Neem Karoli Baba in Hindi:आपने अक्सर नीम करौली बाबा का नाम इंटरनेट पर या किसी के मुंह से सुना होगा। लेकिन शायद ही आप नीम करौली बाबा के बारे में उन सभी पहलुओं को जानते होंगे, जिसकी जानकारी आपको होनी चाहिए। कहते हैं कि नीम करौली बाबा ही हैं जिनसे समाधी पर आने के बाद स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग जैसे लोग अपने जीवन में कामयाब हो सके हैं। नीम करौली बाबा के आश्रम के माध्यम से ना केवल भारत में बल्कि पूरे देश में प्राचीन सनातन धर्म का प्रचार और प्रसार होता है। नीम करौली बाबा के बारे में एक और बात कहते हैं कि वो हमेंशा ही एक कंबल ओढ़ा करते थें। जोकि बुलेट प्रुफ हुआ करता था। बहरहाल उस कंबल के बारे में बाद में जानेंगे लेकिन उससे पहले नीम करौली बाबा के बारे में कुछ अहम बातों के जानते हैं।
नीम करौली बाबा के आश्रम के मुताबिक उनका जन्म सन् 1900 के आस-पास उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। वह एक ब्राम्हण परिवार में जन्में थें। महज 11 वर्ष की उम्र में उनके घर वालों ने उनकी शादी एक ब्रम्हण कन्या के साथ करवा दी लेकिन उन्हें यह जीवन रास नहीं आया और वह कुछ ही समय बाद घर छोड़कर अपने चले गए। करौली बाबा ने साधु का जीवन जीने का फैसला किया। कहते हैं कि उन्हें 17 साल की उम्र में ही ज्ञान की प्रप्ती हो गई और वह सत्य की खोज में निकल पड़े थें। हालांकि घर छोड़ने के करीब 10 साल बाद किसी ने उनके बारे में उनके पिता को बताया कि वह घर छोड़कर चले गए हैं। जिसके बाद उनके पिता ने उन्हें समझाया तब वह घर लौट आएं और कालांतर में उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री की भी प्राप्ति हुई।
नीम करौली बाबा भले ही परिवारिक जीवन जीने के लिए लौट आए थें लेकिन इस दौरान भी वह ज्यादातर वक्त सामाजिक कार्यों को करने में लगाते थें। बाबा हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थें, कहते हैं कि उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में हनुमान जी के करीब 108 मंदिर बनवाए थें। वर्तमान में हिंदुस्तान के अलावा अमेरिका के टैक्सास में भी उनका मंदिर मौजूद है। करीब 1962 करीब उन्होंने कैंची गांव में एक मंदिर बनवाया जहां उन्होंने अपने साथ पहुंचे साधु-संतों के साथ हवन और यज्ञ किया। इस जगह पर आज भी बाबा की समाधी मौजूद है। सन् 1960 में बाबा को तब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली जब उनके एक अमेरिकी भक्त ने अपनी किताब में उनका जिक्र किया। उनके इस भक्त का नाम रिचर्ड एलपर्ट(राम दास) बताया जाता है। इस किताब का नाम ‘’मिरेकल ऑफ लव’’ था। इसके बाद से ही पश्चिमी देशों से भी लोग उनका आशिर्वाद लेने और दर्शन करने के लिए पहुंचने लगें।
कहते हैं कि अपनी जीवन के आखिरी समय में उन्होंने समाधी के लिए वृंदावन की पावन भूमी को चुना। 10 सितंबर 1970 को उन्होंने अपने देह का त्याग कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद वृंदावन में ही एक मंदिर का भी निर्माण करवाया गया जहां उनकी प्रतिमा स्थापित की गई।
रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) के द्वारा लिखी गई किताब में एक कहानी के माध्यम से नीम करौली बाबा के बुलेट प्रुफ कंबल के बारे में जिक्र किया गया है। यह घटना 1943 की है जब एक दिन बाबा एक बुजुर्ग दंपत्ति के घर पहुंचे जो पहले से ही बाबा के भक्त थें। बाबा ने वहां पहुंचकर कहा कि वो वहीं रुकेंगे। भक्त दंपत्ति बेहद ही खुश हुए लेकिन उन्हें दु:ख इस बात का था कि उनके पास बाबा की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। लेकिन उनके पास जो कुछ भी था उसे उन्होंने बाबा के सामने पेश कर दिया। बाबा ने भक्तों के द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण किया और वहीं पड़े चारपाई पर लेट कंबल ओढ़ लिया।
रात भर बाबा सोए नहीं वह कराहते रहे, बाबा की कराहट को सुनकर दंपत्ति भी वहीं खाट के पास बैठे रहें। उस रात कोई नहीं सोया जब सुबह हुआ तो बाबा ने अपना कंबल उस दंपत्ति को देते हुए कहा कि इसे नदी में प्रवाह कर देना और गलती से भी इसे खोल कर मत देखना नहीं तो फंस जाओगे साथ ही बाबा ने यह भी कहा कि चिंता मत करो तुम्हारा बेटा जल्द ही लौट आएगा। दंपत्ति जब नदी की तरफ जा रहे थें। तब उन्होंने कंबल में कुछ लोहे जैसा महसूस किया। लेकिन उन्होंने वैसा ही किया जैसा बाबा ने कहा था।
कुछ दिनों बाद वैसा ही हुआ जैसा बाबा ने कहा था, दंपत्ति का पुत्र जोकि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा फ्रंट में तैनात था वह वापस लौट आया। लौटने के बाद उसने अपने माता-पिता से कहा कि जब बर्मा प्रंट पर जापानियों ने हमला कि तब उसके साथ के सैनिकों में से कोई नहीं बचा लेकिन वह इकलौता जिंदा बच गया। सुब जब ब्रिटिश सेना वहां मदद के लिए पहुंची तब उसके जान में जान आई। चमत्कार वाली बात यह है कि यह उसी रात की बात है जिस रात नीम करौली बाबा दंपत्ति के घर पर ठहरे हुए थें।
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