राप्त कर ले ताकि आगे चल कर उसे अपना भविष्य बनाने में किसी तरह की कोई समस्या न आए। अब आप सोचिए कि आपका बच्चा किसी बहुत ही उच्च संस्थान जैसे IIT और IIM जैसी जगह से शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी मल्टीनेशनल कंपनी या फिर बहुत ऊंचे पद पर या कोई सामान्य नौकरी भी नहीं करे तो कैसा लगेगा। कुछ ऐसा ही सवाल पूछा गया था आचार्य प्रशांत से जिन्होंने ना सिर्फ आईआईटी, आईआईएम बल्कि सिविल सर्विसेज का एग्जाम भी क्वालिफ़ाई करने के बावजूद उस क्षेत्र में न जाकर आध्यात्म की राह थाम ली, आखिर क्यों? सवाल वाकई में बहुत ही ज्यादा हैरानी वाला था मगर सिर्फ उन सभी के लिए जो वां पर सुनने आए थे, आचार्य प्रशांत के लिए नहीं।
आचार्य प्रशांत आचार्य प्रशांत ने मात्र 15 वर्ष की आयु में आईआईटी-जेईई की तैयारी की क्योंकि उन्हे आईएएस बनना था और सरकारी नौकरी करनी थी। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके परिवार में सभी सदस्य सरकारी अधिकारी थे। मगर जैसे-जैसे समय बीतता गया आईएएस प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते समय ही उन्हें यह समझ आ गया था कि केंद्रीकृत सरकार का क्या मतलब होता है और नौकरशाही की हकीकत क्या है। हालांकि, उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की और दो महीने के प्रशिक्षण काल में ही उन्हें साफ-साफ दिख गया कि केंद्रीकृत सरकार में काम करते हुए किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता से वंचित रहना पड़ेगा। थोड़ा समय और बीता और 22 वर्ष की आयु में उन्होंने कहा नहीं, अभी मैं जवान हूं और अपना जीवन ऐसी किसी व्यवस्था को समर्पित नहीं कर सकता जो मुझे निरंतर हुक्म देती रहे कि मुझे क्या करना है और कैसे करना है बस फिर क्या था, यहीं से वो बदलाव आया और शुरू हो गया सफर।
आचार्य प्रशांत के बारे में बताने के लिए बहुत कुछ विशेष तो नहीं है मगर उनके विचार, उनकी सोच पूर्ण रूप से स्पष्ट होती है। उनका मानना है कि आज की तारीख में उन्हें एक अच्छी जगह पर इंजीनियर के रूप में कार्यरत होना चाहिए था क्योंकि उन्होंने बी.टेक की पढ़ाई की हुई है या फिर किसी बेहतर जगह पर मैनेजर आदि के पद पर होना चाहिए था। या ऐसा भी संभव था कि वह किसी सरकारी जगह पर उच्च पद पर आसीन होते क्योंकि उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद जैसे टॉप संस्थान से शिक्षा पायी है और आईएएस की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर रखी है। मगर नहीं, उन्हें अपनी आजादी चाहिए थी जो इन सभी जगहों पर कार्यरत होकर उन्हें नहीं मिल पाती। उन्हें अपना जीवन स्वच्छंद रूप से व्यतीत करना था।
हालांकि, उन्होंने कई सारी उच्च शिक्षा ग्रहण कर ली थी मगर अब उन्हें इस क्षेत्र में नहीं जाना था। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ किया वह उनका अतीत बन कर रह गया था और अब आगे उन्हें क्या करना है वह इस बारे में सोच रहे थे।
एक उदाहरण के तौर पर आचार्य प्रशांत बताते हैं कि अगर आपने 200 रुपए में किसी फिल्म की टिकट खरीद ली है और एक घंटे तक फिल्म देखने के बाद आपके मन में यह बात आती है कि इसके आगे भी आपको अगला एक और घंटा देना है या नहीं। वहीं, दूसरी तरफ मन में यह भी आता है कि जब 200 रुपये भी लगा दिये हैं और एक घंटा भी दे दिया है तो फिर अगला एक घंटा देने में बुराई ही क्या है। हो सकता है कि आपके दिमाग में यह ख्याल आये कि जब पैसा और समय दोनों ही लगा ही दिया है तो आगे देख ही लेते हैं, मगर मैं कहता हूं कि अगर आपके 200 रूपये लगाने के बाद भी एक घंटा व्यर्थ हो चुका है तो फिर आगे का एक और घंटा व्यर्थ करने का कोई मतलब नहीं बनता। जबरदस्ती वहां मन मारकर बैठने से अच्छा है आप आगे बढ़ें।
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